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26.12.20

एक नहीं, अनेक प्रकार की होनी चाहिए पुलिस!

गोविंद गोयल
वरिष्ठ पत्रकार, श्रीगंगानगर (राजस्थान)
 

एक पुलिस, हजार झंझट! लावारिस लाश मिली। पुलिस बुलाओ। कचरे मेँ भ्रूण पड़ा है। पुलिस उठाएगी/उठवाएगी। सड़क दुर्घटना। पुलिस के बिना कुछ नहीं। लावारिस डैड बॉडी का संस्कार भी पुलिस की सिरदर्दी। आग लगी तो पुलिस। झगड़ा हुआ तो पुलिस। कोई नेता आया तो पुलिस। आंदोलन तो पुलिस। कलक्टर के खिलाफ नारेबाजी तो पुलिस और मिलने जाओ तो पुलिस। सड़कों से सामान हटवाए, पुलिस। चालान काटे पुलिस। धार्मिक शोभायात्रा के आगे पुलिस। पीछे पुलिस।

कुल मिलाकर कम शब्दों मेँ बात ये कि एक पुलिस, हजार झंझट। अभी तो अपराधियों को पकड़ने, एफआईआर लिखने और उसकी जांच की बात तो की ही नहीं। ये भी जिक्र नहीं हुआ कि पुलिस का मूल काम कानून व्यवस्था बनाए रख, अपराधियों मेँ भय बनाना है। दशकों बाद भी पुलिस लगभग वैसी की वैसी ही है।  काम लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन पुलिस एक ही है। आप कह सकते  हो कि पुलिस तो एक ही होती है! ये उस वक्त की बात है, जब जनसंख्या का दवाब नहीं था। सड़कों पर भीड़ नहीं थी। अपराध कम थे। जरूरतें थोड़ी थी। डिप्रेशन का नाम किसी को नहीं पता था। आज एक पुलिस की नहीं अनेक पुलिस की आवश्यकता है। 

आज वक्त की जरूरत है अनेक प्रकार की पुलिस। अनेक पुलिस! शरीफ इन्सानों के लिए तो एक ही भारी है, उस पर अनेक पुलिस! जी, अनेक पुलिस। सौ झंझट के कारण पुलिस का मूल काम तो हो ही नहीं पाता। पुलिस वालों पर काम का दवाब रहता है। वे तनाव में रहते हैं। फिर ये ऐसे ही काम करते हैं, जो जनता को पसंद आने का सवाल ही नहीं। तो पुलिस अलग अलग प्रकार की हो! एक पुलिस वो हो जो केवल कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हो। अपराध घटित होने पर मौके से लेकर अपराधियों को सजा दिलवाने तक का काम वह करे। आंदोलन, जुलूस, शोभायात्रा जैसे कार्यक्रमों के लिए अलग से पुलिस हो। वह देखे सभी व्यवस्था। आंदोलन से जुड़े लोग किधर से जाएंगे....आएंगे, शोभायात्रा का रूट क्या होगा, यह सब यही पुलिस तय करे। लावारिस डैड बॉडी, भ्रूण मिलने, सड़क दुर्घटना के समय अलग पुलिस हो। ऐसे ही कलक्टर-एसपी ऑफिस के सामने नारे लगाने, ज्ञापन देने वालों के लिए एक और पुलिस। 

मंत्रियों के आवागमन के लिए अलग पुलिस हो। कहने का अर्थ ये कि कानून व्व्यस्था की पुलिस को इन सबसे अलग कर दिया जाना चाहिए। बदलते वक्त मेँ एक पुलिस ऐसी भी हो जो सामाजिक सम्बन्धों पर ध्यान दे। ये पुलिस सामाजिक व्यक्तियों से व्यक्तिगत की बजाए पुलिस के संपर्क बनाए। संवाद कायम करे। उनके दुख सुख को जाने। जब सब कुछ बदल रहा है तो पुलिस मेँ भी बड़े बदलाव होने ही चाहिए। केवल सत्ता के लिए काम करने वाली पुलिस के जमाने अब गए। मगर यह पुलिस तो लगभग यही करती है। तभी तो भूल जाते हैं कि कब क्या करना है और पहली प्राथमिकता क्या होगी। घर मेँ उस पिता-माता से पूछो जिसे एक साथ कई काम बता दिये जाते हैं। कितनी भी भाग दौड़ कर ले कुछ ना कुछ रह ही जाएगा। कोई कमी रहना स्वाभाविक ही है। पुलिस को भी एक साथ कई स्थान पर जाने की जरूरत हो तो एक दो जगह तो व्यवस्था बिगड़ेगी ही....इसलिए अब एक पुलिस का जमाना नहीं रहा। पहले था आरएमपी और एमबीबीएस डाक्टर का वक्त। 

अब हर कोई विशेषज्ञ के पास जाना चाहता है, ताकि असल रोग को पकड़ा जा सके। ठीक यही पुलिस करे। बस, इन सभी प्रकार की पुलिस मेँ कोर्डिनेशन तो होना ही चाहिए। वरना तो सब जीरो। इस विषय पर विचार पुलिस अधिकारियों के साथ साथ सरकार को भी करना चाहिए। आज विचार शुरू होगा तब भी कई साल लग जाएंगे, उसको हकीकत का रूप देते हुए। एक की जगह अनेक प्रकार की पुलिस होने पर काम का स्तर बढ़ेगा साथ ही पुलिस कर्मियों मेँ तनाव भी कम होगा। समाज को उसके परिणाम भी बेहतर मिलेंगे। एक बार इस विषय पर सोचने मेँ हर्ज ही क्या है! है की नहीं! दो लाइन पढ़ो-

कैसी नींद, किसके ख्वाब

पांव घायल, राह खराब।

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