आज के ही दिन १९७५ में हिंदुस्तान में आपातकाल तत्कालीन सरकार ने लगा दिया था। तब से लेकर आज तक देश की एक पीढी जवान हो गई। इनमे से करोड़ों तो जानते भी नहीं होंगें कि आपातकाल किस चिड़िया का नाम है। आपातकाल को निकट से तो हम भी नहीं जानते,हाँ ये जरुर है कि इसके बारे में पढ़ा और सुना बहुत है। तब इंदिरा गाँधी ने एक नारा भी दिया था, दूर दृष्टी,पक्का इरादा,कड़ा अनुशासन....आदि। आपातकाल के कई साल बाद यह कहा जाने लगा कि हिंदुस्तान तो आपातकाल के लायक ही है। आपातकाल में सरकारी कामकाज का ढर्रा एकदम से बदल गया था। कोई भी ट्रेन एक मिनट भी लेट नहीं हुआ करती। बतातें हैं कि ट्रेन के आने जाने के समय को देख कर लोग अपनी घड़ी मिलाया करते थे। सरकारी कामकाज में समय की पाबन्दी इस कद्र हुई कि क्या कहने। इसमे कोई शक नहीं कि कहीं ना कहीं जयादती भी हुई,मगर ये भी सच है कि तब आम आदमी की सुनवाई तो होती थी। सरकारी मशीनरी को कुछ डर तो था। आज क्या है? आम आदमी की किसी भी प्रकार की कोई सुनवाई नहीं होती। केवल और केवल उसी की पूछ होती है जिसके पास या तो दाम हों, पैर में जूता हो या फ़िर कोई मोटी तगड़ी अप्रोच। पूरे देश में यही सिस्टम अपने आप से लागू हो गया। पता नहीं लोकतंत्र का यह कैसा रूप है? लोकतंत्र का असली मजा तो सरकार में रह कर देश-प्रदेश चलाने वाले राजनीतिक घराने ले रहें हैं। तब हर किसी को कानून का डर होता था। आज कानून से वही डरता है जिसको स्टुपिड कोमन मैन कहा जाता है। इसके अलावा तो हर कोई कानून को अपनी बांदी बना कर रखे हुए है। भाई, ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब जिससे कोई राहत आम जन को ना मिले। आज भी लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि इस से तो अंग्रेजों का राज ही अच्छा था। तब तो हम पराधीन थे।कोई ये ना समझ ले कि हम गुलामी या आपातकाल के पक्षधर हैं। किंतु यह तो सोचना ही पड़ेगा कि बीमार को कौनसी दवा की जरुरत है। कौन सोचेगा? क्या लोकतंत्र इसी प्रकार से विकृत होता रहेगा? कोमन मैन को हमेशा हमेशा के लिए स्टुपिड ही रखा जाएगा ताकि वह कोई सवाल किसी से ना कर सके। सुनते हैं,पढ़तें हैं कि एक राज धर्म होता है जिसके लिए व्यक्तिगत धर्म की बलि दे दी जाती है। यहाँ तो बस एक ही धर्म है और वह है साम, दाम,दंड,भेद से सत्ता अपने परिवार में रखना। क्या ऐसा तो नहीं कि सालों साल बाद देश में आजादी के लिए एक और आन्दोलन हो।
25.6.09
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
mahoday aandolan to aarambh ho chuka hai, svami ramdev ne bharat svabhiman naam se panch janvari ko
ko is aandolan ko shuru kar diya hai. aap jaise bharat vaasi aur desh premi logon ko use avashy dekhna-sunna sakriy hona chahiye.
