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11.5.21

प्राकृतिक आक्सीजन को जहरीली कर कब तक जिंदा रहेंगे कृत्रिम आक्सीजन के सहारे?

CHARAN SINGH RAJPUT-

कोरोना की दूसरी लहर में सबसे अधिक आक्सीजन सिलेंडरों का रोना रोया जा रहा है। अधिकतर मौतें आक्सीजन की कमी से होने की बातें सामने आ रही हैं। आक्सीजन भी कैसी कृत्रिम। क्या हमारे शरीर में इतनी प्राकृतिक आक्सीजन है कि हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रख सकते हैं। हम अपने संसाधनों के पीछे भागते-भागते आक्सीनज को जहरीला नहीं कर दिया है। क्या आज के जीवन स्तर में हम आक्सीजन से ज्यादा कार्डन डाई आक्साइड अपने अंदर लेने को मजबूर नहीं हो रहे हैं। क्या आज की तारीख में इन सब बातों पर मंथन करने की जरूरत नहीं है कि आखिरकार कोरोना जैसी महामारी और आक्सीजन की कमी से लोगों के संक्रमण होने और उनकी मौतों की नौबत आई कैसे ? क्या कृत्रिम आक्सीजन के सहारे हम जी सकते हैं ? क्या हमने खुद ही प्राकृतिक आक्सीजन को जहरीला नहीं किया है ? क्या आक्सीजन के स्रोत हम खुद ही खत्म नहीं कर रहे हैं ? आधुनिकता की दौड़ में दौड़ते-दौड़ते हमने शहरों को तो छोड़ दीजिए गांवों में भी आक्सीजन के स्रोत खत्म नहीं कर दिये हैं ? शहरों का प्रदूषण गांवों तक पहुंच गया है। यहां तक शुद्ध हवा देने वाले पर्वतीय क्षेत्रों तक (गंगोत्री) तक लोग प्रदूषण फैला दे रहे हैं। क्या कोरोना न होते हुए भी कितने लोग लोग कृत्रिम आक्सीजन लेने को मजबूर नहीं हैं ?

 
आज भले ही देश और दुनिया में कोरोना वायरस से लोगों की मौतें हो रही हैं पर क्या हमने प्रकृति का इतना तहस-नहस नहीं कर दिया कि है कि कोरोना के अलावा तरह-तरह की गंभीर बीमारियां हमारे शरीर में घर कर गई हैं। भारत में तो कैंसर की महामारी होने की भी आशंका जताई जाने लगी है। दूसरे देशों को छोड़ दीजिए। हमारे देश की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति के साथ ही हमारी संस्कृति ऐसी रही है कि भले ही हम अभाव में जीये हों पर स्वास्थ्य के मामले में हम अव्वल रहे हैं। पैसे और संसाधनों के पीछे भागते-भागते हमने अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया। आज डाक्टरों से लेकर विशेषज्ञाों तक पौष्टिक आहार लेने की बात कर रहे हैं। क्या देश में पौष्टिक आहार बचा है। क्या दूध असली मिल रहा है। क्या फल, सब्जी जहरीले नहीं कर दिये गये हैं। क्या अधिक से अधिक फसल पैदा करने लिए विगिन्न प्रकार के कैमिकलों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यह सब करने के लिए सरकारें ही प्रेरित नहीं कर रही हैं ? क्या हमारा शरीर अंदर से खोखला नहीं हो गया है ? क्या हमारी दिनचर्या और खानपीन इस तरह का रह गया है कि हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता पर नाज कर सकें। कोरोना ही क्यों कोई भी गंभीर बीमारी आदमी को हो रही है तो वह उसे झेलने में विफल साबित हो रहा है। सरकारों से लेकर आम आदमी तक स्वास्थ्य के प्रति सचेत नजर नहीं आ रहा है। वैसे भी मोदी सरकार ने तो लोगों को आर्थिक, मानसिक रूप से इतना तोड़ दिया है कि स्वास्थ्य पर ध्यान रखना अब नामुमकिन सा लगने लगा है।

