- शैलेन्द्र चौहान
कम से कम पिछले छह महीनों से बहुत बेसब्री से दुनिया को कोरोना वैक्सीन का इंतजार है. कब वैक्सीन आए और कब कोरोना विदा हो. लेकिन आपात् स्थिति में त्वरित गति से विकसित वैक्सीन की विश्वसनीयता और उसके प्रभाव को लेकर कुछ चिंता भी है कि आखिर यह वैक्सीन कितनी सुरक्षित है. अब कई कंपनियों की वैक्सीन के उपयोग की अनुमति कुछ देशों में मिल गई है. यूं दावा तो सभी कंपनियां यही कर रही हैं कि उनकी वैक्सीन प्रभावी और सुरक्षित है पर इसके प्रभाव और परिणाम की अभी प्रतीक्षा है. जहाँ ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना सहित लगातार उनके उपयोग को अप्रूवल मिल रहा है वहीं भारत में सीरम इंस्टीट्यूटऔर भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के आवेदनों को स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक कमेटी द्वारा मंजूरी नहीं मिल सकी. दोनों ही कंपनियों से अगली बैठक में और डाटा देने को कहा गया है. हालांकि बैठक की तारीख अभी तय नहीं है. वैक्सीन की उपयुक्तता पर अंतिम निर्णय ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया उर्फ डीजीसीआई द्वारा लिया जाएगा.
ऑक्सफोर्ड की अगुआई में कोरोनावायरस वैक्सीन निर्माण और ट्रायल में साझेदार सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से कराए गए ट्रायल में चेन्नई का एक वॉलंटियर गंभीर संकट में आ गया है. वैक्सीन ट्रायल के कथित रूप से प्रतिकूल प्रभाव के बाद उसने कंपनी से 5 करोड़ का मुआवजा मांगा है. वॉलंटियर की पत्नी के मुताबिक दस दिन बाद ही उसे तेज सिरदर्द, रोशनी और आवाज से परेशानी, व्यवहार में बदलाव तथा पहचान करने और बोलने में दिक्कत होने लगी. उसने इस बारे में 21 नवंबर को एक लीगल नोटिस कंपनी को भेजा था और मुआवजे के रूप में पांच करोड़ रुपए की मांग की थी. उन्होंने कहा, “जिसे भारत के लिए विकल्प कहा जा रहा है, उसकी तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना हैै. “हम चुप नहीं बैठ सकते हैं, पति सामान्य कामकाज भी नहीं कर पा रहे हैं। हम इसे जनता को बताएंगेे." यूं यह पहला वाकया नहीं है, कुछ महीने पहले यूके में ही एक वॉलंटियर को न्यूरोलॉजिकल समस्या से जूझना पड़ा था. उसके बाद कुछ समय के लिए ट्रायल रोक दी थी. वहीं खुद यूके ने अमरीकी कंपनी फाइजर को को अपने यहां वैक्सीन बनाने और बेचने का लाइसेंस दे दिया है और वह ऐसा पहला देश है. सीरम इंस्टीट्यूट इंडिया ने कहा है कि कोविडशील्ड वैक्सीन को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए तब तक जारी नहीं किया जाएगा, जब तक कि यह इम्युनोजेनिक और सुरक्षित साबित न हो जाए.
अब रूसी वैक्सीन स्पुतनिक का बड़े पैमाने पर भारत में उत्पादन के संकेत हैं. विभिन्न समाचार एजेंसियों ने यह सूचना दी है कि भारत की दवा बनाने वाली कंपनी हेटरो, रूसी स्पुतनिक कोविड-19 वैक्सीन के 10 करोड़ डोज हर साल बनाएगी. 27 नवंबर को हेटरो और रूस के आरडीआईएफ सोवरेन वेल्थ फंड ने इसके लिए समझौते का ऐलान किया. इस समझौते के साथ आरडीआईएफ (रशियन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट फंड) अपनी वैक्सीन के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्माण की कोशिशों की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है. स्पुतनिक वैक्सीन के ट्विटर अकाउंट से इस समझौते के बारे में एक ट्वीट किया गया है. हेटरो अगले साल की शुरुआत में इसका निर्माण चालू कर देगी.
