नगर निगम का मैजिक 15 दिन में खपा दिये अस्सी करोड़
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लखनऊ। लखनऊ नगर निगम ने एक और मैजिक कर दिखाया है। जहां बडे़ बडे़ विभाग योजनाओं के मद में साल भर में भी अस्सी करोड़ खर्च नही कर पाते हैं,वहीं नगर निगम का कमाल देखिये, नोट बंदी के दौरान विभिन्न मदों में टैक्स के रूप में जमा हुए करीब अस्सी करोड़ रूपये शहर के विकास के नाम पर मात्र 15 दिन में ही खपा दिये। केन्द्र सरकार द्वारा की गयी नोटबन्दी की घोषणा के दौरान आम जनता पर बकाया करों की वसूली के लिए पुरानी मुद्रा जमा करने का नगर निगम ने जमकर फायदा उठाया। इस दोरान जमा हुआ करीब ८० करोड़ रूपये ठेकेदारों के बकाया भुगतान और विभागीय वेतन में खर्च कर दिए | इस सम्बन्ध में एक आर टी आई एक्टिविस्ट ने जानकारी भी नगर निगम से मांगी है।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक आठ नवम्बर 2016 से 31 मार्च 2017 तक हुई नोटबन्दी के बाद नगर निगम में विभिन्न तरह के टैक्स जमा करने वालों का तांता लग गया था। जिन लोगों ने वर्षो से टैक्स जमा नही किया था वह भी अपने पुराने नोटों को ठिकाने लगाने के लिए नगर निगम में लाइन लगाये हुए थे। जिसके चलते नगर निगम का जनता से लेकर विभागों तक पर बकाया धन करोड़ों में वापस आ गया। सूत्रों की मानें तो इस नोटबन्दी से नगर निगम को केवल करों के दम पर करीब अस्सी करोड़ की इनकम हुई थी। अस्सी करोड़ विभाग में जमा हुए यह कोई कमाल नही था। कमाल यह था कि टैक्स के रूप में जमा हुई जनता की गाढ़ी कमाई को नगर निगम ने मा़त्र पन्द्रह दिनों में ही ठिकाने लगा दिया। सूत्रों का कहना है कि इस अस्सी करोड़ की धनराशि को नगर निगम ने शहर के विकास कार्यो एवं अन्य मदों के भुगतान में मात्र पन्द्रह दिनों में खर्च कर दी गयी। जबकि किसी नये विकास कार्य को कराने के लिए पहले टेण्ड़रिंग की औपचारिकता और फिर काम शुरू होने पर रनिंग पेमेंट किया जाना ही संभव होता है,और इस काम को शुरू करने के लिए कम से कम तीस दिन का समय लगना स्वाभाविक माना जाता है।
जनता से सुविधा शुल्क के नाम पर लिया जाने वाला टैक्स नगर निगम के कई घोटालों में शामिल हो गया है। जनता से टैक्स के रूप में जमा हुए इस धन का खर्च जनसुविधाओं के क्रियान्वयन में खर्च किया जाना चाहिए। क्योंकि नगर निगम जनता से कर वसूली इस लिए ही करता है कि वह इस टैक्स के बदले उन्हें जनोपयोगी साफ सुथरी व्यवस्था दे सकें,न कि उनकी गाढ़ी कमाई ठेकेदारों के भुगतान और विभागीय वेतन पर खर्च किया जाये।
जब इस सम्बन्ध में नगर आयुक्त उदयराज से बात करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने फोन नही उठाया। व्हा्टस्अप पर व्यस्त दिखे। जब उन्हें मैसेज किया गया तो भी उन्होंने न तो फोन उठाया और न ही मैसेज का कोई जवाब दिया।
सफाई के नाम पर नगर निगम ने करोड़ों किये साफ
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लखनऊ। सत्रह अगस्त से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने जहां प्रदेश में स्वच्छता अभियान की शुरूआत की है,वहीं प्रदेश की राजधानी लखनऊ गंदगी से बेहाल है। सफाई के नाम पर नगर निगम ने करोड़ों रूपये साफ कर दिये। शहर की सफाई की जिम्मेदारी वाले विभाग नगर निगम मे लगभग 4500 संविदा कर्मचारी और करीब चार करोड़ रूपये प्रतिमाह उनका वेतन । इनमें से करीब 2500 सफाई कर्मचारी है। जिन पर शहर की सफाई का जिम्मा है। सैंकड़ों सफाई कर्मचारी होने के बाद भी शहर में गंदगी ने सड़कों से लोगों का निकलना मुश्किल कर दिया है।लेकिन नगर निगम के जिम्मेदार अफसर फर्जीवाडे़ में इतना मशगूल है कि उन्हें न तो सीएम के स्वच्छता अभियान की चिन्ता है और न ही शहर को साफ रखने की फिक्र। सारा सफाई का काम सिर्फ कागजों पर ही चल रहा है।
पहले पीएम मोदी और फिर सीएम योगी स्वच्छता अभियान पर जितना जोर दे रहे है वही प्रदेश के नगर निगमों की मनमानी से शहरों का गंदगी से दम फूल रहा है। प्रदेश के दूसरे शहरों को छोड़कर अगर राजधानी लखनऊ की बात करें तो यहां पर कचरा सड़कों पर इस कदर बिखरा रहता है कि लोगों का सड़कों पर चलना दूभर हो गया है। सफाई का सारा काम लखनऊ नगर निगम सिर्फ कागजों पर ही कर रहा है। जबकि सफाई व्यवस्था पर नगर निगम प्रतिमाह करोड़ों रूपये खर्च कर रहा है।अगर नगर निगम में मैन पावर सप्लाई के मामले की जांच करायी जाये,तो कई सौ करोड़ का घोटाला सामने आयेगा।
नगर निगम लखनऊ 4500 संविदा कर्मचारियों का प्रतिमाह करीब चार करोड़ वेतन भुगतान कर कामकाज कराने का दावा करता है। इसके लिए निजी क्षेत्र की करीब 50 कार्यदायी संस्थाएं कार्य कर रही है। सूत्रों की मानें तो इनमें अधिकांश अफसरों व कर्मचारियों के परिवारीजनों की संस्थाएं जो इनका संचालन कर रही हैं। 32 माह से नगर आयुक्त 10 वर्ष से अपर नगर आयुक्त और सात वर्षो से लेखाधिकारी निगम में तैनात है। लेकिन आज तक इन संस्थाओं की समीक्षा तक नही हुई कि निगम में कार्यरत यह संस्थाएं श्रम विभाग में नियमानुसार पंजीकृत हैं या नही। यही नही सूत्रों की मानें तो निगम में कागजों पर करीब 2500 सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं,जबकि हकीकत में 2500 सफाई कर्मचारियों में से सिर्फ 25 फीसदी ही काम कर रहे है। यही हाल अन्य संविदा र्किर्मयों का है। नगर निगम में तो यही कहा जाता है कि खाता न बही जो नगर आयुक्त कहें वही सही।
केन्द्र सरकार का प्राविधान है कि कार्यदायी संस्थाओं द्वारा निगम में सप्लाई किये जा रहे कर्मचारियों का ई.पी.एफ और ई.सी.एस की धनराशि काटी जानी चाहिए। लेकिन भारत सरकार के इस गजट के बाद भी नगर निगम में कार्यरत आउट सोर्सिंग के एक भी कर्मचारी का ई.पी.एफ और ई.सी.एस नही काटा रहा है। कर्मचारियों ने इस हक को पाने के लिए कई बार हंगामा भी काटा लेकिन अभी तक न्याय नही मिला।
कार्यदायी संस्था के कर्मचारियों को निगम कम से कम 7500 रूपये प्रति कर्मचारी प्रतिमाह भुगतान करता है,जबकि संस्थाओं के ठेकेदारों द्वारा उन्हें 4000 से 4500 रूपये ही वेतन के रूप में दिये जाते है। यही नही अगर कोई कर्मचारी महीनें में सिर्फ 20 दिन ही काम करता है तो भी संस्था को निगम उक्त कर्मचारी का पूरे 30 या 31 दिन का वेतन भुगतान करता है। जबकि कर्मचारी को न दोबारा नौकरी मिलती है और न ही वेतन, और इस धन की बंदरबाट निगम और संस्था के बीच हो जाती है। यही वजह है कि कम पगार और ई.पी.एफ व ई.सी.एस न मिलने से कर्मचारी लम्बे समय तक निगम में टिक नही पाते हैं । यही नही निगम के पार्षदों को 10-10 आदमी दिये गये है,इसी तरह अफसरों के घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी इन्हीं संविदा कर्मचारियों की होती है।
गौरतलब बात यह है कि इन कर्मचारियों को ठेकेदार न तो परिचय पत्र देते हैं,और न ही वेतन का कोई प्रमाण देते है और वहीं निगम के पास भी इन कर्मचारियों का कोई ब्यौरा उपलब्ध रहता है। इस सम्बन्ध में संस्था संचालकों का कहना होता है कि कर्मचारी बदलते रहते है। इस लिए सबका ब्यौरा रख पाना संभव नही है।
