भोपाल गैस कांड को लेकर कांग्रेस, उसकी सरकार और उसके मंत्रियों के पाखंड प्रलाप का भंडाफोड़ हो गया है। अमेरिका की एमोरी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर गार्डन स्ट्रीब के एक बयान से कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य प्रणव मुखर्जी के उस तर्क की धज्जियां उड़ गयीं हैं, जो हाल में उन्होंने दिया था। प्रणव ने बड़ी मेहनत करके 26 साल पुराने समाचारपत्रों की कतरनें जुटायीं और बताया कि यूनियन कार्बाइड के मुखिया वारेन एंडरसन को मुक्त करने का फैसला मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था और इसमें केंद्र सरकार और राजीव गांधी का कोई भी हाथ नहीं था। परंतु जो बात स्ट्रीब ने कही है, उससे प्रणव के तर्क झूठे और गढ़े हुए लगते हैं।
स्ट्रीब उन दिनों भारत में अमेरिकी राजदूत के सहायक थे और राजदूत के बाहर होने के कारण दूतावास का कार्यभार उन्हीं के पास था। उन्होंने बगैर किसी लाग-लपेट के कहा है कि एंडरसन को केंद्र सरकार के साथ हुई सहमति के नाते छोड़ा गया। दरअसल दुर्घटना के समय एंडरसन अमेरिका में थे। जब उन्होंने सुना कि फैक्ट्री में गैस रिसने के कारण हजारों लोगों की मौत हो गयी है तो वे कंपनी के मुखिया होने के नाते भोपाल आकर जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या, गलती कहां हुई। अमेरिकी प्रशासन उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित था, इसलिए इस बारे में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय से संपर्क साधा गया। विदेश मंत्रालय की ओर से अमेरिका को आश्वस्त किया गया कि, एंडरसन की सुरक्षित वापसी का इंतजाम कर दिया जायेगा।
इस आश्वासन के बाद ही एंडरसन भोपाल आये पर उनके हवाई अड्डे पर उतरते ही उन्हें धर लिया गया। उस समय उन्हें छुड़ाने और वापस पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया में स्ट्रीब ने बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्हीं के प्रयासों से विदेश मंत्रालय सक्रिय हुआ और एंडरसन साहब वापस अपने देश पहुंच सके। ऐसा लगता है कि जीवन भर बड़ी जिम्मेदारियों पर बनाये रखने के एहसान की कीमत कांग्रेस अर्जुन सिंह से वसूलना चाहती है। शायद उन्हें कह दिया गया है कि वे मुंह न खोलें, चुप रहें। पार्टी के भविष्य के लिए यह एक तोहमत अपने सिर पर लेने के लिए अर्जुन सिंह भी, लगता है राजी हो गये हैं। पर इससे सच जानने का जनता का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। लोगों को पता चलना चाहिए कि कौन झूठ बोल रहा है, कौन बेवकूफ बना रहा है। पाखंडी चेहरे बेनकाब होने ही चाहिए।
16.6.10
प्रणव के तर्क झूठे और गढ़े हुए
Labels: subhash rai
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