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21.12.20

वरिष्ठ पत्रकार ने पत्र लिखकर पूछा- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

 श्रीमान नरेन्द्रसिंह तोमर

कृषि मंत्री भारत सरकार

 नई दिल्ली

विषय:- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

श्रीमान ,
 
मुझे ये तो पता नहीं आपका खेती बाड़ी से कोई सम्बन्ध है या नहीं लेकिन खाते तो आनाज फल या मेवे ही होंगे जो खेती की उपज है फिर भी आप व्यक्ति गत रूप से तो दुखी होंगे कि आपकी सरकार अन्नदाता से सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है ? आपकी सरकार ने खेतों की उपज पर जीवन यापन करने वाले किसानों से बार बार वायदा किया है कि उनकी फसल आय दोगुनी कर देंगे , उस वायदे की पूर्ति के लिए महामारी से पीड़ित देश में आपका विभाग एक एक करके तीन कृषि संशोधन अध्यादेश महामहिम राष्ट्रपति से जारी कराए जो आपकी सरकार की मंशा पर स्वंय शक की सुई इंगित करती है जिसे और मजबूत करने के लिए आपकी सरकार ने कोरोना काल में प्रतिपक्ष के साथ संसदीय परम्पराओं को तक में रख कर पहले लोकसभा में फिर राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित कराया जो शतप्रतिशत आपकी सरकार की नियत पर सवालिया निशान लगाती है आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी ? भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपने बहुमत का दुरुपयोग किया ? ये पूरा कार्यक्रम पूरी तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के घोर खिलाफ है जबकि आपकी पार्टी स्वच्छ लोकतंत्र की पैरोकार रही है तोमर जी आप भली भांति जानतें हैं कि आपकी पार्टी ने देश के मुसलमानों के बाद दूसरी बड़ी बिरादरी किसानों को रुष्ट किया है एक को संघ के कारण तो दूसरी को उधोगपतियों को दोनों बिरादरी जनाधार वाली हैं ये जानते हुए भी आपकी सरकार बड़े वोट बैंक को नाराज कर किसे खुश करना चाहती है जिसे देश की जनता तो जान चुकी है लेकिन आप दबाए बैठें हैं ।


मंत्रीजी आपने अपनी पार्टी के एजेंडे के अनुसार काफी काम अच्छे भी किये हैं वहीं उधोगपतियों के हितों को साधने के लिये बहुत से कार्य कियें हैं जो नहीं करने चाहिए थे , आगे चल कर 2024 के लोकसभा चुनाव में यही चुनावी मुद्दा बनेंगे , आपको याद भी होगा कि आपके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही बच्चों में पंडित जवाहरलाल नेहरू की तर्ज पर ' अंकल मोदी ' की छवि निर्माण करने की कोशिश की थी जो सफल नहीं हो पाई बच्चों के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि 2024 तक पी एम तो वे रहेंगे उसके बाद कोई बन सकता है ये उतर एक बच्चे के पीएम बनने की तमन्ना है के जवाब में दिया था , आपकी पार्टी के कर्णधारों में से एक आदरणीय अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी केबिनेट में विनिवेश मंत्री बनाया था मगर आपके प्रधानमंत्री तो स्वंय वो कार्य कर रहें हैं उन्हें आंदोलन की चिंता ही नहीं है ।

अपने जनाधार के वोटरों को आप किस योजना के तहत नाखुश कर रहे हो ? इससे विपक्ष का उठाया गया सवाल पुख्ता होता है कि EVM में गड़बड़ी की जाती है ? मेरे जैसा पत्रकार इस पर भरोसा नहीं कर रहा था लेकिन जिस धीमी गति से बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित करने में 20 घण्टे तक लगे उससे पत्रकारों को भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि मशीन से सब सम्भव है , विश्व के सारे देश evm को ठुकरा चुके हैं मगर हमारा चुनाव आयोग तर्क दे रहा है कि मतपत्र से चुनाव कराने में बहुत नुकसान होता है आपकी सरकार ने कभी हिसाब लगाने की जहमत ही नहीं उठाई कि पांच साल में देश का कुल खर्चा चुनावों पर कितना होता है जो शायद एक पंचवर्षीय योजना के बजट से अधिक होगा , मंत्री महोदय हमारा देश कृषि प्रधान है सोचो कि उसकी खेती पर उधोगपतियों का अधिकार हो गया तो महंगाई कहां से कहां पहुंच जाएगी गरीब को रोटी भी नसीब नहीं हो पाएगी ? मेरा पत्र या तो आप पढ़ेंगे नहीं अगर पढ़ भी लिया तो इस पर ध्यान देना नहीं चाहेंगे , अगर आप ये पत्र प्रधानमंत्री को भेज सकें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी , एक पत्र मैं इसी संदर्भ में उन्हें लिख चुका हूं आपके तीनों कानूनों की खामियां निम्न प्रकार से हैं जिन पर आप विचार करें :-

