देश में जहां कमोबेश `सर्वशिक्षा अभियान´ की असफलता के बाद `शिक्षा का अधिकार´ का नया `शिगूफा´ लागू करने की सरकारी कवायद शुरू होने जा रही है, वहीं देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्यों में शुमार उत्तराखण्ड के नौनिहालों ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। साफ बता दिया है कि शिक्षा का दोगलापन अमीरी व गरीबी की खाई की तरह चौड़ा होता जा रहा है। प्रदेश के कभी शिक्षा नगर माने जाने वाले नैनीताल व देहरादून नगरों का उत्तराखण्ड बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिऐट की 25 रैंकिंग सूची से कोई नाम लेवा तक नहीं है। बल्कि यह समूचे जिले तक सूची में दिखाई नहीं दे रहे। वहीं कभी देश में बड़ा नाम माने जाने वाले जीआईसी अल्मोड़ा की नाक केवल एक बच्चे ने बचाई है। हां, आज भी अधिकांशत: बिजली बिना मिट्टी तेल की ढिबरियों व चीढ़ के छिलकों के सहारे बच्चों को पढ़ाने वाला प्रदेश का दूरस्थ सीमावर्ती बागेश्वर जिला हाईस्कूल व इंटरमीडिऐट दोनों में प्रदेश में सिरमौर रहा है।
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1 comment:
बच्चे तो आखिर बच्चे है जी.
आज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर.
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
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