रूको नहीं तुम बढ़ते जाओ,
उत्तुंग शिखर पर चढ़ते जाओ.
आयेंगे अभी कई चौराहे,
बंद गली वाली कई रहें;
खोजो राह या राह बनाओ
रूको नहीं तुम बढ़ते जाओ,
उत्तुंग शिखर पर चढ़ते जाओ.
जीवन है यह अति संक्षिप्त,
रहो सदा कर्त्तव्य में लिप्त;
जिनका नहीं कोई संगी-साथी
उनको मित्र तुम मित्र बनाओ
रूको नहीं तुम बढ़ते जाओ,
उत्तुंग शिखर पर चढ़ते जाओ.
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2 comments:
जिनका नहीं कोई संगी-साथी
उनको मित्र तुम मित्र बनाओ....
प्रेरनादायक पंक्तियाँ...
अगर कोई दिल से सोचे....
बहुत खूब लिखा है जी आप ने ।
प्रोत्साहित करने वाली रचना ।
प्रशंसनीय ।
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