नगर निगम प्रशासन इन सब मामलों में मौन रहकर भ्रष्टों को संरक्षण दे रहा है ,और इस संरक्षण के एवज में एक मोटी रकम चढ़ावे के रूप में उच्चस्तर तक अधिकारियों के पास पहुंच रही हैं।
2004 से शुरू हुआ संविदा पर काम कराने का ट्रेंड
सूत्रों की मानें तो संविदा पर काम कराने का चलन सरकार ने वर्ष 2004 में शुरू किया था। उस समय नगर आयुक्त एस पी सिंह थे। उस समय निगम संविदा कर्मचारियों का चेक के माध्यम से डायरेक्ट भुगतान करता था। लेकिन एस पी सिंह ने अपने संविदा कर्मचारियों को संस्थाओं को सौंप दिया जिससे करोडों के बजट का बंदरबांट हो सके।
सफाई में लापरवाही पर सस्पेंड नही बर्खास्त होंगे दोषी
इस सफाई अभियान प्रकरण पर जब नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि सफाई के मामले में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नही की जाये। लापरवाही करने वाले अफसर या कर्मचारियों को कतई बख्शा नही जायेगा। उन्होंने कहा कि शहर को सुन्दर रखना नगर निगम का काम है,और इस मामले में लापरवाही करने पर दोषी पाये जाने वाले को निलम्बित नही बर्खास्त किया जायेगा।
गौर तलब है नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना स्वयं प्रत्येक माह के पहले शनिवार को शहर के कुछ क्षेत्रों में सफाई कर लोगों से साफ सफाई के प्रति जागरूक रहने की अपील करते है।
नगर निगम के सफाई कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन
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लखनऊ:- शहर कि गन्दगी को लेकर अब लोगों का गुस्सा फूटने लगा है .कई दिनों बाद कैसरबाग क्षेत्र में सफाई करने पहुंचें नगर निगम के सफाई कर्मचारियों को मोहल्ले वालों ने जमकर उनकी पिटाई कर दी।इस पिटाई से खफा सफाई कर्मचारियों ने आज निगम के कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन किया और नगर निगम प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की।
आपकों बतातें चलेकि सफाई कर्मचारी आशा सहित तीन कर्मचारियों की कल लोगों ने पिटाई कर दी। जिसमें सुपरवाईजर भी शामिल रहा. सफाई कर्मचारियों के पिटने की खबर पर नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना और नगर आयुक्त उदय मौके पर पहुंचें सफाई कर्मचारियों को भरोशा दिया कि इस घटना को अंजाम देने वाले बक्शें नहीं जायेगें।
लेकिन इसके बाद एफ.आई.आर दर्ज नहीं की गयी. इस बात से नाराज सफाई कर्मचारियों ने दुबारा प्रदर्शन किया और कहा कि यदि दोषियों पर कार्यवाही नहीं होती तो यूनियन का कोई भी सदस्य नगर साफ़ नहीं करेगा.उधर सफाई कर्मचारियों के नेता राज वाल्मीकि ने कहा कि पिछले तीन महीनों से कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दिया गया है.ऐसे में कर्मचारियों का पिटा जाना ना ही बर्दास्त किया जाएगा और न ही सहा जाएगा।
मौके पर हुई नगर निगम टीम फरार
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लखनऊ।राजधानी लखनऊ में चलाये जा रहे नगर निगम के अभियान की दहशत दो युवकों को भारी पड़ गयी। दहशत में आये युवक ट्रांसफार्मर से झुलस गए। दोनों करंट में झुलसे तो अफरा-तफरी मच गई। आनन-फानन में स्थानीय व्यापारियों ने दोनों को ट्रॉमा पहुंचाया जहां दोनों की हालत नाजुक बनी हुई है।
जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार को नगर निगम द्वारा इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे से अभियान प्रस्तावित था। दोपहर करीब 12:30 बजे नगर निगम दस्ता जेसीबी के साथ भारी पीएसी बल लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे पर पहुंच गया। जहां 11 हजार लाइन वाला ट्रांसफार्मर रखा हुआ है। इसी ट्रांसफार्मर से सटकर जूस की दुकान रखी है। जैनुल बहराइच गए हुए है और दुकान पर जैनुल का बेटा मन्नान व कर्मचारी अनिल मौजूद था। दस्ते को देखते हुए मन्नान व अनिल आनन-फानन में समान हटाने की जुगत में लग गए। दहशत में आये मन्नान और अनिल समान बटोर ही रहे थे कि पास लगे ट्रांसफार्मर की चपेट में आ गए और झुलस गए। व्यापारियों ने टैक्सी में लादकर दोनों को निकट अस्पताल पहुंचाया जहां से उन्हें ट्रामा रेफर कर दिया गया। फिलहाल ट्रामा में दोनों का इलाज जारी है। जिसमें अनिल की हालत नाजुक बताई जा रही है। इंस्पेक्टर माड़ियांव राघवन सिंह ने बताया कि फिलहाल कोई तहरीर प्राप्त नही हुई है मामले की जांच की जा रही है।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि नगर निगम दस्ता जमकर तोड़फोड़ कर रहा था। मन्नान और अनिल समान हटा रहे थे लेकिन नगर निगम उनके काउंटर की तरफ जेसीबी बढ़ाने लगा। एकाएक जब हादसा हुआ तो नगर निगम कर्मचारियों ने उनका हालचाल लेना भी मुनासिब नहीं समझा और हादसा होते ही नगर निगम टीम मौके से फरार हो गयी।
अरबों बहे नगर निगम के सीवर में,फिर भी लागू नही हुआ D E S
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पीएम और सीएम की सरकारी विभागों के कामकाज में पारदर्शिता लाने के प्रयासों का प्रदेश की राजधानी में ही बुरा हाल है | इसकी बानगी नगर निगम लखनऊ में देखने को मिल सकती है | 9 वर्ष बाद भी नगर निगम डबल इंट्री सिस्टम लागू नही कर पाया |निगम की बैलेंससीट मैनुअल बन रही है,और सात वर्षो से निगम की वेबसाईट पर अपलोड तक नही किया गया है | इसी के साथ निगम से सम्बंधित अन्य सभी जानकारियों का अभाव देखने को है |
डबल इंट्री सिस्टम ( D E S) लागू न करने के पीछे निगम की एक सोची समझी रणनीति मानी जा रही है | अफसरों को खोफ सता रहा है कि निगम में ये सिस्टम लागू हो गया तो उनके द्वारा की जा रही लूट का भंडा फोड़ हो सकता है| निगम की बेशकीमती संपत्तियों के ब्यौरे सहित आय व्यय से सम्बंधित सभी जानकारियाँ सार्वजानिक हो जाने से अब तक हुई हजारो करोड़ की लूट अफसरों के गले की हड्डी बन सकता है | यही वजह है की सिस्टम को लागू करने में अफसर ही रोड़ा बने हुए है| जबकि केंद्र और राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना जवाहर लाल नेहरु अरबन मिशन योजना से मोटी ग्रांट लेने के लिए इस सिस्टम का तानाबाना नगर निगम द्वारा बुना गया था | क्योंकि मानक के अनुसार इस योजना का लाभ केवल उन्ही निगमों को मिल सकता था जहाँ पर डबल डाटा इंट्री सिस्टम लागू होगा |
इसी के चलते नगर निगम ने इस मोटी रकम वाली बड़ी योजना को पाने के लिए आनन्-फानन में कम्पयूटरों की बड़ी संख्या में व्यवस्था की, और इसके लिए बाहर से C.A रचना रस्तोगी को हायर किया ,और सॉफ्टवेर डेवलपिंग का काम अतीजा एंड एसोसिएट को दे दिया | कंपनी और C.A से एग्रीमेंट भी नगर निगम ने किया ,कि जल्दी ही सिस्टम लागू करेंगे | बैकलाग की एंट्री होगी,एग्रीमेंट के तहत 2004 से अब तक (2017) हर साल की बैलेंस सीट,फायदा और नुकसान के साथ निगम की संपत्ति कब्जेदारी,अवमुक्त हुई धनराशि सामान की खरीद-फरोख्त का स्टॉक,प्रचार,प्रसार,का आय-व्यय,नीलामी,ठेकेदारों को काम और भुगतान के ब्योरे यानी निगम का पाई-पाई का हिसाब रोजाना लिखा जाना था, और साल के अंत में निगम की बैलेंस सीट निगम के सदन में रखा जाना था | भारत सरकार ने सभी निकायों को निर्देश दिए कि जिन निकायों में डबल इंट्री सिस्टम लागू नहीं है उसे JNURML में शामिल नहीं किया जायेगा, यानी उन निकायों को विकास की ग्रांट नहीं मिलेगी |