आपने सही कहा कि आपातकाल में पूरा देश व्यवस्थित सा दिखने लगा था। अधिकारी कर्मचारी सही समय व सही कार्य करने के लिये विवश हो गये थे। मगर कुछ गलतियां तो हुंई वह नीचे स्तर पर आपातकाल लगाने के पीछे की मंशा मेरे हिसाव से ठीक थी । आज जो हालात देखने को मिल रहे हैं उसमें न तो आम आदमी के काम सही ढंग से हो पा रहे हैं न ही खान पान की वस्तुएं शुद्ध हैं। और न ही शुद्ध हवा है न शुद्ध पानी पीने को मिल रहा है दूध भी जो सबसे महत्व पूर्ण वस्तु है वह भी शुद्ध नही है । हम कह सकते है कि जिससे हमारी पीढी को मजबूती मिलेगी वह भी शुद्ध नही है शिक्षा के क्षेत्र में क्या हो रहा है हर तरफ देखिये आपको भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखाई देगा कल तक जिनके पास कुछ भी नही था वह अव करोड़ो अरबों में खेल रहे हैं आखिर कैसे और कहां से आ रही है यह अफरात दौलत। देश का हर नेता आज अरबों खरबों में खेल रहा है। चुनावों में प्रत्याशियों से सम्पत्ति का ब्यौरा तो मांगा जाता है पर चुनाव आयोग प्रत्याशियों आय के श्रौत के बारे में क्यों नहीं पूछता है।
हमारे हिसाव से देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये पुलिस का राष्ट्रीय करण जरूरी हो गया है एक प्रान्त की पुलिस को दूसरे प्रान्तों मे भेजा जाना चाहिये। इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने कुछ हद तक मदद मिलेगी।
आपने सही कहा कि आपातकाल में पूरा देश व्यवस्थित सा दिखने लगा था। अधिकारी कर्मचारी सही समय व सही कार्य करने के लिये विवश हो गये थे। मगर कुछ गलतियां तो हुंई वह नीचे स्तर पर आपातकाल लगाने के पीछे की मंशा मेरे हिसाव से ठीक थी । आज जो हालात देखने को मिल रहे हैं उसमें न तो आम आदमी के काम सही ढंग से हो पा रहे हैं न ही खान पान की वस्तुएं शुद्ध हैं। और न ही शुद्ध हवा है न शुद्ध पानी पीने को मिल रहा है दूध भी जो सबसे महत्व पूर्ण वस्तु है वह भी शुद्ध नही है । हम कह सकते है कि जिससे हमारी पीढी को मजबूती मिलेगी वह भी शुद्ध नही है शिक्षा के क्षेत्र में क्या हो रहा है हर तरफ देखिये आपको भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार दिखाई देगा कल तक जिनके पास कुछ भी नही था वह अव करोड़ो अरबों में खेल रहे हैं आखिर कैसे और कहां से आ रही है यह अफरात दौलत। देश का हर नेता आज अरबों खरबों में खेल रहा है। चुनावों में प्रत्याशियों से सम्पत्ति का ब्यौरा तो मांगा जाता है पर चुनाव आयोग प्रत्याशियों आय के श्रौत के बारे में क्यों नहीं पूछता है।
हमारे हिसाव से देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये पुलिस का राष्ट्रीय करण जरूरी हो गया है एक प्रान्त की पुलिस को दूसरे प्रान्तों मे भेजा जाना चाहिये। इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने कुछ हद तक मदद मिलेगी।
हम बच्चों ने तो इमरजेंसी के बारे में बहुत कम ही सुन रखा है.... लेकिन अगर सच में ऐसा ही होता था इमरजेंसी के दौरान और सरकारी तंत्र अगर इतना ही त्वरित हो जाता था... तो शायद एक देश को फिर से एक इमरजेंसी की जरुरत है.... शायद कुछ सुधर आ जाये... लेकिन एक बात और की इमरजेंसी के बाद सरकारी तंत्र इसी तरह फिर से आरामपरस्त हो गया तो.... उस समय क्या जनता रोक पायेगी उन्हें.... शायद जवाब न में होगा... और तब एक ही सूरत निकल कर आएगी....... क्रांति !!!!
Post a Comment