पहला कानून -- यह किसानों को अपनी फसल को देश के किसी भी हिस्से में बेचने की छूट देता है

दूसरा कानून -- यह कानून यह कहता है कि कम्पनिया और किसान पहले से ही फसल की कीमत तय कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकते है

तीसरा कानून -- इस कानून मैं बड़े व्यापारी व कम्पनियो को फसलों के भंडारण की छूट दी गई है

सरकार ने बड़ी चालाकी से इन कानूनों को किसान कानून का नाम दिया है जबकि हकीकत यह है ये कानून बड़े व्यापारियों के भले के लिए बनाये गए है

दूसरे कानून मैं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की छूट दे गयी है  कोई कम्पनी व व्यापारी किसान से समझौता करता है कि आप अपनी जमीन पर गेहूं उगाओ आपको 3000 रु कीमत दी जाएगी , किसान भी राजी-राजी समझौता कर लेगा हो सकता है किसान को क़ृषि मंडियों से फसल की कीमत शुरुआत में ज्यादा भी मिले , जब किसान को कीमत ज्यादा मिलने लगेगी तो किसान अपनी फसल को क़ृषि मंडियों में बेचने क्यों लेकर जायेगा ? इससे होगा यह कि क़ृषि मंडियों मैं बैठे आढ़तिये धीरे धीरे अपनी दुकाने बंद कर चले जाएंगे और क़ृषि मंडिया धीरे धीरे बंद होने लगेंगी , जब कोई फसल मंडियों में बेचने ही नहीं जायेगा तो मण्डियों का बन्द होना स्वाभाविक है , इससे होगा यह कि 3-4 वर्षो में किसान अपनी फसल बेचने के लिए केवल बड़ी कम्पनियो और व्यापारी पर ही निर्भर हो जायेगा जो मनमर्जी से कीमत देगा ।

वही तीसरा कानून जो व्यापारियों को फसलों के भण्डारण करने की छूट देता है, उससे कम्पनी अपने पास फसलों का 3-4 वर्षो में अधिक मात्र में भण्डारण कर लेगी जिससे 5-6वर्षो बाद किसानों को  ब्लैकमेल करने लगेगी , कंपनी जब कॉन्ट्रैक्ट करेगी तो वह किसान की फसल का मनमाना भाव तय करेगी , किसान के पास कंपनी से अनुबंध करने के अलावा कोई विकल्प नही होगा तब किसान कम्पनी को औने पौने भाव मे अपनी फसल बेचने को विवश होगा उधर कंपनी ने अपने पास पहले से ही अधिक मात्र में भण्डारण कर रखा है लिहाजा वो 3-4 वर्ष फसल नहीं खरीदेगी तब भी कंपनी की सेहत पर कोई असर नही होने वाला है , किसान बेचारा करेगा क्या ? क़ृषि मंडी तो पहले ही बंद हो चुकी होंगी  इससे प्रभाव यह होगा कि किसान को मजबूरी में सस्ती कीमतों पर ही उस कम्पनी को अपनी फसल बेचने का समझौता करना पड़ेगा इस तरीके से बड़ी कम्पनिया और व्यापारी किसानों का शोषण करना शुरू कर देंगे जब किसान और कम्पनी के बीच किसी प्रकार का विवाद होता है तो किसान कोर्ट में कंपनी के सामने कैसे टिक पायेगा ? कोर्ट क्या हाल है, किसी से छिपा नही है , किसान खेती करेगा या कोर्ट के धक्के खायेगा जो क़ृषि मंडी के आढ़तिये होते है किसानो के लिए मिनी बैंक की तरह काम करते है , किसान को जब अपनी किसी जरूरत के लिए रुपयों की जरुरत होती है तो किसान इन मंडियों के आढ़तियों से उधार ले लेते है जिसके के लिए किसानो को कोई लिखा पढ़ी नहीं करनी पडती है ।

आपका हितैषी

सत्य पारीक पत्रकार

जयपुर 22 दिसम्बर 2020
 

Satya Pareek
satyapareek5@gmail.com

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