Rizwan Chanchal-
उत्तर प्रदेश की चित्रकूट जेल शुक्रवार को गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठी,जेल के अंदर शार्प शूटर अंशुल दीक्षित ने शार्प शूटर मेराजुद्दीन उर्फ मेराज अली और मुकीम उर्फ काला पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाते हुए दोनों को मौत के घाट उतार दिया बाद में जेल पुलिस ने अंशू को भी जेल में ही ढेर कर दिया। घटना घटित होने के बाद से शासन-प्रशासन और पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ है।
हड़कम्प मचना स्वाभाविक है क्यों कि मामला जेल के अंदर का है। जेलर सहित 4 अफसरों को ससपेंड भी कर दिया गया है पहले भी ऐसी घटनाएं जेलों में घटित हो चुकी हैं जब जब ऐसी घटनाये हुई है तो हड़कंप मचा है। याद होगा जुलाई 2018 में पूर्वांचल के माफिया डान "मुन्ना बजरंगी"की बागपत जेल में हत्या कर दी गई थी तब भी कम हडकंम्प नही मचा था बावजूद इसके इस तरह की घटनाओं पर विराम नही लगा।
घटना को लेकर पक्ष-विपक्ष में बयानबाज़ी का सिलसिला जारी है कुछ लोग यह कह रहे हैं कि जब जेल के अंदर ही हत्यायें हो रही है तो बाहर वालों की सुरक्षा कैसे होगी कुछ विपक्षी नेता इसे पूर्व नियोजित हत्या बता इसे जेल के अंदर की बड़ी साजिश बता रहे हैं जिसमें अंशू के माध्यम से दो बंदियों को पहले मरवाने और बाद में पुलिस से मिलकर उसे भी मार देने की बात कह रहे हैं ताकि सबूत भी न बचे इधर सरकार इस घटना पर गंभीर रुख अपना रही है जेल के 4 शीर्ष अधिकारी नप चुके है और जांच जारी है अन्य कइयों पर भी गाज गिरने की प्रबल संभावना है।
सवाल यह उठता है कि अपराधियों के लिए सुधारगृह के रूप में बनी इन जेलों में आखिर अपराधी हत्या जैसे गंभीर अपराधों को अंजाम कैसे दे देते हैं..? आखिर जेल के अंदर इनके पास असलहे कहाँ से आ जाते है..? रंगदारी हो या फिरौती,ठेकेदारी हो या रियल स्टेट का काम जेल के अंदर से ये अपराधी इन कामों को कैसे अंजाम दे लेते है..? जेल में रहकर भी इन अपराधियों की हनक,ठनक,धमक बाहर तक कैसे काम करती रहती है ...? क्यों इनकी मनमानी पर लगाम कसने या पंगा लेने की कोशिश करने वाले जेल अफसरों को जान की कीमत चुकानी पड़ती है..? वो चाहे वाराणसी के डिप्टी जेलर अनिल त्यागी रहे हों या लखनऊ जेल अधीक्षक आर के तिवारी या फिर जेलर अशोक गौतम या मेरठ के डिप्टी जेलर नरेंद्र द्विवेदी ऐसे कितने जेल अफसरों की हुई हत्याएं इसका उदाहरण हैं।
जेल सूत्रों के मुताबिक यूपी में करीब 3 आदर्श कारागार, पांच केंद्रीय व 63 जिला कारागार हैं बड़ी बात यह है कि इन जेलों में कितने कैदी रखे जाएंगे इसका मानक भी तय है लेकिन वास्तविकता कुछ इतर है ज्यादातर जेलों में मानक से ज्यादा कैदी रखे गए हैं मतलब साफ है कि यूपी की जेलों में क्षमता से डेढ़ दो गुना अधिक कैदी भरे पड़े है। जब जब इस तरह की घटनाएं घटित हुई है तब तब जेलों में कैदियों की क्षमता से अधिक संख्या के सवाल भी उठते रहे हैं । यही नही जेल स्टाफ की संख्या भी जेलों में काफी कम है जेलों में मानक से कम बंदी रक्षक और अन्य कर्मचारी हैं, इससे भी जिलों की स्थिति बदहाल बनी हुई है सूबे की कुछ जेलें ऐसी भी हैं जहां बंद कैदियों में कई ऐसे खुंखार कैदी हैं जो जेलों से ही अपना नेटवर्क चलाते रहते हैं। उत्तर प्रदेश की जेलों में कुख्यात खुंखार और फांसी की सजा पाए हुए अपराधी कम नही है,उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनके आतंक का आलम यह है कि वे जेल में ही बैठे-बैठे बड़े-बड़े काम को जेल से ही अंजाम देते रहतें है उनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि उन पर जल्दी किसी जेल अधिकारी का नियंत्रण भी काम नही करता। इनके तार भी दूर तक जुड़े होते हैं, इन्हें जेल के भीतर ही जरूरत के सारे संसाधन भी मुहैया होते है तथा ऐसे अपराधी मोबाइल के जरिए अपना काम भी आसानी से करते रहते हैं और इन अपराधियों के गुर्गे इनके इशारे पर इनका काम करते रहते हैं।