इस सिस्टम के तहत करोंड़ों रूपए खर्च हो चुके है,कम्पयूटर खरीद से लेकर C.A रचना रस्तोगी की 40 हजार प्रतिमाह की पगार पर नियुक्ति व उनके भांजे शुभम रस्तोगी को नगर निगम लखनऊ में नोकरी देने तक की कार्यवाई आनन फानन में की गई थी | सूत्र बताते है, कि डबल एंट्री सिस्टम केंद्र सरकार की लगभग तीन अरब की लागत वाली योजना (जवाहर लाल नेहरु अरबनमिशन योजना)को लखनऊ नगर निगम में लागू कराने के लिए हुआ | इस योजना के तहत शहर के विकास के लिए जहाँ सीवर लाइने नहीं है वहां इस योजना के तहत सीवर लाइन बिछाकर सीवर को कनेक्ट करना था |
लेकिन निगम में डबल एंट्री सिस्टम ( D E S ) आज तक नहीं लागू हो पाया | जबकि इस सिस्टम को नगर निगम कागजो पर जिन्दा रख केंद्र और यू.पी सरकार से अब अरबो रूपए की ग्रांट ले चुका है | इस ग्रांट को उत्तर प्रदेश जल निगम और नगर निगम ने शहर की सीवर लाइनों को डालने के नाम पर खर्च किया गया | लेकिन करोंड़ों रूपए खर्च हो जाने के बाद भी आज तक इन सीवर लाइनों की कनेक्टिंग का काम पूरा नहीं हो सका , साथ सॉफ्टवेयर कंपनी सहित कम्पयूटर खरीद और पूरे सिस्टम को डेवलप करने के नाम पर करोंड़ों रूपए खर्च हो चुके है लेकिन रिजल्ट जीरो है |
गोरतलब है कि निगम में मैनुअल सिस्टम था इसलिए सॉफ्टवेर डेवेलप करने वाली कंपनी को निगम के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना था, वर्षो गुजर जाने के बाद 2017 भी समाप्ति की ओर है लेकिन न तो कर्मचारी प्रशिक्षित हुए ,और न ही निगम में आय-व्यय का प्रतिदिन का लेखा-जोखा की एंट्री हो रही है | C.A की नौकरी पक्की,उसके भांजे शुभम रस्तोगी भी बिना काम के आराम से नौकरी कर रहे है |
योजना का बदला नाम, लेकिन लूट यथावत
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हैरत तो यह है,करोंड़ों रूपए की यह महत्वाकांक्षी योजना का नाम मोदी सरकार ने बदल कर अमृत योजना रख दिया है,योजना का नाम बदला, लेकिन निगम ने लूट की प्राथमिकता यथावत है | पिछली योजना को बर्बाद करने वाले सभी अधिकारी व कर्मचारी इस योजना के भी कर्ताधर्ता बना दिए गए | गौरतलब है कि JNURML योजना फ्लाप हुई,घोटाला किया गया, लेकिन न नगर आयुक्त और न ही शासन ने इसकी जांच कराना उचित समझा | इससे साफ़ पता चलता है कि इसके पीछे अब तक मंत्री और अफसरों का गठजोड़ काम रहा है | यह सिलसिला मायावती सरकार में जल निगम के एम् डी रहे नवनीत सहगल के समय से शुरू हुआ | इसके बाद अखिलेश सरकार के नगर विकास मंत्री आज़म खां,पूर्व नगर विकास सचिव एस.पी सिंह व नगर आयुक्त उदयराज की तिगड़ी ने अरबो रूपए पानी में बहते देखा, लेकिन स्वहित में किसी ने कुछ नहीं बोला | जल निगम व नगर निगम के अफसरों के मौन ने खजाना खाली कर दिया | डबल एंट्री सिस्टम लागू न होने से कर्मचारियो के वेतन की चेके बाउंस हो रही है P.F की चेके भी बाउंस हो रही है ठेकेदारों की भी चेके बाउंस हो रही है लेकिन नगर आयुक्त ने कसम खा रखी है कि डबल एंट्री सिस्टम नहीं लागू होने देंगे |
घोटाला करने वाले ही लगाये गये अमृत योजना में
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जवाहर लाल नेहरु अर्बन मिशन योजना में घोटाला करने वाले अफसर व कर्मचारी (PIU)अमृत योजना में लगा दिया गया है | अर्बन मिशन योजना का सञ्चालन करने वाले पी.के श्रीवास्तव जोन अधिकारी-3 हुआ करते थे,आज वह प्रमोशन के बाद भी नगर निगम लखनऊ में ही जमे हुए है 10 वर्षो से अधिक समय से निगम में जमे पी.के श्रीवास्तव अब अमृत योजना को देख रहे है | स्वच्छ भारत मिशन भी इन्ही के पास है | नगर आयुक्त का खुला संरक्षण इस अपर नगर आयुक्त को प्राप्त होने से मलाईदार काम मिला है|
गौरतलब तो यह है कि पी.एम और सीएम की सारी प्रथमिकताये नगर निगम के लिए बौनी है ,प्रदेश की राजधानी लखनऊ का यह नगर निगम सैकड़ो करोंड़ के घोटाले के बाद भी सब ठीक है की बात कहकर जनता और सरकार से छल कर रहा है | केंद्र सरकार और यू.पी सरकार के पैसे का सदुपयोग हुआ या नहीं ! इसकी जांच शासन स्तर पर टीम गठित कर होनी चाहिए|
नगर निगम के आठ अफसर गंदगी मिलने पर नपे
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सफाई के मामले में लापरवाही नगर निगम अधिकारियों व कर्मचारियों को उस समय भारी पड़ी जब बीते गुरूवार को नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना खुद शहर की सफाई व्यवस्था देखने निकल पड़े | राजधानी का गन्दगी से हाल बेहाल देख मंत्री जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुच गया, जिसका खामियाजा नगर निगम अधिकारियों को निलम्बित होकर भुगतना पड़ा | मंत्री श्री खन्ना ने नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.पी के श्रीवास्तव सहित तीन को प्रतिकूल प्रविष्ट देने के साथ ही आठ अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित कर दिया |
विदित हो कि 2 दिन पहले फर्स्ट आई न्यूज़ ने लखनऊ में बढ़ रही गंदगी को लेकर और सफाई व्यवस्था पर होने वाले करोड़ों के खर्च के सम्बन्ध में खबर प्रकाशित की थी, जिसको जनता द्वारा काफी सराहा गया और नगर विकास मंत्री श्री खन्ना ने भी संज्ञान लिया | जिसके चलते कल सुबह नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने बालू अड्डा,रमैयाजीपुरम का दौरा किया और बालू अड्डे के पास मैनहोल का ढक्कन खुला पाया जिस पर मंत्री जी ने नाराजगी जताई और सहायक अभियंता आर.के तिवारी से कहा इसे तत्काल ठीक कराओ,मै दोबारा दौरा करने आऊंगा | और जब नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना कलेक्ट्रेट के पीछे पहुंचे तो वहां पर पड़े कूड़े के ढेर को देखकर उनका गुस्सा बढ़ गया | उसके बाद मंत्री अमीनाबाद का दौरा करने पहुंचे तो वहां की जनता ने उनसे सफाई न होने की शिकायते की |
मंत्री ने जब चारबाग रेलवे स्टेशन के किनारे और मवैया पुल के आगे मिल एरिया दौरा किया तो कई जगहों पर कूड़े का ढेर पाया तो इस पर भी नाराजगी जताई | गौरतलब है कि मंत्री कई बार दौरे पर निकले,लेकिन व्यवस्था में कोई सुधार नहीं पाया | जिसके चलते मंत्री सुरेश खन्ना ने कार्यवाई करते हुए नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.पी के श्रीवास्तव सहित तीन को प्रतिकूल प्रविष्ट देने के साथ ही आठ अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित कर दिया | निलंबित अधिकारियो में जोन 2 के जोनल अधिकारी और नगर अभियंता भी शामिल है | इससे पहले भी 19 अगस्त को मंत्री ने गंदगी मिलने पर 9 कर्मियों को निलंबित किया था|
नगर आयुक्त ने करोड़ों के टेंडर घोटाले में कमेटी की क्यों नही की जांच !
