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12.12.20

साहित्य के एलियन्स


सुनील जैन राही
एम-9810960285


साहित्य धरा पर छुपे हुए एलियन्स की खबर सुन साहित्य जगत थर्रा गया। साहित्य के एलियन्स कैसे होंगे? साहित्य में उन्हें किस रूप में जाना जाएगा। अगर उनकी पहचान नहीं हुई तो साहित्य का बड़ा नुकसान होगा। इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? जब साहित्य में भी एलियन्स हैं तो उन्हें सामने लाना जरूरी है। अगर सामने नहीं आते तो भितरघात की संभावना बढ़ जाएगी। भितरघात साहित्य की मूल प्रवृत्ति है। अगर इस पर उनका कब्जा हो गया तो साहित्य के भितरघातियों का क्या होगा? पहले ही भितरघात से साहित्य तार-तार हुआ जा रहा है। साहित्य भितरघात से ही तो समृद्ध होता है और अगर यह विधा ही एलियन्स के पास चली गयी तो साहित्य में बचेगा क्या?


खबर से साहित्यकारों के होश फाख्ते हो गए। आपसी मसले ही सुलझ नहीं पा रहे थे और ऊपर से ये एलियन्स का नया मसला। पहले गुटों की संख्या क्या कम थी और अब एक नये गुट को मान्यता देना, उसे स्वीकार करना कितना वाजिब और सार्थक होगा। साहित्यकार सदमे से उबरने के लिए गुटों स ऊपर उठकर एक गुट में शामिल होने लगे। अस्तित्व के लिए गुट भावना से ऊपर आना जरूरी हो गया। सभी गुटों के महामहीम चाहते थे कि एलियन्स का गुट उनकी अधीनता स्वीकार कर ले। उनके गुट का प्रचार-प्रसार अंतरिक्ष में उड़ सके। अंतरिक्ष के अवार्ड प्राप्त करने में जुगाड़ फिट हो सके। सबसे पहले जरूरी था कि साहित्य के एलियन्स की पहचान कैसे हो?

साहित्य के एलियन्स को अभी तक किसी ने देखा नहीं था। पहली बार अखबार में पढ़ा। एलियन्स का भी साहित्य में भी दखल है? उनका साहित्य में कितना दखल है? तादाद कितनी है? उनका कौनसा धर्म/मजहब है। कहानी में दखल है या कविता में टांग अड़ाने की क्षमता? व्यंग्य में कहां तक पहुंच है? उनका परसाई कौन है, शरद जोशी कौन है? इन तमाम प्रश्नों पर विचार जरूरी था। बिना विचार किए एलियन्स से भिड़ने का मन किसी का नहीं था।

मुद्दा यह उठा रहा था, एलियन्स को साहित्य से क्या लेना-देना? जब साहित्यकारों को कुछ लेना देना नहीं है तो ये क्यों खामखा टांग अड़ाने चले आये? अब आये हैं भी या नहीं? इतना तय था कि साहित्य के एलियन्स बड़े खतरनाक किस्म के होंगे। इतने दिन साहित्य को हो गए, अभी तक किसी तुर्रमखां की नज़र इन नहीं पड़ी। इस बात से सहमत थे, एलियन्स हैं जरूर। साहित्य में एलियन्स न होते तो इतने दंगे-फसाद न होते। दंगे-फसाद कराने की जिम्मेदार साहित्य के एलियन्स की है। यही अर्थ निकाला गया कि एलियन्स अदृश्य होकर काम करते हैं। कोई गोली बना रखी हो, जिसे खाकर आग लगाकर अदृश्य हो जाते हैं।

साहित्य समाज बैचेनी की चरम सीमा पर पहुंच चुका था। एलियन्स के भय से रचनाएं रास्ता भटक रही थीं। संवेदनाएं आश्वासनों की तरह गायब होने लगीं।  विषय पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता की तरह गायब हो गए थे। एलियन्स के भय से साहित्य समाज में चुनाव नहीं हो रहे थे। भय था, छुपे एलियन्स साहित्य के अध्यक्ष हो गए तो परमानेन्ट अध्यक्षों का क्या होगा। एक बार अध्यक्ष बनने के बाद संस्था गायब अध्यक्ष रह जाता है। साहित्य की बौखलाहट रचनाओं में स्पष्ट दिखाई दे रही थी। हर कोई सीधी-साधी भाषा में नहीं लिख पा रहा। हर कोई कहता-कैसे लिखें, कभी आंगन टेडा है तो कभी नौ मन तेल नहीं। कारण था हर कोई टेड़ा होकर टेड़ा लिख रहा था। अरे टेड़े सीधा हो जा रे, पर सीधा होने और सीधा लिखने को तैयार नहीं। एलियन्स भय से सब टेड़े हो गए। टेड़े होकर सीधा नहीं लिखा जा सकता?

खैर ..... साहित्य के एलियन्स की खोज में अर्जेन्ट मीटिंग बुलाई गई। गेट पर एलियन्स सर्च गेट बनाया गया। कोई भी एलियन्स सभा शामिल न हो सके। मीटिंग में जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाया गया कि एलियन्स को हमारी राजनीति में घुसने की इजाजत कतई नहीं देंगे। हम जैसे लड़ते आए हैं, वैसे ही घमासान करते रहेंगे। सभी बातों पर सहमति बन गई, लेकिन इस बात पर सभी टेड़े हो गए कि एलियन्स हमारे ही गुट का सदस्य होगा। साहित्य में एलियन्स की खोज तो जहां की तहां रह गई और मीटिंग बिना किसी निष्कर्ष के निपट गयी। अध्यक्ष की सीट पर बैठा साहित्य का एलियन मंद-मंद मुस्कराता हुआ निकल लिया।

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