सच ही तो कह रहा हूँ , फिल्मों मे देखा है अदालत मे मूर्ती रखी होती है जिसकी आंखो पर पट्टी बंधी होती है, पहले इसका मतलब कुछ और था अब कुछ और। अब उसका मतलब है की हमारा कानून अंधा है जो सबकुछ देखकर भी सही फैसला नहीं ले सकता। अगर अदालत मे भी किसी लड़की के साथ कुछ 'गलत' हो जाए तो भी अदालत को बहुत सारे सबूतों की जरूरत पड़ेगी और केस 10 से 20 साल तक चलेगा।
मैं जानना चाहता हूँ कि कब खुलेंगी ये आँखे आखिर कब हटेंगी ये पट्टियाँ आँखों से।
1983 मे हुए दंगों का केस अभी भी चल रहा है। 20 साल चले रुचिका मामले मे सिर्फ 1।5 साल कि सजा। आखिर कब तक चलेगा ये सब।
अगले 20 सालों तक तो बदलाव के कोई आसार नहीं दिखाई देते है, क्योंकि अगर कोई कानून बदलना है तो कानून ही उसके आड़े आ जाता है। हा सच ही तो है अगर कोई नियम बदलना है तो सबसे पहले राज्यसभा और लोकसभा में पास करना होता है जहाँ हमारे देश के कर्णधार बैठे होते हैं, जो हर अच्छी चीज़ का इस्तेमाल गलत चीज़ों के लिए करते हैं।
मैं इस भारत देश में रहने वाला एक एक साधारण सा व्यक्ति हूँ जो इन सब से बहुत परेशान हो चुका हूँ। और मैं अकेला ऐसा नहीं हूँ। अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो फिर लोग परेशान होकर अपने तरीके से न्याय हासिल करेंगे। और वो कौन सा तरीका होगा वो आप समझ गए होंगे। में यहाँ नौसीखिया हूँ मैंने वही लिखा तो मेरे दिल मे है फिर भी अगर किसी व्यक्ति को बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ।
9.6.10
अंधा कानून
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1 comment:
इनका कुछ भी नहीं हो सकता.
इनसे सुधरने या सुधारने की आशा करना व्यर्थ ही है.
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