10.2.10
मृत्यु एक मार्गदर्शक-ब्रज की दुनिया
मृत्यु क्या है और मौत के बाद मानव और अन्य प्राणियों का क्या होता है इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है?एक वृद्ध पड़ोसी की मृत्यु के बाद आज मैंने जब उनकी लाश देखी तो सोंचने लगा कि अब इस लाश की क्या जाति है और क्या पहचान है?कुछ भी तो नहीं.जाति, पहचान सब समाप्त.क्या शून्य शून्य में नहीं मिल गया?कुम्भ में जल जल में कुम्भ है बाहर-भीतर पानी.क्या हम दुनिया में अपनी मर्जी से आये हैं और अपनी मर्जी से जायेंगे?नहीं!इन दोनों बातों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है.न ही जीवन में घटनेवाली अधिकतर घटनाओं पर ही हमारा कोई नियंत्रण होता है फ़िर हम क्यों अपने-आपको कर्ता मान लेते हैं और मिथ्याभिमान से भर जाते हैं.क्यों होता है ऐसा?लेकिन दुनिया को भ्रम मानकर इससे पूरी तरह विरक्त भी तो नहीं हुआ जा सकता.जो भी जितना भी हमारे हाथ में है उसे ही पूरी शक्ति और पूरी ईमानदारी से क्यों न पूरा किया जाए.हाँ लेकिन अगर हम जीवन के पथ पर चलते समय अटल सत्य मृत्यु को ध्यान में रखे तो हमारे हाथों कभी कोई गलत काम हो ही नहीं.इस तरह तो मृत्यु पथ प्रदर्शक भी है.
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2 comments:
आपके सवाल में ही आपका जबाव है आप स्वीकार करते है कि हम कर्ता मान लेते है। जब कर्ता मानगें तो स्वाभाभिक तौर पर उसके फल की कामना भी करेगें। गीता में स्पष्ट है कि "कर्मण्ये वाधिकारिस्ते मां फलेष कदाचिन" । संसार एक धोखा है यह सोच रखकर कर्म न करना तो कायली है पर कर्म करके फल के लिय़े न सोचना निरपेक्ष भाव कर्म है।
मुझे लगता है ये जीवन और मरण का जो सत्य है ,वो कही न कही प्रत्त्यक्ष या परोक्ष्य रूप से एक ही तत्त्व से जुड़ा है,जो हमेशा एक ही रहता है, जिसे हम ब्रहम या आत्मा नाम से जानते है.हो सकता है एक सुपर कंप्यूटर इन सबका हिसाब रखता हो कुछ सूत्र पहले से फीड किए गए हों जिनके हिसाब से आने वाला जन्म सुनिश्चित होता हो,तभी तो कई बार हम भी कहते है ये ऊपर वाले ने क्या गलती कर दी ये इसलिए होता है ,क्यों की कई बार एक कुछ सवाल एक पूर्व लिखित सूत्र से नहीं हल हो सकते,उस सुपर कंप्यूटर को ही हम चित्त्रगुप्प्त कह सकते है और जो फीडबैक आता हो ये ही हो हमारी नियति ..........
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