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लखनऊ। नगर निगम लखनऊ में विकास कार्याे को लेकर होने वाले टेण्डरों में भी करोड़ों का घोटाला है। निगम में ई टेण्डरिंग प्रणाली मजाक बनकर रह गयी है। टेण्डर घोटाला करने वाले अफसर आज भी अपनी कुर्सियों पर बरकरार हैं जबकि इस मामले में निगम का एक बाबू बलि का बकरा बन गया हैै, और वह लगभग 20 करोड़ के टेण्डर घोटाले में बीते दो सालों से निलम्बित है। यह नही दो अन्य जोन में भी इसी श्रेणी का घोटाला सामने आया ,लेकिन वहां पर न बाबुओं पर कार्रवाई की गयी और न ही अफसरों पर। मामला साफ है। उच्चस्तर पर पहुच गया चढ़ावा। कहा जाता है कि नगर आयुक्त का इन घोटालेबाज अफसरों को खुला संरक्षण दिये जाने से इन दागी अफसरों की पौं बारह है। जबकि इन टेण्डरों के कमेटी के अनुमोदन मिलने के बाद इन टेण्डरोें की स्वीकृति स्वयं नगर आयुक्त ने दी है। कमेटी में आधा दर्जन सदस्य होने के बाद भी गाज सिर्फ एक बाबू पर ही गयी। यदि बाबू दोषी है तो उसे दो सालों से अब तक सिर्फ निलम्बित क्यों रखा,उसे बर्खास्त क्यों नही किया, और नगर आयुक्त ने करोडों के टेंडर घोटाले की जिम्मेदार कमेटी की भूमिका की जांच क्यों नही की ।
घोटाले का यह मामला जोन पांच का है। टेण्टर प्रक्रिया के लिए विभाग द्वारा सबसे पहले सबसे ज्यादा सरकुलेशन वाले अखबारों में विज्ञापन दिया जाता है,लेकिन नगर निगम लखनऊ में ऐसा नही होता है। यहां पर राजधानी के उन समाचार पत्रों में टेण्डर की सूचना प्रकाशित करने के लिए भेजी जाती है जिसका न तो कोई सर्कुलेशन है और न ही कोई महत्व। यही नही इन अखबारों में भी टेण्डर की सूचना छापी ही नही गयी और नगर निगम में फर्जी तरीकें से टेण्डर सूचना को कम्प्यूटर द्वारा प्रिन्ट निकाल कर फाइल में लगा दिया गया।
ऐसे ही एक मामले में शिकायत के बाद करीब दो वर्ष पहले जोन-5 के एक लिपिक राजेंद्र यादव को नगर निगम प्रशासन ने निलंबित कर दिया। लगभग २० करोड़ के एक टेंडर के मामले में बाबू राजेंद्र प्रसाद को निलंबित कर दिया गया | इस टेंडर प्रकिया में अखबारों में सूचना प्रकाशित कराए बगैर ही टेंडर पूल करा दिए गये | हैरत तो इस बात की है जिन अखबारों के नाम फ़ाइल में लगाए गये और प्रकाशन डेट डाली गयी ,वह सब फर्जी था जिस तारीख को टेंडर की सूचना अखबारों में प्रकाशित कराने का फर्जी जाल बुना गया उस तारीख में कम्प्यूटर से प्रकाशित सूचना के प्रिंट निकाल कर फ़ाइल में लगा दिए गये |
यह कि नगर निगम में विकास कार्यों को करने के लिए होने वाले टेंडरों को परीक्षणोंपरांत अंतिम रूप देने हेतु कमेटी गठित है, इस कमेटी में अपर नगर आयुक्त , चीफ इंजिनियर, मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी, नगर अभियंता सदस्य के रूप में शामिल रहते है। लेकिन करोड़ों रुपये कि टेंडरिंग में हुई गड़बड़ी के लिए दोषी मानते हुए एक लिपिक को ही निलंबित किया गया। शेष कमेटी यथावत है | आखिर क्यों नगर निगम प्रशासन ने कमेटी के अन्य किसी सदस्य से पूछताछ तथा अन्य किसी जांच को कराना उचित क्यों नहीं समझा । टेंडर कमेटी का काम है कि टेन्डर नियमो के अंतर्गत हो रहा है कि विपरीत, इसकी निगरानी रखे। यदि लिपिक ने कोई गलती किसी लालच में की तो कमेटी के अन्य सदयों ने इस गड़बड़ी को क्यों नहीं देखा। मामला खुला तो नगर निगम प्रशासन नगर लिपिक को निलम्बित कर पूरे प्रकरण को ठन्डे बस्ते में डाल दिया । जबकि इतने बड़े मामले को अकेले कोई बाबू अंजाम नही दे सकता है | जबकि निलंबित बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने लिखित रूप में अपनी सफाई में कहा कि ये काम ई –टेंडरिंग सेल का है और इसके लिए राहुल जिम्मेदार है |
लिपिक दो वर्षों से निलम्बित है | नगर निगम प्रशासन जाँच के बहाने मामले को लटकाये हुए है, यदि जाँच निष्पक्ष होती है, तो कमेटी के सभी सदस्यों के विरुद्ध कार्यवाही तय है, लेकिन इस पूरी कमेटी को नगर आयुक्त का संरक्षण होने से सईंया भये कोतवाल तो डर काहे का , की कहावत चरितार्थ हो रही है । जब कि जोन-1 में भी ऐसे ही मामले में लिपिक अंकुर सिंह व दो अन्य को दोषी पाया गया,और आरोप पत्र भी दिया गया | लेकिन नगर निगम प्रशासन ने इन सभी कर्मचारियों को बरी कर दिया। जो दोषी है वो काम कर रहे है, इस मामले कि जांच नगर निगम के अधिकारियों से हटाकर शासन के किसी अन्य विभाग से करायी जानी चाहिए। नगर निगम के विभिन कार्यों में आई करोड़ों की धनराशि के उपयोग की स्थलीय जांच कराई जाये, तो अफसरों एवं ठेकेदारों के एक बड़े गठजोड़ का खुलासा हो सकता है। अखिलेश सरकार में इस खुली लूट को जानकर भी तत्कालीन महापोर एवं वर्तमान में उपमुख्य मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी कुछ नहीं कर पाए | वजह नगर निगम प्रशासन को सपा सरकार और उसके नगर विकास मंत्री आज़म खां एवं पूर्व नगर विकास सचिव एस.पी सिंह का खुला संरक्षण मिला हुआ था।
बारिश ने खोली नगर निगम की पोल,देखें हाल -ए -लखनऊ
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लखनऊ|राजधानी लखनऊ में कल हुई जोरदार बारिश से लखनऊ की मुश्किलें बढ़ गयी है जगह-जगह पर जल भराव हो गया है ऐसे में नगर निगम की पोल खुल गयी है।शहर की कई कॉलोनियों में तो घुटनों तक पानी भर गया।आलम तो ये हो गया कि बारिश होने के कारण शहर में जगह-जगह जाम लग गया।डालीगंज अंडरपास में घुटनों तक पानी भर गया जिसके कारण 2 km. लम्बा जाम लग गया। पूरे शहर में नालो एवं नालियों के चोक होने से हुए जलभराव और घरो में घुसे पानी से आम जनता हलकान है|
मौसम की मूसलाधार बरसात ने राजधानी के लोगो का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है कई सरकारी कार्यालय भी इस बरसाती पानी से जलमग्न हो गए है| लखनऊ के चारबाग स्टेशन का हाल भी कुछ ऐसा ही है जहाँ घुटनों तक पानी भर गया है|
सड़को पर उफनाते गंदे पानी में लोग चलने को मजबूर दिखे|जलनिकासी की समुचित व्यवस्था न होने से राजधानी में संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा भी खतरा बढ़ गया है|स्कूल और कॉलेज जा रहे बच्चे भी जलभराव के गंदे पानी में चलने को विवश है|इसके बावजूद नगर निगम प्रशासन जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए गंभीर नहीं है|
