-अतुल कुशवाह
चीखते हैं न कोई सुनता है,
पत्थरों का है ये शहर तौबा- डॉ कविता किरण.
अगर सिर्फ कानून बनाकार अपराध रोका जा सकता तो कभी कत्ल होते ही नही। कानून का कडाई से पालन होना चाहिए वो भी निष्पक्ष तरीके से। इसीलिए अन्ना हज़ारे मांग कर रहे हैं कि सीबीआई, सीवीसी, आदि लोकपाल के अधीन हो और सरकारी दबाव से परे। इसीलिए जो जन लोकपाल बिल है वो न सिर्फ सरकार, सांसद, नौकरशाह बल्कि न्यायपालिका पर भी निगरानी की बात कर रहा है। इसीलिए इंडिया अगेन्स्ट करपशन इसे स्ततंत्रता का दूसरा संग्राम कह रहा है।
हजारे के इस आन्दोलन में शामिल होने वालो की आखिर मंशा क्या है. इससे पसोपेश में हू. जनता हमेशा बड़े लोगों के पीछे दौड़ पड़ती है. और इस बार भी ऐसा दिखा. हजारे बेशक गान्धीबादी और सच्चे समाजसेवक है. और उन्होंने ही ये आन्दोलन शुरू किया. फिल्म वाले भी साथ आ गए. समाजसेवी अन्ना के साथ जंतर-मंतर पर फोटो खिंचवाने. इन्टरनेट पर फ़िल्मी हीरो और हीरोइन अन्ना का नाम ले लेकर जन लोकपाल बिल लाये जाने की अपील ठोंकते रहे. लेकिन क्या फिल्मो में जितने लोग काम करते हैं. वे सब पाक-साफ़ हैं. क्या किसी फ़िल्मी आदमी का अंडरवर्ल्ड से तार जुड़ने के मामले सुर्ख़ियों में नहीं आये. क्या फिल्मो में काला धन नहीं लगता. काया आन्दोलन चलाने वाले भ्रष्ट नहीं हो सकते. एक भिखारी जो पेट की भूख मिटाने लिए घरों-घरों आटा मांगता फिरता है. जितने आते से उसका पेट भर सकता है उतना आटा मांगने के बाद वह सब्जी के लिए भी इंतजाम कर लेता है. यानि सब्जी और रोटी. लेकिन हमने देखा है की भीख मांगने वाला वो भिखारी खाने के साथ-साथ पीने के लिए आटा भी बेचता है. तो क्या वो भिखारी भ्रष्ट नहीं है. क्या ये कानून बन जाने से मधुकोड़ाओं, टाटाओं, अम्बानियों, ए राजाओं, हसनअलिओं, नीरा राडियाओं के नए सिरे से पैदा होने की कोई भी गुंजाईश नहीं बनेगी. अपराधी के लिए मौत से बढ़कर और कौन सा कानून बनाया जा सकता है.लेकिन फिर भी हत्या, लूट, डकैती नहीं थम रहीं हैं. सच तो ये है की कानून का पालन ही कायदे से नहीं हो रहा है.इसकी आवाज सुनाने के किये कौन से कानूनी कान सक्रिय होंगे. भारत में ये इस तरह के अन्य आंदोलनों का अग्निपथ है. दौड़ते रहिये. रहबरों की छाँव में.
भ्रष्टाचार में डूबे नेताओं और नौकरशाहों की नकेल कसने के लिए मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने ये आन्दोलन इसलिए छेड़ा है क्योंकि वे देश में जन लोकपाल नाम की एक ऐसी संस्था चाहते हैं, जो एमपी से लेकर पीएम तक सबको भ्रष्टाचार की सज़ा देने में सक्षम हो. क्या आप भी ऐसा चाहते हैं? कई लोग इसे स्वतंत्रता के दूसरे संग्राम की संज्ञा दे रहे हैं। भ्रष्टाचार से स्वतंत्रता।
अन्ना हज़ारे और उनसे जुड़े लोगो का भी यही मानना है कि जन लोकपाल बिल भ्रस्टाचार की जड़ो पर वार करेगा। शायद इसीलिए कई नेता इससे डर भी रहे हैं। सत्ता पर बैठे लोग केवल जनता की सुनते हैं इसीलिए अन्ना हज़ारे जन आंदोलन का सहारा ले रहे हैं. जन लोकपाल बिल में इस बात का प्रावधान है कि 1 साल में तहकीकात और दूसरे साल में न्याय प्रक्रिया पूरी की जाए। और सज़ा अपराध के मुताबिक उम्रकैद तक की हो। भ्रस्टाचार से निबटने के लिए कड़े कानून और कड़ाई से उसके पालन की ज़रूरत है. मेरा यह मानना है कि भ्रष्टाचार कैंसर की तरह ही हमारे देश को खोखला कर रहा है। शर्म आती है जब लाखो करोड़ो के भ्रष्टाचार की बात होती है. जब जनता गलत लोगो को चुनकर संसद में भेजना बंद करेगी या फिर लगातार अपने सांसद पर दबाव बनाएगी तो अपने आप ही सरकार और सांसद दबाव में आ जाएंगे। लेकिन मैं इस बात से सहमत हूं कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाई की ज़रूरत है. अगर सरकार समय रहते चेत गई तो इसकी ज़रूरत नही पड़ेगी लेकिन अगर सरकार मिश्र की सरकार की तरह जनता के आक्रोश की अनदेखी करती रही तो संभवत् एक दिन दिल्ली में भी तहरीर चौक बने। हालाँकि इसकी संज्ञा अभी से ही दी जा चुकी है लेकिन कई ऐसे बदलाव हैं जिनकी इंडिया को सख्त जरुरत है . अन्ना हज़ारे के समर्थको का कहना है कि इसका फायदा आम आदमी को भी होगा - आपके घर गैस नही आ रही है, पुलिस आपकी नही सुन रही है, रोज़मर्रा के भ्रष्टाचार से जूझने में भी लोकपाल और लोकायुक्त की मदद मिलेगी। क्यो - क्योकि जवाबदेही बढ़ेगी। नुक्सान अगर हुआ है तो भरपाई भ्रष्ट अफसर से होगी.
