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2.3.23

आखिर हिन्दू राष्ट्र से फायदा किसको....!


-राजेश पंकज ’रंगीला’  
आजकल देश में एक नया मुद्दा जोर-शोर से उछाला जा रहा है। ऐसा लगता है, जैसे बोतल से फिर एक जिन्न बाहर आने को आमादा हो रहा है। मुद्दे को जिन्न के नाम की संज्ञा दी है। तो स्वाभाविक है, वह अच्छे के लिए तो होगा नहीं। हां जो इसे बोतल से बाहर निकाल रहा है, वह इससे अपने हित साधेगा ही। इसमें कोई शक भी नहीं होना चाहिए। जिन्न तो जिन्न है, वह यह थोड़े ही देखेगा कि निर्दोष को नुकसान न पहुंचाया जाए। वह तो ’जो हुक्म मेरे आका’ की भांति चलाएमान रहेगा। यहां जिस नए मुद्दे की बात यहां की जा रही है, वह है हिन्दू राष्ट्र का मुद्दा। वर्ष 2024 के आम चुनाव की बिछाई जा रही बिसात में एक मुद्दा यह भी शामिल होने जा रहा है। इससे पहले राम मंदिर निर्माण पूर्ण करना और उसे दर्शनों के लिए खोलना तो है ही।
जब भी देश में आम चुनाव या किन्हीं राज्यों के चुनाव आते हैं, तो कोई न कोई दो-तीन मुद्दे ऐसे उछाले जाते हैं। जिससे हवा का रूख बदल जाए। राजनीतिक दलों का प्रयास यह रहता है कि लोगों को ध्यान बुनियादी जरूरतों से हटकर भावनात्मक रूप ले ले। एक लहर बन जाए और वोटों का ध्रुवीकरण होकर सारे मत उनकी पार्टी की झोली में डल जाए। ताकि वह राजी-राजी अपनी सरकार बना ले। फिर अगले चुनाव में और नए मुद्दे ले आएंगे। वैसे भी आमजन दो जून की रोटी के लिए इतना मर-खप रहा है कि उसे इतना गुमान ही कहां रहता है, जो इनकी चाल को समझ पाए। वह आखिर तक सोच नहीं पाता कि उसे फिर से छला जा रहा है।  
        सोशल मीडिया, टीवी चैनल और अखबारों में ऐसे मुद्दों को बढ़ाचढाकर परोसा जा रहा है कि जैसे देश में कोई और बुनियादी मुद्दे बचे ही न हों। क्या आजादी के इतने सालों बाद हमारी सरकारें देशवासियों को जीवन यापन के लिए न्यूनतम सुविधाएं दे पा रही है? क्या पीने का पानी उपलब्ध करा पा रही है? यहां शुद्ध पेयजल तो दूर की बात है। मुद्दे इस तरह उठाए जाते हैं कि जैसे हमारे यहां स्कूल भवन, उनमें शिक्षक और संशाधन, अस्पताल, चिकित्सक और दवाईयां, सड़क, बिजली, रोजगार, आवास आदि की समस्याएं रही ही न हों। सरकारों ने जैसे देश से गरीबी को ही भगा दिया हो। उनका इन मुद्दों और समस्याओं से जैसे कोई सरोकार रहा ही न रहा हो। बस हर बड़े नेता अपनी पार्टी की सरकार बनाने के लिए शोर्टकट का रास्ता अपनाने को आमादा रहते हैं।
यही कारण है कि देश में आमचुनाव से पहले आधा दर्जन से अधिक राज्यों के चुनाव भी राजनीतिक दलों द्वारा ध्यान में रखे जा रहे हैं। माहौल बनाने के लिए विभिन्न स्तरों पर इसकी तैयारियां की जाने लगी है। आप सब समझते ही हैं कि वोटों को लुभाने के लिए अलग-अलग मुद्दे काम करेंगे। इसे समझने के लिए हमें थोड़ा बीते वक्त को याद करना होगा। यूपीए सरकार-2 यानि कांग्रेस के अंतिम कार्यकाल के दौरान या यूं कहें कि वर्ष 2013-14 का माहौल। तब क्या-क्या मुद्दे सुर्खियां में थे? बी-टीमों की सक्रियताएं इतनी हावि थी कि लोग सबकुछ भूल गए। अन्ना हजारे, बाबा रामदेव जैसे लोग, विहिप, बजरंगदल आदि संगठन दिनरात जाति-धर्म का माहौल बनाने में लगे रहे। वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और नतीजा एनडीए यानि भाजपा की सरकार बनी। फिर