हमारा देश पर्वत, नदी, नाले, खेत-खलिहान, पेड़ पौधों के मामलों में अग्रनीय रहा है। मोदी सरकार ने तो अडानी ग्रुप को पर्वतों पर खनन का ही ठेका दे दिया। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हॉकी, कबड्डी, कुश्ती जैसे देशी खेल देश में प्रचलित रहे हैं। सरकारों खेलों को कितना बढ़ावा दे रही हैं । अब आम का सीजन चल रहा है। कितने लोगों को डाल के आम खाने को मिलेंगे। या फिर कितने लोग शुद्ध आम का पाएंगे ? हम खा रहे हैं जहर और उम्मीद कर रहे हैं हमारी काया बज्जर हो जाए। बच्चों का जीवन स्तर इस तरह के बन चुका है कि दूध-दही, दोल-रोटी फल फ्रूट से ज्यादा उन्हें पिज्जा, चाऊमीन जैसे दूसरे फास्ट फूड उन्हें भा रहे हैं। या वे आदी हो गये हैं। मैं यह लिखने की कोशिश कर रहा हूं कि यदि हमने अपने जीना का तरीका नहीं बदला, यदि हमारे खाप-पीन और खाद्यान्न में हो रही मिलावट को खत्म न किया गया तो कोरोना जैसी न कितनी बीमारियां ऐसे देश में मौत का तांडव करती रहेंगी।

कृत्रिम आक्सीजन के भरोसे कब तक रहा जाएगा ? कैसे प्राकृतिक आक्सीजन हमें मिलती रहे। कैसे हमारे अंदर आक्सीजन की कमी पैदा न हो, इस पर काम करने की जरूरत है। ये जो सत्ता के लोभी नेता देश में कुकुरमुत्तों की तरह  पनप रहे हैं उन्हें अपनी जिम्मेदारी औेर जवाबदेही का एहसास कराने की जरूरत है। यदि एहसास न हो तो दौड़ाने की जरूरत है। कोरोना महामारी में देश के कितने मंत्री, कितने सांसद, कितने विधायक या फिर दूसरे जनप्रतिनिधि लोगों की जान बचाने के प्रति गंभीर देखे जा रहे हैं ? ये लोग कोरेाना महामारी से निपटने में अपना कितना योगदान दे रहे हैं ? देश में बस धंधा चल रहा है। कोराना कहर में भी। रोज आक्सीजन सिलेंडरों की ब्लैकमेलिंग, बेड के सौदे, मानव अंगों की तस्करी की बातें रोज सामने आ रही हैं।

किसी भी समस्या पर अधिकतर लोग यह कहकर चुप रह जाते हैं कि हमें क्या जरूरत है। यदि समस्याओं पर चुप रहे तो कोरोना जैसी महामारी झेलना हमारी नियति में शामिल हो जाएगा। सरकारें कुछ भी करती रहती हैं हम चुप रहते हैं। देश में कितनी भी बड़ी समस्या हो हम अपने काम में लगे रहते हैं। आज इन सब बातों के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। कितने लोगों ने मोदी सरकार को एहसास कराए कि कोरोना फिर से भी कहर बरपा सकता है। स्वास्थ्य सेवाएं ठीक की जाएं। कितने लोग प. बंगाल में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ पूरी भाजपा के चुनाव प्रचार में बरती जा रही लापरवाही पर बोले। कितने लोग मीडिया की मोदी भक्ति पर बोले। कितने लोग मोदी सरकार की मनमानी, तानशाही पर बोले ? कितने लोग विपक्ष के नकारेपन पर बोले ? यदि जिंदा रहना है तो बोलना होगा। अपने स्वास्थ्य के प्रति गंभीर रहना होगा। सरकारों को भी लोगों के स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता बतरने के लिए मजबूर करना होगा।


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