हैरत तो इस बात की है कि मुख्यमंत्री द्वारा पूरे प्रदेश में चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान के बावजूद लखनऊ नगर निगम अपने दायित्वों के प्रति सजग नहीं है|यही वजह है,कि शहर की गन्दगी को देखने के लिए नगर विकास मंत्री को गलियों में घूमना पड़ रहा है|सड़क,गली और नालो की सफाई उनके कहने के बाद भी नगर निगम द्वारा नहीं कराई जा रही है|सीवर लाइनों के तमाम खुले मेंनहोल मौत को दावत देते दिख रहे है|
जानकार बताते है कि नगर निगम की साफ़-सफाई देखने और करने की जिम्मेदारी नगर निगम प्रशासन की है|लेकिन निगम के अधिकारी फील्ड में निकलने के बजाय वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर स्वहित की फाइलो को निपटाने में अधिक समय देते दिखते है|यही वजह है कि जब अफसर शहर की हकीकत देखना मुनासिब नहीं समझते तो,अधीनस्थ स्टाफ भी मनमर्जी से अपना काम कर रहा है|पिछले दिनों शहर में जगह-जगह दिखी गन्दगी के लिए दोषी नगर निगम के 8 अधिकारियो को निलंबन और प्रतिकूल प्रविष्टि की कार्यवाई से गुजरना पड़ा|नगर विकास मंत्री की इस कार्यवाई के बाद भी निगम के अफसर अभी भी अपनी जिम्मेदारी के प्रति सचेत नहीं दिख रहे है| नगर आयुक्त को फुर्सत नहीं है कि वह जनता की समस्याओ को देखने के लिए उनके बीच में जाए और हकीकत देखें|जबकि जन मानस में निगम के प्रति इतना आक्रोश है कि वह सफाई कर्मचारियों की पिटाई करने तक करने में पीछे नहीं है|फिर भी अफसर बेखबर है|
बतातें चलेकि मौसमी बरसात से राजा तालाब स्थित सचिवालय कालोनी में लोगों के घरों में पानी घुस गया|घरों के बाहर घुटने तक भरें पानी से लोगो का निकलना दूभर हो गया| निगम के अधिकारियों को स्थानीय लोगों ने इस बात से अवगत कराया लेकिन इसके बावजूद निगम के अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचें और लोग जलमग्न गंदें पानी से आने जाने के लिए विवश दिख रहें है इसी तरह से कपूरथला,डालीगंज,मवैया,हज़रतगंज,कैसरबाग,विकास नगर इंदिरानगर महानगर,गोमतीनगर,चारबाग़,कैसरबाग,कैंट आदि जगहों पर लोग जलभराव की समस्या से जूझते हुए नजर आये|
हाल ए नगर निगम लखनऊ-वेतन न पेंशन बस हो रहे ठेकेदारों के भुगतान
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लखनऊ|तीन महीने से संविदा कर्मचारियों को वेतन नही, पेंशनरों की पेंशन नही, यहाँ तक की नियमित कर्मचारियों की भविष्य निधि की धनराशि करीब 10 करोड़ जो अभी तक उनके खातें में नही गई ,लेकिन नगर आयुक्त की मेहरबानी से ठेकेदारों की बल्ले-बल्ले है | क्योकि हाउस टैक्स के नाम पर अगस्त में ही जमा हुए 27 करोंड चहेते ठेकेदारों के पेंडिंग भुगतान क्लियर कर हाउस टैक्स का सारा धन भी साफ़ कर दिया गया |
हाउस टैक्स के नाम पर सिर्फ अगस्त माह में जमा हुए 27 करोड़ रुपये कमीशन के खेल की भेंट चढ़ गए । निगम प्रशासन ने जनता की गाढ़ी कमाई के इस पैसे को ठेकेदारों के भुगतान पर खर्च कर दिया है । बताते हैं कि इससे पहले नोटबंदी के नाम पर आये 80 करोड़ रुपये 15 दिन में मनमाने ढंग से खर्च कर दिए थे, अब निगम ने एक और मैजिक दिखा दिया । गृहकर के रूप में एक माह में निगम में जमा हुए 27 करोड़ रुपये ठेकेदारों को भुगतान कर दिए गए । जनता पैसा अपनी सहूलियतों को पाने के लिए जमा करती रही और नगर निगम प्रशासन कमीशनखोरी के चलते भुगतान ठेकेदारों को करता रहा ।
इधर जमा उधर खर्च । यह रही एक माह की कार्यशैली । यदि निगम में डबल इंट्री सिस्टम लागू होता है तो 27 करोड़ कहाँ गए, इसका ब्योरा अपलोड होता । यही वजह है कि निगम प्रशासन डबल इंट्री सिस्टम नहीं लागू होने दे रहा है।
हैरत इस बात की है कि नगर निगम के संविदा कर्मचारियों को पिछले तीन माह से वेतन नहीं मिला है । जो कर्मचारी रिटायर हुए है उन्हें दो माह से पेंशन नहीं दी गयी , ग्रेज्युटी और अर्जित अवकाश का भुगतान भी नहीं किया गया । नियमित कर्मचारियों की भविष्य निधि की धनराशि करीब 10 करोड़ से अधिक है, जो उनके खाते में नहीं भेजी गयी । नगर निगम कंगाली की ओर है फिर भी न तो शाही खर्चे बंद हो रहे हैं और न ही ठेकेदारों के भुगतान।
जानकार बताते हैं कि शाही खर्चों का आलम यह है कि तमाम अपात्र अधिकारियों को चैंबर, ए.सी.,गाड़ी, ड्राइवर व नौकर दिए गए हैं। निगम में सी.यू.जी. फोन रेवड़ी की तरह बांटे जा रहे हैं ताकि कोई अधिकारी और कर्मचारी मुंह न खोल पाए।
बताते हैं कि नगर आयुक्त जहां एक ओर ठेकेदारों और अधीनस्थ अधिकारियों के प्रति दरियादिली दिखाकर निगम को कर्जी बना रहे हैं वहीं निगम में कार्यरत 56 संस्थाओं के कामकाज की समीक्षा करने के लिए उनके पास वक़्त नही हैं । शाही खर्चे पर अंकुश लगाकर निगम की आर्थिक स्थिति को कैसे सुधारा जाये । इस पर निगम प्रशासन का कोई चिंतन नहीं है। केंद्र व प्रदेश की सरकारें बदलीं । प्राथमिकताएं सरकार के सामने हैं, लेकिन नगर निगम लखनऊ का हाल वही है। राजनैतिक संरक्षण होने के कारण निगम के भ्रष्ट अफसर वर्षों से यहीं जमे हैं।
जब ऊपर वाला मेहरबान तो कौन पकड़ेगा चोर के कान
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लखनऊ । नगर आयुक्त उदयराज को अपने ही आदेश को लागू करने की फ़िक्र नहीं है | वजह साफ़ है कि स्पष्ट आदेश वह भी स्व हस्तलिखित,इसके बाद भी एक वर्ष तक अनुपालन न होने के पीछे मोटी रकम लेकर भ्रष्ट कर्मचारियों को संरक्षण देना है | चतुर्थ वर्ग कर्मचारी से कर निरीक्षक बने कर्मचारी को वित्तीय अनियमितता की शिकायत मिलने पर दोबारा चतुर्थ वर्ग कर्मचारी पद पर वापस भेजने का आदेश होने के एक साल बाद भी लागू नही हुआ | कम से कम इससे तो यही जाहिर होता है कि नगर निगम में किस तरह नियम क़ानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है | जब इस सम्बन्ध में अपर नगर आयुक्त नन्द लाल से जानकारी की तो उनका कहना है कि पत्रावली ढूडी जा रही है | जबकि सूत्रों की मानें तो हरी शंकर पाण्डेय की पत्रावली निगम से गायब है |