वर्ष 2018-19 का समय आया। गौवंश, लव जिहाद, एनआरसी, सीएए जैसे जाति-धर्म से जुड़े मुद्दे व्यापक तौर पर छाए रहे। अब एनडीए-2 के अंतिम कार्यकाल में नए मुद्दे उछाले जाने लगे हैं। जिस प्रकार यूपीए-2 के समय राष्ट्रीय पटल पर अन्ना प्रकट हो गए। इधर बाबा रामेदव योग के बहाने जुटाई भीड़ का उपयोग यूपीए-2 के विरोध में लाने के लिए ताल ठोके रहे। आरएसएस सहित उसके सभी प्रकल्प यथा विहिप, बजरंगदल आदि कहीं आग में घी का काम करने लगे तो कहीं स्वयं ही इसे सुलगाने में पीछे नहीं हटे। ऐसे ही अन्य धुरंधर भी अलग-अलग क्षेत्रों से कारसेवा में लगे रहे। नतीजा एनडीए यानि भाजपा अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही। इस युक्ति को दूसरी बार भी दोहराया तो फिर सरकार बनी। अब इसे तीसरी बार आजमाया जा रहा है। इसमें इस बार भी नए किरदारों को आगे किया जा रहा है। पहले वालों में कुछ बूढ़े हो गए, कुछ थक गए तो कुछ के प्रति जनता का मोह नहीं रहा। नए किरदारों में एकदम नए चेहरे उतारे जा रहे हैं। तो मुद्दे भी नए ही होंगे। ताजा मुद्दा हिन्दू राष्ट्र का उछाला जा रहा है। पटकथा लिखी जा चुकी है। धीरे-धीरे माहौल बन जाएगा। तब तक आम चुनाव का समय नजदीक आ ही जाएगा। इस प्रकार विधिवत तरीके से बी-टीम को माहौल बनाने का काम सौंप जा चुका है। कुछ नए मुद्दें और भी शामिल हो जाए, तो चौंकिएगा मत। उसकी लहर में बहिएगा मत। हमें अपना विवेक जगाना है। स्वयं से पूछना है कि क्या धर्म हमारी बुनियादी आवश्यकता है। धर्म की बुनियाद पर खड़े पाकिस्तान की दुर्गति सबके सामने है। क्या हिन्दूस्तान को भी हम उसी राह पर धकेलने तो नहीं जा रहे। अब और कितने टुकड़े कराएंगे। कितना गर्त में जाएंगे। पहले हम रोजी, रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, बिजली, पानी, सड़क जैसी सहूलियत से महफूज हों। जहां दुनियां चांद और मंगल पर झंडे गाढ़कर वहां जीवन तलाश रही है, वहां हमे इंद्रलोक और चंद्रलोक के काल्पनिक संसार में सैर करवाने पर आमादा हैं।  
जरा विचार कीजिए, सोचिए। हिन्दू राष्ट्र या मुस्लिम राष्ट्र जैसे नारों और मुद्दां से न भारत का भला होगा और ही पाकिस्तान का। वह भारत का एक ही अंग था। तब भी इस छद्म राजनीति और नेताओं की महात्वाकांक्षा ने देश के दो टुकड़े करवा दिए। अब फिर से वही कहानी दोहराई जा रही है। आज आप हिन्दू राष्ट्र की बात करेंगे, तो फिर कल वे भी मुस्लिम राष्ट्र की मांग करेंगे। जिस राज्य में जिसकी आबादी अधिक होगी, वहां उसी धर्म सम्प्रदाय के लोग अपना राग अलापेंगे। तब आप क्या करोगे। स्पष्ट है कि ऐसे मुद्दों से केवल फायदा राजनेताओं को ही होगा। उन्हें कुर्सी प्यारी है। देश से प्यार नहीं, यहां की आवाम से प्यार और सरोकार नहीं। जबकि मुद्दे यह होने चाहिए कि कौनसा दल या पार्टी देश को कितने समय में विकसित राष्ट्र बनाए, गरीबी दूर करे। तकनीक और रोजगार बढ़ाए। बुनियादी सुविधाएं उपल्बध कराएं। जो ऐसी बातों या मुद्दों को रखे सच्चे मायने में वही देश का भला कर सकेंगे। आमजन को चाहिए कि वह इस तरह के बहाव में न आए और न ही बहकावे में। ऐसे मुद्दे उछालने वालों का पुरजोर तरीके से बहिष्कार करना चाहिए। यही देश हित में है और उचित भी होगा।
-rajpanaj05@gmial.com

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