इधर अगर बात करें तो बिहार में हुई प्रगति वाकई काबिले तारीफ है। और हर सरकारी अधिकारी, विधायक और मंत्री को अपनी संपत्ति का ब्योरा देना चाहिए। और यह परिवर्तन तभी आएगा जब आप और हम - जनता मिलकर इसके लिए दबाव डालेंगे और जो परिवर्तन लाता है हमारा जीवन बेहतर बनाता है उसका सहयोग करेंगे। आखिर देश तो हमारा ही है। लाभ हम सबका होगा. केंद्र की सरकारें पिछले 40 सालों से लोकपाल विधेयक पारित कराने में असफल रही हैं। राज्यों में लोकायुक्त तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी सफेद हाथी बनकर रह गयी है। दूसरी ओर लोकपाल विधेयक अब तक लोकसभा में आठ बार पेश करने के बाद भी पारित नहीं कराया जा सका है। देखिए आप और हम सब भ्रष्टाचार से परेशान हैं। इसीलिए हम सबको मिलकर सरकार पर दबाव बनाने की ज़रूरत है कि वो एक समय सीमा के अंदर, पारदर्शी तरीके से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए। सिविल सोसाईटी की इसमें अहम भूमिका है। अन्ना हज़ारे, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल इसी सिविल सोसाईटी का हिस्सा हैं जिन्होंने परिवर्तन की कोशिश की. इसमें कोई संदेह नही जब सरकार पर दबाव होता है तो सरकार की जवाबदेही बढ़ जाती है वर्ना तो आपका - हमारा सबका सिर टू जी, सीडब्लूजी, आदर्श आदि घोटालो से नीचा हुआ है.
उम्मीद यही कि लोग सच्चे मन से जागरूक होंगे और अपने सांसदो पर दबाव बनाएंगे कि उनकी जवाबदेही हो। अगर आज भाजपा जनलोकपालबिल के समर्थन में होने की बात कर रही है तो सवाल यह उठता है कि क्या आप लोग सरकार पर इतना दबाव बना पाएंगे कि सरकार जनलोकपाल बिल पर बहस करे. जी हां जो जनलोकपाल बिल है उसमें यह प्रावधान है कि अगर वहां किसी लोकपाल अथवा लोकायुक्त पर भ्रष्टाचार के आरोप हों तो दो महिने में उसकी पारदर्शी जांच होगी और फैसला लिया जाएगा। फिर नज़र रखना तो आपका हमारा काम है। जब मिश्र में जन आंदोलन चल रहा था तब तहरीर चौक पर जनता की असल शक्ति दिखी. वहां की सरकार ने मिडिया पर शुरू में ज़बरदस्त दबाव बनाया। लेकिन इंटरनैट फेसबुक और ट्विटर के आगे सरकार झुक गई। आज आपके मोबाईल में कैमरा है - माईक है - अगर आप कुछ गलत देखें तो तस्वीर लें, यू ट्यूब पर डालें या मीडिया को दे- देखिए कितनी जल्दी परिवर्तन आता है। जनता में बहुत शक्ति है. सरकार जनता की आवाज़ की अनदेखी नही कर सकती। सुभ - लोकपाल बिल में न सिर्फ कड़ी सज़ा का बल्कि भ्रष्ट नेता से पैसा वापस लेने का भी प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस संतोष हेगड़े और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की अहम भूमिका रही है इसे बनाने में।
घोटाला और भ्रष्टाचार से देश के मान सम्मान को ठेस पहुंचा है. ऐसे में जन लोकपाल कानून एक जरुरत बन गई है. उम्मीद है आप सभी अन्ना हजारे की इस मुहिम को मूर्त रुप देने तक सहयोग करेंगे.
अतुल कुशवाह
बी पी एन टाइम्स ग्वालियर
मोबाइल -07489007662
ई-मेल- atulkushwaha99@gmail.com
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