दर्जनों ऐसे मामले नगर निगम में है | जिसकी निगम में चर्चा भी नहीं होती है, लोग कहते है,कि पिछले तीन वर्षो में नगर निगम लखनऊ ऐसे ही गैर जिम्मेदार अफसरों के चलते कंगाली की ओर बढ़ रहा है | बताते चले कि नगर निगम में चपरासी से कर निरीक्षक बने जोन 6 में तैनात हरी शंकर पाण्डेय पर वित्तीय अनियमितता एवं अन्य आरोपों की पुष्टि हो जाने के बाद नगर आयुक्त उदयराज द्वारा 24 अगस्त 2016 को श्रेणी 2 के कर निरीक्षक को उसकी व्यक्तिगत पत्रावली पर किया गया आदेश मजाक बनकर रह गया है | निगम के किसी अधिकारी की हैसियत नहीं है कि वह नगर आयुक्त के स्पष्ट आदेश का क्रियान्वयन न होने दे | वजह साफ़ है कि एक वर्ष बाद भी आदेश लागू न होने के पीछे नगर आयुक्त का ही हाथ बताया जा रहा है | जानकार बताते है कि नगर आयुक्त ने कर निरीक्षक श्रेणी 2 हरी शंकर पाण्डेय को 24 अगस्त 2016 को उसे मूल वेतन पर प्रत्पावार्तित करने का आदेश दिया था और लिखा था कि इसकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध की जाती है | भविष्य में इनसे कोई वित्तीय कार्य टैक्स की वसूली में न लगाया जाए | लेकिन कर निरीक्षक को पुनः चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनाने का यह आदेश पिछले एक वर्ष से धूल चाट रहा है | सूत्र बताते है कि इस आदेश को लागू करने के पीछे खेल ही खेल है, कहावत है ना कि वही चोर और वही पहरुआ |
कहते है कि पाण्डेय ने लाखो रूपए पानी की तरह बहाकर फ़ाइल को अपने प्रभाव से दबवा रखा है | फ़ाइल ऊपर नगर आयुक्त के यहाँ आज भी मौजूद बताई जा रही है लेकिन यह बात गले के नीचे नहीं उतर रही है कि नगर आयुक्त का स्पष्ट आदेश उनकी मर्जी के बिना अपर नगर आयुक्त के यहाँ फाइल में दबा हुआ है|
भरोसेमंद सूत्र बताते है कि पूरा नगर निगम इस मामले की लीपा-पोती में लगा हुआ है| राजधानी में कई लोगो ने कर निरीक्षक हरी शंकर पाण्डेय की कार्यशैली और कार्यो में धांधली का आरोप भी लगाया है,लेकिन जब ऊपर वाला मेहरबान तो कौन पकड़ेगा चोर के कान ,ये कहावत सच होती दिख रही है|
बताते है श्री पाण्डेय को निगम में हथकंडे अपनाने में महारथ हासिल है,वर्षो पहले गलत तरीके से ही चपरासी से निरीक्षक बन बैठे हरिशंकर पाण्डेय आज भी सारा काम तालठोक कर,कर रहे है पैसे के लालच में निगम प्रशासन उसका कुछ नहीं कर पा रहा है|
बहरहाल मामला जो भी हो | वर्तमान सरकार को मुह चिढाने जैसा है | जो सरकार भ्रष्टाचार के लिए जंग लड़ने का दावा कर रही है उसका राजधानी में जब यह हाल है तो बाकी प्रदेश में क्या हो रहा होगा |
हैरत तो यह है पीएम व सीएम के भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था को ऐसे मामले चुनौती देते है,वहीँ नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की वरिष्ठता और छवि उनके ही विभाग को दुरुस्त नहीं कर पा रही है|राजधानी की जनता के दिमाग में अब सवाल यह कौंधने लगा है कि नगर निगम लखनऊ की खस्ताहाल होती स्थिति,भ्रष्टाचार और लूट-खसोट से नगर विकास मंत्री अवगत होने के बाद भी इस पर अंकुश नहीं लगा पा रहे है| जब नगर आयुक्त उदयराज से पत्रावली की हकीकत जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नही उठाया |
नगर निगम अधिकारी करवा रहे है रिश्तेदारों को ठेकेदारी
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लखनऊ| शहर में प्रचार प्रसार के लिए लगने वाली होर्डिंग्स और साइड्स का ठेका नगर निगम कर्मचारियों के रिश्तेदारो को ही मिल रहा है | जिसके चलते अन्य ठेकेदारों में में काफी रोष है | नगर निगम में तैनात अधिकारी व कर्मचारी दोनों हांथो से धन बटोरने में लगे हुए है | पगार के साथ अपरोछ रूप से ठेकेदारी में मशगूल इन धंधेबाजो को नगर निगम प्रशासन का संरक्षण होने के कारण इनका कोई बाल बांका नहीं हो पा रहा है|
बताते है, कि नगर निगम के कर अधीक्षक राजेश सिंह का भाई दो फर्मो को संचालित कर रहा है | कर अधीक्षक होने के नाते राजेश सिंह इन फर्मो के पोषक बने हुए है | पिछले कई वर्षो से इनकी फर्मे शहर में होर्डिंग और पोल के प्रचार बोर्डो का ठेका ले रही है|
सूत्र बताते है कि मेसर्स सिद्ध विनायक एवं में० कल्याणी टेक्नो साल्लुशन नेटवर्क प्रा० लि० के संचालन के पीछे राजस्वनिरीक्षक के पद पर नगर निगम जोन 1 में तैनात राजेश सिंह है | श्री सिंह जब स्थानान्तरण एवं पदोन्नति के बाद कर अधीक्षक के पद पर निगम में आये| तो तत्कालीन नगर आयुक्त आर के सिंह ने इन्हें जोन 1 में तैनाती करने से साफ़ इनकार कर दिया था,लेकिन वर्तमान नगर आयुक्त को खुश कर श्री सिंह जोन 1 में तैनाती पा गए|कहा जाता है,कि राजस्व संवर्ग के संगठन महामंत्री होने के नाते इनका निगम में जबरदस्त रुतबा है,और अब यह अपने काम के साथ ही प्रचार विभाग में ठेके के नाम पर निगम को चूना लगा रहे है|बहरहाल नगर निगम के हालात यह है,कि भ्रष्ट अफसरों व् कर्मचारियों का बोलबाला है और नगर आयुक्त इन सभी भ्रष्टो का संरक्षण दाता है, यही वजह है कि यहाँ नियमावली और शासनादेश को दर किनार कर लोग अवैध कार्यो में जुटे है |
नगर आयुक्त के संरक्षण में चल रहे है कर्मचारियों के N.G.O
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लखनऊ। नगर आयुक्त उदय राज द्वारा निगम में तैनात भ्रष्ट कर्मचारियों को खुला संरक्षण देने का एक और मामला प्रकाश में आया है। विगत 4 वर्ष पूर्व स्वास्थ्य विभाग से हटे द्वितीय श्रेणी लिपिक सत्यव्रत यादव को पुनः तैनात कर कार्यदायी संस्था के पटल का काम सौंप दिया है। जबकि उक्त लिपिक के परिजन निगम में दो संस्थाओं का संचालन करते हैं। और इनको भुगतान आदि का कार्य सत्यव्रत यादव ही कर रहे हैं। सूत्र बताते है कि मृतक आश्रित कोटे में लिपिक की नौकरी करने वाले सत्यव्रत यादव के परिजन स्वास्थय विभाग में ही आरना एसोसिएट व राय श्री नामक संस्थाएं चला रहे हैं। निगम के अधिकारी और कर्मचारी मिलकर कागजों पर कुछ और धरातल पर कुछ और दिखाकर लाखों का चूना प्रति माह लगा रहे है | नीचे से ऊपर तक चल रहे कमीशन बाजी के खेल में सभी मालामाल हो रहे है |