स्पुतनिक की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि दूसरे और तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल भारत में अब भी चल रहे हैं. हालांकि रूसी अधिकारियों ने इसे अगस्त में ही आधिकारिक मंजूरी दे दी है. इसके लिए मंजूरी की प्रक्रिया को थोड़ा तेज किया गया. इसकी सुरक्षा और गुणों का पता लगाने के लिए परीक्षणों का सिलसिला अब भी जारी है. हेटरो में इंटरनेशनल मार्केटिंग के निदेशक बी मुरली कृष्णा रेड्डी का कहना है, "हम भारत में क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों का अभी इंतजार कर रहे हैं लेकिन हमारा मानना है कि मरीजों तक जल्दी पहुंचाने के लिए स्थानीय रूप से इसे बनाना जरूरी है." रेड्डी ने बताया कि यह समझौता भारतीय प्रधानमंत्री के मेक इंन इंडिया कार्यक्रम के उद्देश्यों को भी ध्यान में रख कर किया गया है.
भारत में एक और दवा कंपनी डॉ रेड्डीज लैबरोटेरीज लिमिटेड भी स्पुतनिक के क्ल्निकल ट्रायल कर रही है. उसका कहना है कि वह मार्च 2021 तक बाद के चरणों का ट्रायल पूरा कर लेगी. आरडीआईएफ डॉ रेड्डीज के साथ स्पुतनिक की मंजूरी के बाद उसे देश भर में पहुंचाने के लिए बात कर रही है. आरडीआईएफ के प्रमुख किरिल दमित्रीव ने इस हफ्ते की शुरूआत में कहा कि रूस और इसके विदेशी सहयोगियों के पास इतनी क्षमता है कि वो अगले साल से 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन दे सकें. भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत प्रति व्यक्ति 10 डॉलर होगी. 4 दिसंबर को जारी संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि स्पुतनिक वी का तीसरे चरण का ट्रायल बेलारुस, संयुक्त अरब अमीरात, वेनेजुएला और दूसरे देशों में भी चल रहा है.
आरडीआईएफ और गामालेया नेशनल सेंटर ने कहा है कि अंतरिम क्लिनिकल ट्रायल के आंकड़ों ने दिखाया है कि स्पुतनिक वी 28वें दिन 91.4 प्रतिशत और 42वें दिन 95 फीसदी प्रभावी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो दूसरी वैक्सीन तैयार की जा रही है, उनका प्रभाव भी 90 फीसदी या उससे थोड़ा ज्यादा है.
अगस्त में वैक्सीन बनाने की घोषणा कर रूस बाकी देशों से इस मामले में आगे निकल गया लेकिन यह ऐलान पर्याप्त क्लिनिकल ट्रायल के बगैर ही किया गया, इसलिए बहुत से देशों को इस पर उतना भरोसा नहीं हुआ. अभी भी इसके तीसरे चरण के ट्रायल चल ही रहे हैं. रूस में 40 हजार लोगों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है. स्पुतनिक को यह नाम सोवियत संघ के जमाने वाले एक सेटेलाइट से मिला है.
स्पुतनिक के अलावा फिलहाल मॉडेर्ना और ऑक्सफोर्ड के वैक्सीन की चर्चा हो रही है. इन दोनों ने भी 90-95 फीसदी प्रभावी होने का दावा किया है. उम्मीद की जा रही है कि अगले साल के शुरुआती महीनों में लोगों को वैक्सीन मिलना शुरू हो जाएगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके व्यापक वितरण के लिए बीते कई महीनों से तैयारियां चल रही हैं.
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