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20.3.23

कविता क्या है

डॉ श्याम किशोर प्रसाद-
 
आत्मा की उपज ‘कविता '

वाक्यं रसात्मकं काव्यम् अर्थात् रस युक्त वाक्य ही काव्य है। कविता आत्मा की अनुभूति, आदि प्रेरणा है। आत्मा की गूढ़ और छिपी हुई सौंदर्य राशि का भावना के आलोक से प्रकाशित हो उठना ही ‘कविता’ है। जिस समय आत्मा का व्यापक सौंदर्य निखर उठता है उस समय कवि अपने में सीमित रहते हुए भी असीम हो जाता है, ताल, लय एवं संगीत की प्रधानता होती है, वही कविता है। कविता सरस होती है। वो एक प्रबल अनुभूति है। रूप और ध्वनियां साकार और निराकार होती हैं। दृश्य और अदृश्य उसे अपने संगीत से ओतप्रोत कर देते हैं, समस्त जगत हृदय में गतिशीलता भरकर तिरोहित हो जाता है, उसी गतिशीलता का नाम ‘कविता’ है। काव्य ही अपने व्यापक रूप में अनेक सौंदर्य कोटियां निर्धारित करता है। जब काव्य अपने उदात्त रूप में ब्रह्मानंद के समकक्ष होता है, तब जिस प्रकार ब्रह्म की परिभाषा देना कठिन है, उसी प्रकार काव्य की परिभाषा देना भी कठिन हो जाता है।

          केनोपनिषद के द्वितीय खंड में ब्रह्म ज्ञान की अनिर्वचनीयता का उल्लेख है :–
नाहं मन्ये सुवेदेति नो न वेदेति वेद च।
यो नस्तद्वेद तद्वेद नो न वेदेति वेद च ।
 यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः।।
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम्।।
न तो मैं यह मानता हूॅं कि मैं ब्रह्म को अच्छी तरह जान गया और न यही समझता हूॅं कि मैं उसे नहीं जानता, अतः मैं उसे जानता भी हूॅं और नहीं भी जानता हूॅं। जो उसे न तो नहीं जानता और न जानता ही हूॅं, इस भांति जानता है वही उसे जानता है। इसी भांति जिसको ब्रह्म ज्ञात नहीं है, उसी को ज्ञात है, और जिसको ज्ञात है, वह उसे अज्ञात है, क्योंकि वह जानने वालों को बिना जाना हुआ है, और न जानने वालों को जाना हुआ है। इसी प्रकार कविता भी पूर्ण रूप से जानी जा सकती है, इसमें संदेह है। इसलिए कविता की व्याख्या तो हो सकती है, उसकी परिभाषा देना एक अनाधिकार चेष्टा है।
             साहित्य के अन्य रूपों की अपेक्षा कविता की अभिव्यक्ति संभवतः सर्वप्रथम हुई। कविता के इतिहास में प्रथम कविता महर्षि वाल्मीकि के कंठ से क्रोंच – वध विषाद से नेत्र की अश्रु धारा के साथ निकली कही जाती है; किंतु कविता की सृष्टि उस समय ऐसी विह्वलता भर दी होगी जिसे हृदय अपनी भाव – सीमा में संभाल न सका होगा और काव्य का अमृत भाषा में छलक पड़ा होगा।
                       महाकवि तुलसीदास जी ने कविता के अविर्भाव के संबंध में रामचरितमानस में कुछ सुंदर पंक्तियां लिखी है………
हृदय सिंधु मति सीप समाना।
स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥
जो बरषइ बर बारि विचारू।
होंहि कवित मुक्तामनि चारू।।
        ह्रदय के सिंधु में मति सीप के समान है, काव्य की प्रतिभा या सरस्वती स्वाति नक्षत्र के समान है । इस अवसर पर यदि सुंदर विचारों का जल बरस जाय तो भावना की सीपी में कविता का मोती निर्मित हो जाता है। सीप में मोती का निर्माण एक अवसर विशेष की बात है। यदि सौभाग्य से ऐसा अवसर आ जाय तभी कविता की सृष्टि हो सकती है । श्रेष्ठ कविता संयोग से ही बनती है और वह भी प्रतिभा के आलोक से संभव होता है।

     कविता जीवन का निर्बाध और अकृत्रिम सौंदर्य बोध है,  उसके द्वारा मानव ऐसे अनवरत और अविरल आनंद का अनुभव करता है, जो समय की गति से धूमिल नहीं होता। इसमें पूर्व चिंतन की अपेक्षा नहीं है। जैसे रुदन के मोती किसी निश्चित संख्या में नहीं झरते, उसी प्रकार कविता प्रयास पूर्वक निर्मित नहीं होती। वह आनंद की धारा में पुष्प की भांति लहरों की गोद में विकसित होती है।
              प्राचीन आचार्यों ने भरत, दंडी, रुद्रट, वामन आनन्दवर्द्धन , मम्मट, भोज, वाग्भट, जयदेव ,विश्वनाथ, पंडित राज जगन्नाथ ने काव्य के रूप को परखने की चेष्टा विविध दृष्टिकोणों से की है। आचार्य भरत ने रस को, दंडी ने संक्षिप्त वाक्य को, रुद्रट ने शब्द और उसमें निहित अर्थ युग्म को, वामन ने ललित पद रीति को, आनंदवर्धन ने ध्वनिमयी अर्थ निष्पत्ति को, भोज ने निर्दोष अलंकारमय अर्थ को, मम्मट ने शब्द और अर्थ की संयोजना को , वाग्भट ने दोष रहित शब्द को, जयदेव ने रसमयी शब्द योजना को, विश्वनाथ ने रसात्मक वाक्य को, और पंडितराज जगन्नाथ ने रस में पूर्ण अर्थ वर्णन को काव्य माना।
            कहा जा सकता है की अनुभूति के स्तर पर शब्द और अर्थ में तादात्म्य उपस्थित होने पर ही रस की निष्पत्ति होती है। मन की गति जितनी शीघ्रता से अर्थ के विराट विश्व में प्रवेश करती है, उतनी शीघ्रता से भाषा अपना स्थूल उपादान प्रस्तुत नहीं कर सकती।
भावनाएं अपनी गहराई में अथाह हैं और शब्द किनारे पर बैठे हुए पथिक हैं, जो केवल लहरें गिनना जानते हैं। जिस साधक की अपने शब्दों को अर्थ में डुबाने की जितनी अधिक सहज क्षमता होगी, उतनी ही गहरी रसानुभूति काव्य के माध्यम से हो सकती है।
  
डॉ श्याम किशोर प्रसाद
सहायक प्राध्यापक (बीएड ) राजा शिव प्रसाद महाविद्यालय झरिया,धनबाद 
मो.62009 49730

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