स्वास्थय विभाग में कुल 26 संस्थाएं पंजीकृत हैं। पूर्व नगर आयुक्त ने इस लिपिक पर लगे आरोपों एवं शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए उसे विभाग से हटाकर पटल का छीन लिया था।लेकिन इस दागी बाबू को वर्तमान नगर आयुक्त ने पुनः तैनाती देकर पटल का कार्य भी वर्षों पहले ही सौंप दिया था। कहा जाता है कि इस लिपिक ने रुतबे और पैसे के बल पर फिर अपनी कुर्सी हथिया ली। नींचे से ऊपर तक सबको खुश रखने में माहिर इस लिपिक का एक भी बिल लेखाधिकारी भुगतान के लिए नहीं रोकते। खाता न सही स्वास्थ्य विभाग में जो सत्यव्रत कहें वही सही।
स्वास्थ्य विभाग में मैनपॉवर सप्लाई करने वाली 26 संस्थाओं में दो संस्थाएं आरना एसोसिएट व राय श्री सत्यव्रत के परिवार के लोग संचालित कर रहे हैं। जबकि निगम में तैनात किसी भी अधिकारी व कर्मचारी के परिजन ठेके अथवा पट्टे का काम नहीं कर सकते। इसका बाकायदा शासनादेश भी है। निगम के अधिकारी भी जानते है कि सत्यव्रत यादव परिजनों के नाम से निगम में संस्थाएं चला रहे हैं। जिसके विरूद्ध कार्यवाही करने के बजाय लिपिक को ही अफसर संरक्षण दे रहे है।
सूत्र बताते है कि अफसरों को खुश करने में यह बाबू इतना माहिर है कि उसका हर काम डंके की चोट पर बेरोक-टोक होता है।यही वजह है कि सदन की स्वीकृति के बाद पार्षदों को दिए गए कर्मचारी कागजों पर दिखाकर उनका भुगतान किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्र में कर्मचारी लगाए गए।लेकिन सबको खुश रखने वाले इस लिपिक ने पार्षदों को भी खुश कर उनसे प्रमाण पत्र ले लिया और अब उन संस्थाओं को भुगतान भी किया जा रहा है।
भरोसेमंद बताते है कि कई वार्डों का भुगतान हो गया है और कई वार्डों के कथित कर्मचारियों की पगार की प्रक्रिया जारी है।यह भी बताया जाता है कि इसी तरह दर्जन भर से अधिक संस्थाएं ऐसी हैं जिनका संचालन नगर निगम में कार्यरत लोगों के परिजन कर रहे हैं। इसी तरह उद्यान विभाग में प्रभारी के पद पर कार्यरत गंगाराम गौतम के भाई अनिकेत के नाम से फ्लोरा हाईटेक एवं नारायण इंटरप्राइजेज निगम में कार्यदायी संस्था चलाने की चर्चा है। यही तैनात द्वितीय श्रेणी के लिपिक उपेन्द्र यादव अपने भाई विकास यादव के नाम से माँ इंटर प्राइजेज नाम की कार्यदाई संस्था संचालित कर रहे है |
बहरहाल नगर निगम में अधिकारी और कर्मचारी का गठजोड़ कार्यदायी संस्थाए चला रहा है | निगम प्रशासन सब कुछ जानते हुए स्वहित में मौन है | नगर निगम लखनऊ में भ्रष्टाचार से जुड़े मामले परत दर परत खुल रहे हैं । अब देखना यह है कि योगी सरकार यदि वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ है और साफ़ सुथरी एवं पारदर्शी व्यवस्था जनता को देने के लिए संकल्पबद्ध है तो सरकार को चाहिए कि वो इन मामलों की शासन स्तर से जांच कराकर निगम को लूट रहे विभागीय ‘काकस’ का पर्दाफ़ाश कर दोषी लोगों को दण्डित करे।
आजम पुत्र के विवादित जन्म प्रमाणपत्र पर घिरे नगर आयुक्त उदयराज
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लखनऊ; पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खान एवं वर्त्तमान नगर आयुक्त लखनऊ उदय राज के गहरे रिश्तों के चलते दबाव में जारी किये गए जन्म प्रमाणपत्र का मामला और गहरा गया है | मंत्रीपुत्र अब्दुल्ला आजम के नामांकन पत्र में लगा यह प्रमाणपत्र नगर निगम के नगर स्वास्थय अधिकारी के गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है. नगर निगम प्रशासन काफी हलकान है और मामले को क्वीन मेरी अस्पताल द्वारा जारी प्रोविजनल प्रमाणपत्र को आधार मान कर खुद को पाक साफ़ होने की पैरोकारी में जुट गया है| इस सम्बन्ध में एक आर टी आई एक्टिविस्ट ने जानकारी भी मांगी है |
पूर्व मंत्री शिव बहादुर सक्सेना के पुत्र इंडियन इंडसट्रीज एसोसिएशन रामपुर के चेयरमैन आकाश सक्सेना "हनी" द्वारा प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से की गयी शिकायत की जांच रामपुर के डी एम शिव सहाय अवस्थी ने करा ली है. रामपुर के ए डी एम वित्त एवं राजस्व एम पी सिंह द्वारा जांच आख्या मुख्य निर्वाचन अधिकारी के यहाँ भेज दी गयी हैं सूत्र बताते है कि रामपुर प्रशासन द्वारा की गयी जांच में कई गंभीर मामले प्रकाश में आये हैं जिसमे नगर निगम लखनऊ द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र की सुचिता और प्रमाण पत्र को जारी करने मे नियम एवं क़ानून की अनदेखी भी शामिल बताई जाती है. शिकायतकर्ता आकाश सक्सेना का आरोप है कि स्वारटांडा विधान सभा से सपा विधायक अब्दुल्ला आजम ने कई तथ्य नामांकन पत्र मे छिपाये है शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में अब्दुल्ला आजम की उम्र 25 साल से कम है , अब्दुल्ला आजम ने दो दो पैन कार्ड भी बनवा रखे हैं. नामांकन पत्र में लिखा गया पैन कार्ड का नंबर दुबारा काटकर लिखा गया है अब्दुल्ला आजम बी.टेक. है , हाईस्कूल की मार्कशीट में जन्मतिथि का उल्लेख रहता है ,सैक्षणिक योग्यता में इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया है. श्री सक्सेना के लिखित आरोपों के सम्बन्ध में मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा डी एम से माँगी गई तथ्यात्मक रिपोर्ट से कई खुलासे होने तय हैं जिसमे क्वीन मेरी अस्पताल और नगर निगम की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है. कहा जा रहा है पूर्व मंत्री आजम खान के अतिनिकट समझे जाने वाले नगर आयुक्त लखनऊ उदय राज ने दबाव बनाकर नगर स्वास्थय अधिकारी से अब्दुल्ला आजम का जन्म प्रमाणपत्र जारी करा दिया. नगर आयुक्त के हस्ताक्षेप के चलते नगर निगम ने सिर्फ हलफनामे को लेकर जन्म प्रमाणपत्र जारी कर दिया जबकि आवेदक से हाईस्कूल प्रमाणपत्र, पैन कार्ड, आधारकार्ड, डीएल आदि के कागजात लेकर क्वीन मेरी अस्पताल द्वारा जारी किये गए अस्थायी जन्म प्रमाणपत्र में उल्लेखित तिथि का मिलान किया जाना चाहिए था जोकि नगर आयुक्त के दबाव के चलते नहीं किया गया और बिना किसी जांच- पड़ताल के आनन-फानन में जन्म प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया. गोरतलब बात यह है की आजम खां जैसे जागरूक व्यक्ति जिसने यूपी सरकार में कई बार मंत्री पद को सुसोभित करने के साथ ही ज़ोहर युनिवर्सिटी के कुलपति सहित तमाम महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे है,और उन्होंने अपने बेटे का जन्म प्रमाण बनवाने में 25 साल लग गये| वजह साफ़ बताई जा रही है कि बेटे को विधायक बनाने में उम्र रोड़ा था,जिसे नगर निगम ने आसान कर दिया| नगर आयुक्त ने आवेदक की अर्जी स्वीकार करते हुए नगर स्वास्थ्य अधिकारी को जन्म प्रमाण पत्र जारी करने निर्देश दे दिया|
