राजेन्द्र जोशी
देहरादून । उत्तराखंड में नौकरशाही बेलगाम हो गई है। मुख्यमंत्री की मुस्तैदी के बावजूद नौकरशाह अपना कमाल कर ही जाते हैं। हाल में ही नौकरशाहों द्वारा लिए गए कुछ फैसलों के कारण जहां राज्य सरकार को झुकना पड़ा वहीं दूसरी ओर इन निर्णयों ने नौकरशाहों की राज्य के प्रति आस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। ओबीसी की कट ऑफ डेट, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का भर्ती प्रकरण हो या फिर अब समूह ‘ग ’ तथा ‘घ’ वर्गों में राज्य के बाहरी लोगों को नियुक्ति देने का मामला। इन सभी निर्णयों में नौकरशाही की करनी का फल राज्य सरकार को भुगतना पड़ा है और बेरोजगारों को भी।
पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूडी के मुख्यमंत्री काल में सचिव सौरभ जैन ने एक शासनादेश जारी किया था जिसमें जैन ने राज्य में चतुर्थ श्रेणी में होने वाली नियुक्तियों के लिए देश भर से आवेदन मांगे थे। बताते चलें कि देश भर के किसी भी राज्य में चतुर्थ श्रेणी के पद राज्य के लोगों के लिए ही आरक्षित होते हैं। ऐसे में सौरभ जैन द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आवेदन मंगाने के फैसले का मूल निवासियों ने घोर विरोध किया था। जबकि सूत्रों की मानें तो इस शासनादेश की आड़ में वे अपने दस से ज्यादा प्रदेश के बाहर के लोगों को रोजगार देने में सफल रहे थे। जबकि बाद में उन्हे ही मजबूरन यह शासनादेश वापस लेना पड़ा। वहीं नौकरशाही के कमाल का दूसरा मामला जौनपुरी रंवाल्टा समुदाय की कट ऑफ डेट को लेकर सामने आया। फैसले में समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव एस के मुट्टू ने इस समुदाय की कट ऑफ डेट वर्ष 2004 तय कर दी थी। जबकि पहले यह तिथि 1960 रखी गई थी। इस कट ऑफ डेट को तय करने के पीछे नौकरशाहों की मंशा देश भर के किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र का मूल निवासी बनाने की थी। फैसला आने के बाद इस समुदाय से जुड़े लोगों ने यह भांप लिया कि नौकरशाह उनकी पहचान पर अतिक्रमण करने की साजिश रच रहे हैं, जिसके विरोध में लोग सडक़ों पर उतर आए। एक माह तक चले आंदोलन के बाद राज्य सरकार को यह शासनादेश भी रद्द करना पड़ा।
एक अन्य मामले के खिलाफ राज्य के लोगों का आक्रोश इन दिनों सडक़ों पर उतर आया है। नौकरशाहों के निशाने पर एक दफा फिर राज्य के बेरोजगार युवा हैं। राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा समूह ‘ग ’और ‘घ’ के तहत 337 पद भरे जाने हैं। नियमानुसार इन पदों पर प्रदेश के बेरोजगारों से ही आवेदन पत्र मंगाए जाने थे। लेकिन राज्य लोक सेवा आयोग ने देश भर के लोगों को इस परीक्षा में सम्मलित करने का तुगलकी फरमान जारी कर फिर राष्ट्रीय स्तर पर आवेदन पत्र मंगाए हैं। राज्य के बेरोजगार युवा, छात्र नेता, शिक्षाविद् , राज्य आंदोलनकारी व सामाजिक, राजनीतिक संगठनों के लोगों द्वारा मोर्चा संभाल लेने के बाद फिलहाल मुख्यमंत्री ने इस परीक्षा पर रोक लगा दी है।
कुछ नौकरशाहों द्वारा लिए जा रहे इन बेतुके फैसलों के बाद अब समूची प्रदेश में काबिज नौकरशाही पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। राज्य के लोग नौकरशाहों को संदेह की नजर से देखने लगे हैं। राज्यवासियों के पास संदेह करने के अपने तर्क हैं। लोगों का मानना है कि अलग राज्य की मांग यहां के लोगों की पहचान और पलायन के सवाल पर की गई थी। अलग राज्य बनने के बाद नौकरशाह यहां की जल जंगल व जमीन को बेचने के अलावा रोजगार में भी बाहरी लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं। जो नौकरशाही की राज्य विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। राज्य के लोगों का कहना है कि जब त़तीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों पर प्रदेश के बेरोजगारों को नौकरी नहीं मिलेगी तो आखिर वे जाएंगे कहां्र और राज्य गठन का क्या फायदा?
15.6.10
कहीं नौकरशाहों की नीयत में खोट तो नहीं?
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