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8.12.20

किसान आंदोलन पर गोदी मीडिया का दिवालियापन तो देखिए…

Himanshu Sharan

किसानों को खालिस्तानी कहने वाले मीडिया के चाटुकार सच में दिमागी तौर पर या तो पंगु हैं या फिर उनकी समझ उनका साथ नहीं दे रही...आंखों पर पट्टी बांधकर ऐसे चाटने में लगे हैं जैसे सरकार इन्हे चाशनी लगा के चटा रही है...ये दिमागी तौर पर अंधे ये भी भूल गए कि जिन किसानों पर लाठियां बरसीं वो भूखे जवानों को खाना भी खुद बना कर खिला रहे थे...


AC और ब्लोअर वाले दफ्तर में बैठकर जुबानी गोबर करना आसान है लेकिन जो किसान झेलता है उसकी परेशानी महसूस करना बहुत मुश्किल..जिसका उगाया अन्न खाते हैं उसी के खिलाफ ये कथित पत्रकार मुंह से हग रहे हैं...यकीन मानों इन कथित दिमागदारों को अगर हफ्ते भर के लिए बीबी बच्चों के साथ खेतों में वो सब करने के लिए कहा जाए जो किसान करता है तो इनके हगने का रास्ता बदल जाएगा…

अरे! चूतियों इस कड़कती ठंड में जाओ जाकर पानी की बौछार झेलो और लाठियां खाओ...तुम लोगों की जुबान किसानों से ज्यादा गंदगी न करें तो मेरा नाम बदल देना...और खालिस्तानियों की बात करते हो तो यूपी के किसान कैसे खालिस्तानी बन गए...डूब मरना चाहिए ऐसे कमीने पन के शिकार लोगों को…

मोदी जी का मैं भी समर्थक हूं और वोट भी बदलाव के लिए बीजेपी को ही दिया और आगे भी वोट बीजेपी को ही दूंगा लेकिन किसानों के साथ जो हो रहा है, उसके लिए आंख बंद कर सरकार के साथ खड़ा हो जाऊ ऐसा तो हरगिज नहीं, क्योंकि मैं एक किसान मां का बेटा हूं और मैं जानता हूं कि मेरी मां ने मेरी परवरिश के लिए कितनी मेहनत की है…

आतंकियों जैसा बर्ताव तो सरकार कर रही है जिसे किसान कभी अन्नदाता लग रहा था वो आज आक्रांता दिख रहा है...कमीनों अपने चैनल की लाइब्रेरी से निकालों वो बयान जिनमें पीएम और गृहमंत्री छाती ठोककर आय दोगुनी करने का दावा करते थे...और फिर हकीकत जानों कि क्या किसानों की आय दोगुनी हो गई…

अगर तुम्हानी नजर में लगता है कि विपक्ष इनको भड़का रहा है तो फिर सरकार कहां मंजीरा बजा रही है, विपक्ष की साजिश को किसानों के साथ मिलकर फेल क्यों नहीं कर देती सरकार...जाएं किसानों से बात करें और कह दें कि आप जो कहेंगे वही होगा...आजादी के बाद पहली बार दिख रहा है कि सरकार जबरदस्ती किसानों का भला करने पर तुली हुई है और किसान अपना भला नहीं चाहता...जिसका साफ मतलब है कि सरकार की योजना में जरूर कुछ न कुछ काला है


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