केजीएमयु के क्वीनमेरी अस्पताल द्वारा जारी किये गये अस्थाई जन्म प्रमाणपत्र भी अब सवालों के घेरे में है| कहा जाता है केजीएमयु के तत्कालीन कुलपति प्रो.रविकांत के दबाव में अस्पताल प्रशासन को जन्म प्रमाण पत्र जारी करना पड़ा| सूत्र बताते है कि अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों का पूरा ब्यौरा नगर निगम को तत्काल उपलब्ध कराया जाता है| अब सवाल यह उठता है कि क्या क्वीनमेरी अस्पताल ने आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम के जन्म का पूरा ब्यौरा नगर निगम को नही भेजा था| जब इस सम्बन्ध में नगर आयुक्त उदयराज और नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ पी के सिंह से संपर्क करने की कोशिश की गयी तो फोन ही नही उठा |
बहरहाल वजह जो भी हो नगर निगम प्रशासन इस मामले को लेकर सकते में है| दागदार अधिकारियों की नींद हराम है कि कहीं चुनाव आयोग के सामने इस मामले की असलियत आ गई तो उनका नपना तय है| उधर रामपुर के प्रतिष्ठित समाजसेवी नवेद अली ने इस पूरे मामले को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है| हाईकोर्ट ने इस प्रकरण का संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई अगले हफ्ते होनी बताई जा रही है.
निगम के कमाऊपूतों पर मेहरबान नगर आयुक्त
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लखनऊ। नगर निगम की फिजूलखर्ची और लूट खसोट के चलतें जहाँ एक ओर निगम कंगाल होता जा रहा है वहीँ निगम को बचाने के प्रयास सिफर है। पिछलें चार महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है जिसके चलते कर्मचारी आन्दोलन की राह पर है बावजूद इसके नगर आयुक्त की प्राथमिकता सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उन्ही पदों पर सेवाएँ देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। आपको बता दें कि मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद नगर निगम प्रशासन ने कर्मचारियों के बकाये वेतन का अभी तक कोई भुगतान नहीं किया है।जिसके कारण योगी सरकार की किरकिरी हो रही है वहीँ भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के नारे बेमानी साबित हो रहे है। मजबूरन कर्मचारियों ने कार्यालय के समक्ष क्रमिक अनशन करना शुरू कर दिया है। निगम प्रशासन खस्ताहाल होती स्थिति से नगर निगम को ऊबारने के बजाएं सहखर्ची को लगातार बढ़ावा दें रहा है। एक ओर मौजूदा स्टाफ़ को वेतन एवं पेशन देने के लिए पैसे नहीं है दूसरी ओर सेवानिवृत्त हो रहें कर्मचारियों को कार्यदायी संस्थाओं के माध्यम से पुनः उन्हीं पदों की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
प्रशासन के इस निर्णय से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का सरकारी प्रयासों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। वहीँ नियमित कर्मचारियों में इस अव्यवस्था को लेकर रोष भी देखा जा रहा है। जानकार बताते है कि नगर आयुक्त ने निगम की बेश कीमती जमीनों पर भूमाफियाओं को अवैध कब्जा करने वाले संपत्ति विभाग के कानूनगो सुरेश श्रीवास्तव को कार्यदायी संस्था के माध्यम से पुनः उसी पद पर तैनात कर दिया गया है। जबकि उक्त भ्रष्ट कानूनगों को संपत्ति विभाग में रिटायर होने के बाद पुनः उसी पद पर रखने के निर्णय से नगर निगम की बेशकीमती जमीनों को मुक्त करा पाना मुश्किल है। यही हालत लेखा विभाग की है जहां चेक अनुभाग में तैनात सहायक लेखाकार शत्रोहन यादव को कार्यदायी संस्था के माध्यम से सेवानिवृत्ति के बाद पुनः तैनाती दे दी गयी है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग भी पीछे नहीं है जन्म मृत्यु विभाग में तैनात मुन्नीलाल भी वर्षो से सेनावृत्ति के बाद कुर्सी पर जमे है। नगर आयुक्त के संरक्षण में नगर स्वास्थ्य अधिकारी अपने चहेते कर्मचारी मुन्नीलाल को कार्यदायी संस्था के माध्यम से पुनः तैनाती दे दिया है जिसके बाद से पूरा कारोबार वही देख रहे है। बताया ये भी जाता है कि कमाऊपूत कहे जाने वाले इन कर्मचारियों को अपने अफसरों को खुश रखने में महारथ हासिल है शायद यही वजह है कि अफसर स्वहित की मोहमाया में इन रिटायर कर्मचारियों को कार्यमुक्त नहीं कर पा रहे है।
गौरतलब है कि नगर निगम पिछले चार माह से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन नहीं दे पा रहा है। इसके अलावा कार्यदायी संस्थाओं को भी पिछले चार माह से वेतन नहीं मिल पा रहा है। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार का आलम इस कदर हाबी है कि यहां भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और अर्जित अवकाश के करोंड़ों रूपए का भुगतान लेखा विभाग ने अब तक नहीं किया है। जिसके कारण कर्मचारी दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। नगर निगम में धड़ल्ले से फलफूल रहे भ्रष्टाचार से हालात यह है कि ‘रोम जल रहा है और नीरो बंशी बजा रहा था’ यह जुमला नगर आयुक्त पर सटीक बैठता है, नगर निगम 4 अरब से अधिक के कर्ज में डूबा हुआ है। खर्चे कम करने के बजाय बढ़ते जा रहे है। समय रहते इस प्रवत्ति पर अंकुश नहीं लगा तो हालात और ख़राब होने तय है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नगर विकास मन्त्री सुरेश खन्ना वरिष्ठ तो जरूर है लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने में उनका अनुभव सफल नहीं दिखाई दे रहा है।
14.10.17
लखनऊ नगर निगम में भ्रष्टाचार की A to Z कहानी... पढ़ें सविस्तार...
-फर्स्ट आई न्यूज़, लखनऊ की पेशकश
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