आपको याद हो न हो कुछ साल पूर्व मेरठ की जेल में बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच हुए विवाद ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था जिसमें बंदियों ने जेलकर्मियों पर मारपीट का आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया था तथा एक बैरक और जेल की रसोई में आग भी लगा दी थी। करीब तीन घंटे तक यहां चली हिंसा में दर्जनों लोग घायल भी हुए थे । इसी तरह इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में भी एक सजायाफ्ता कैदी बंसी लाल की लाश बाथरूम में फंदे से लटकी पाई गई थी उसके कपड़ों पर भी खून लगा था और पोस्टमार्टम में उसकी हत्या की पुष्टि हुई थी, बस्ती मंडलीय जेल में भी बंदियों और बंदी रक्षकों के बीच जमकर गोलीबारी भी हुई थी जिसमे बंदियों ने जेल के गेट तोड़ डाले थे और आग भी लगा दी थी यहां जवाबी कार्यवाही में पुलिस को लगभग डेढ़ सौ राउंड गोलियां दागनी पड़ी थी इस घटना में भी बंदी रक्षकों और कैदियों के बीच घंटो चले बवाल में दो बंदियों की की मौत तथा कई बंदी घायल भी हुए थे।
जाहिर है कि जेल का स्टाफ ही जेल बंदियों को पैसे की बदौलत उन्हें ऐशो-आराम की चीजें उपलब्ध कराता है वर्ना जेल में इन्हें ऐसे निरुद्ध सामान मिलते कैसे है ..? इनमे कुछ अपराधी दबंगई भी करते हैं। चित्रकूट जिला जेल में भी बंद शार्प शूटर कैदी अंशुल दीक्षित के पास असलहे का होना यह संकेत देता है कि उसे मनमुताबिक जरूरत की चीजें जेल में उपलब्ध कराई जा रही थी। फिलहाल यहां के जेलर सहित 4 अफसरों को निलंबित कर दिया गया है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चित्रकूट धाम मण्डल के आईजी के. सत्यनारायण ने चित्रकूट जेल की इस घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि जेल में पश्चिम यूपी के टॉप मोस्ट क्रिमिनल मेराजुद्दीन और मुकीम उर्फ काला पर शार्प शूटर अंशुल दीक्षित ने गोलियां दागीं दोनों गुटों में हुए संघर्ष में मेराजुद्दीन और मुकीम मारे गए। इसके बाद पुलिस बल ने जेल के अंदर ही अंशुल का एनकाउंटर कर दिया। बताया जाता है कि अंशु दीक्षित को 2014 में गोरखपुर एसटीएफ ने पकड़ा था तब उसे सीएमओ विनोद आर्या के बहुचर्चित हत्याकांड में गोरखनाथ थाना क्षेत्र के 10 नंबर बोरिंग से मुठभेड़ के दौरान अरेस्ट किया गया था। उसके खिलाफ लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र नेता विनोद त्रिपाठी की भी हत्या का आरोप था।
प्रदेश की जेलों में साल दो साल में इस तरह की घटनाएं
सामने आती रहती हैं घटना के बाद शासन प्रशासन में हडकंम्प भी मचता है जेलों में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए मसौदे भी बनते है किंतु घटनाये हैं कि रुकने का नाम ही नही लेती,जेल के एक रिटायर्ड अफसर की यदि माने तो जेलों में यह परंपरा पूर्वांचल के ही कुछ बहुचर्चित माफियाओं से शुरू हुई ,उन्होंने जेलों को अपने इशारे पर चलाना शुरू किया और फिर ये सिलसिला चल पड़ा । बड़े अपराधी जेलों में पैसे के बदौलत मनचाही बैरक, लजीज भोजन, सिगरेट-शराब और मोबाइल फोन की सुविधा तो पाते ही है ये जेलों में रहकर ही बड़े बड़े अपराधों को भी अंजाम देते रहते है।
रिपोर्ट-रिज़वान चंचल
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