=>अब्बू, देख लो भारत को । ये हमसे आजकल सीधे मुंह बात नहीं कर रहा है ।
=>बाप पादै न जाने, पूत शंख बजावै ।
मित्रों, दो दिन पूर्व दिलजले अमेरिकी विदेश उप मंत्री (श्री)(हालांकि ‘श्री’ लगाने जैसा काम तो कतई नहीं किया है इन्होंने) विलियम बर्न्स दिल्ली तशरीफ लाये । काहे को लाये ? इसलिए लाये क्योंकि अमेरिका की नाजायज़ गोद ली हुई औलाद नापाकिस्तान अचानक बिलख बिलख कर रोने लगी कि बापू मैं तो चांद खिलौना लूंगा । तो दिलजले विलियम बर्न्स ने दिल्ली में आते ही बेसुरा राग अलापा कि भारत को पाकिस्तान के साथ बिना शर्त वार्ता शुरू कर देनी चाहिए जो कि मुंबई हमले के बाद से रूकी हुई है ।
भारत का कहना है कि नापाकिस्तान पहले मुंबई हमले के कुसूरवारों के खिलाफ सख्ती से पेश आये और सीमा पार से भारत विराधी आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाये तभी बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ेगा । अभी हाल ही में लाहौर हाईकोर्ट ने मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को बाईज्ज़त रिहा कर दिया क्योंकि नापाकिस्तान सरकार ने उसके खिलाफ कोई सबूत अदालत में पेश नहीं किया था ।
ओबामा के राष्ट्रपति बनते ही अचानक अमेरिका क्यों हमारी विदेशनीति में हस्तक्षेप करने लगा ? क्यों अचानक पिछले एक महीने से वह सी.टी.बी.टी. का बेसुरा राग हमें जबरदस्ती सुना रहा है । अबे दहिजरा के नाती, पहले तुम ही क्यूं नहीं कर देते सी.टी.बी.टी. पर दस्तखत और जिस नापाक की इतनी शिफारिश कर रहे हो, अरबों डालर की भीख उसको हर साल देते हो, उसी से काहे नही सी.टी.बी.टी. पर दस्तखत करवा लेते । मित्रों, न्यूक्यिर डील के वक्त जो सबसे बड़ी शंका जाहिर की थी विपक्ष ने वो यह थी कि भारत देश की विदेश नीति को अमेरिका भविष्य में प्रभावित कर सकता है । अभी अप्रैल में वाशिंगटन से बयान आया था कि न्यूक्लियर डील भारत को सी.टी.बी.टी. की तरफ धकलेने के लिए बढाया गया पहला कदम है । मुबंई हमला भारत पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमलों में गिना जाता है । इसके जख्म अभी भरे नहीं हैं । नापाकिस्तान गुनाहगारों के खिलाफ कोई कार्यवाही करता दिख भी नहीं रहा ऊपर से ये हजरत तशरीफ ले आये हमको सुभाषित सुनाने कि पड़ोसी से अमन चैन बनाये रखना चाहिए । ये बात हमको अच्छी तरह से मालूम है बेटा दिलजले विलियम बर्न्स । जब भारत में स्वर्णयुग चल रहा था तब यूरोप और अमेरिकावासी केले के छिलकों से चड्ढी पहनना सीख रहे थे । ये अमृतवाणी हमको मत सुनाओ । दस हजार साल से अमृतवाणी सुनाने का ही कारोबार चल रहा है भारत देश में । बेटा हमारा ही एक्सपोर्ट किया हुआ माल तुम हमीं को थमा रहे हो । ईस्ट इंडिया कम्पनी के पाकेट बुक ऐडिशन, आये हो तो थोड़ी ठंडी लस्सी वगैरह पियो और वापस निकल लो अमेरिका । अब भारतवासियों की याद्दाश्त इतनी भी गई गुजरी नहीं है कि वो तुम्हारी मंशा न समझ सकें ।
मित्रों, दिलजले बर्न्स की इस यात्रा से यह बात तो शीशे की तरह साफ हो गई कि अमेरिका अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है । ये सब कहने की बात है कि अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता है । अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए वह अभी भी अपने पागल हो चुके कुत्ते को गोली नहीं मारना चाहता । हमको अपनी लड़ाई खुद लड़नी चाहिए और अपनी शक्ति और पुरूषार्थ पर पूरा भरोसा होना चाहिए । घर में घुस कर काट खा रहे किसी पागल कुत्ते को गोली मारने के लिए हम कब तक बाहरी मदद की आस में बैठे रहेंगे । यहां तो वह कुत्ता भी उसी दारोगा का है जिसके थाने में आप एफ.आई.आर. दर्ज कराते फिर रहे हैं कि उई मां ! फिर काट लिया साले कुकुर ने ।
मित्रों, ये तो मैंने उस ससुरे दिलजले बर्न्स पर निकाली अपने दिल की भड़ास, अब एक मजेदार खबर सुनिये चीन के बारे में । अभी हाल ही में नाइजीरिया में चीन की बनी नकली दवाएं पकड़ी गईं और उन दवाओं पर ‘मेड इन इंडिया’ का लेबल लगा हुआ था । वाह रे मेरा शातिर पड़ोसी । अबे, अपनी घटिया टेक्नोलाजी के अपयश का ठीकरा हमारे सिर पर क्यूं फोड़ रहे हो । लेबल ही लगाना था तो पाकिस्तान का लगा देते । लगे हाथ बेचारे नापाकिस्तान को ये क्रेडिट तो मिल जाता कि उसके यहां भी दवायें बनाई जाती हैं, वरना दुनिया तो यही जानती है कि इनका सिधा-पिसान अमेरिका की ड्योढ़ी से ही निकलता है ।
12.6.09
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1 comment:
bhaiya krishna mohan mishra ji.... mai to khoob hansa aapko padhkar....mai kya likhu .. likh nhi pa rha hoon....hansi ruke tab na mai kuchh likhu.... keep it up... ab aap mat hansiyega ki english me likh rha hai.....ki keep it up.... bahut badhiyan
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