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15.5.21

काम करो नकारात्मक और उपदेश दो सकारात्मकता का, नहीं चलेगा ...


CHARAN SINGH RAJPUT-
    
 
गजब खेल है आरएसएस और भाजपा का काम करेंगे नकारात्मक, माहौल बनाएंगे बांटने का और उपदेश देने निकल जाएंगे सकारात्मकता का। कोरोना कहर में मोदी सरकार स्वास्थाएं सेवाओं के प्रति उदासीन रवैया अपनाती रही। भावनात्मक मुद्दों का राग छेडक़र लोगों को बेवकूफ बनाती रही। बेतहाशा महंगाई के साथ नोटबंदी, जीएसटी, नये किसान कानून लागू कर औेर श्रम कानून में संशोधन कर लोगों का जीना मुश्किल कर दिया। रोजी-रोटी का बड़ा संदेश में खड़ा कर दिया। घोर लापरवाही बरत कर लोगों को कोरोना महामारी के मुंह में झोंक दिया और अभियान चलाने निकलने हैं सकारात्मकता का। लोगों को सकारात्मक सोच रखने के लिए प्रवचन दिया जा रहा है। प्रवचन भी कौन दे रहा है ? जो संगठन निर्माण के बाद से ही नकारात्मक काम करता आ रहा है। लोगों की सोच सकारात्मक करने का बीड़ा आरएसएस ने उठाया है। इनकी नजरों में लोग बेवकूफ हैं। बिना वजह के नकारात्मकता में जी रहे हैं। कोरोना महामारी में लोग आक्कसीजन की कमी से मर रहे हैं। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए 40000 तक आक्सीजन सिलेंडर के नाम पर वसूले जा रहे हैं। कोरोना मरीजों को अस्पतालों  में बेड तक नहीं मिल रहे हैं। संक्रमित शवों के कंधे देने और मुंह देखने के लिए नाम उगाही चल रही है। नदियों में शव बह रहे हैं, उन्हें कुत्ते नोच रहे हैं और ये लोग सकारात्मकता का संदेश देते घूम रहे हैं।


क्या देश में मोदी सरकार और भाजपा शासित प्रदेशों में सकारात्मक माहौल है ? क्या कभी आरएसएस ने देश में सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया है। लोगों के कनस्तर में आटा नहीं है औेर उन्हें सकारत्मक सोच बनाए रखने की बात कही जा रही है। जिन लोगों ने आक्सीजन की कमी में अपने खो दिये हैं वे लोग क्या सकारात्मक सोच पाएंगे ? जिन लोगों के अपने बेड नहीं मिलने से दम तोड़ दे रहे हैं, जिन लोगों को इलाज के लिए दर-दर की ठाकरें खानी पड़ रही हैं। जिन लोगों से अस्पतालों में लूटखसोट हो रही है, क्या वे सकारात्मक सोच बना पाएंगे  ?

दिलचस्प बात यह है कि इस सकारात्मक अभियान में नकारात्मकता के लिए जाने जाने वाले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। उनकी टीम में सद्गुरु जग्गी वासुदेव, पूज्य आचार्य प्रमाणसागर, आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर, विप्रो के अजीम प्रेमजी, शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती, सोनल मानसिंह, आचार्य विद्यासागर और महंत ग्यानदेव सिंह शामिल भी हैं। इस अभियान में आरएसएस ने जितने भी नाम दिये हैं अजीम प्रेम जी के अलावा कितने लोग विश्वसनीय हैं ? कितने लोग समाज के लिए ईमानदारी से काम कर रहे हैं ? श्री श्री रविशंकर तो सरकारी स्कूलों में नक्सली तैयार होने की बात कर रहे थे। क्या इस सोच को सकारात्मक सोच कहा जा सकता है ? कोरोना काल में अपनी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई फ्री करें। तब सकारात्मकता की बात करना। अपने धंधे की कमाई में से कुछ गरीब-गुरबों पर लगाओ। कोरोना महामारी में प्रवर्चन देने से सकारात्मकता का नारा नहीं दिया जा सकता है। अपने कर्मांे से सकारात्मक माहौेल बनाना होगा। ये जितने भी लोग इस अभियान में लगे हैं पहले अपने बारे में बताएं कि देश और समाज के लिए कितना सकारात्मक किया है।

मोहन भागवत अपना एक भी काम बताएं जिसके आधार पर कहा जा सके कि वह सकारात्मकता के लिए काम कर रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष देश में धर्मनिरपेक्षता को गाली देते रहो, हिन्दू राष्ट्र की बात करते रहो और सकारात्मक बात करते रहो। बन जाएगा सकारात्मक माहोैल। जब प्रधानमंत्री धर्मनिरपेक्षता का मजाक बना रहे ते तो इनमें से कितने लोगों ने इसका विरोध किया। बात करोगो देश को बांटने की। काम करोगे लोगों को बर्बाद करने वाला और संदेश दोगे सकारात्मकता का। आरएसएस के गठन के बाद इस संगठन ने क्या कभी सकारात्मक सोच वाली बात कही है ? चौ चूंहे खाकर बिल्ली चली हज को। आरएसएस का यह अभियान इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है। क्या किसी धर्म विशेष के खिलाफ नफरत का माहौल बनाकर सकारात्मकता की बात की जा सकती है ? ऊंच-नीच की सोच रखकर सकारात्मक की बात की जा सकती है ? लोगों को बताया जाए कि आरएसएस में कितने दलित हैं, कितनी महिलाएं हैं और कितने मुस्लिम ? मैं कांग्रेस सांसद राहुल गांंधी और चुनावी मैनेजर प्रशांत किशोर के बयान के बयान पर नहीं जाऊंगा। मैं बात आरएसएस की सोच की कर कर रहा हूं। और कितना बेवकूफ बनाओगे लोगों का ? खुद आलीशान घरों में रहो, चंदे के पैसे पर अय्याशी करते रहो। लगजरी जिंदगी जीओ। लोगों की भावनाओं को भुनाते रहो और जब लोग किसी परेशानी में पड़ें तो उनकी परेशानी दूर करने के बजाय उनको सकारात्मकता का उपदेश देने लगो। अब जब प्रधानमंत्री का चेहरा देखने को कोई तैयार नहीं तो मोहन भागवत को लगाया गया है लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए। क्या ये लोग सकारात्मक सोचते हैं ? सोच है लोगों को आर्थिक रूप से तोड़ दो और उन पर रज करो। क्या हमेशा हिन्दू-मुस्लिम की बात करने वाला संगठन सकारात्मकता की सोच सकता है ? कोरोना महामारी में दिलवाओ फ्री में आक्सीजन सिलेंडर। आरएसएस के स्कूलों में कोरोना काल की फीस माफ कराओ। आरएसएस और भाजपा के साथ इन महान विभूतियों से जुड़े शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई फ्री कराओ और अस्पतालों में फ्री इलाज कराओ।  तब सकारात्मकता की बात करना।

शिक्षण संस्थान खोलकर, अस्पताल खोलकर लोगों को लूटते रहो और सकारात्मकता का प्रवचन देते रहो। आरएसएस से जुड़े लोगों के कितने अस्पतालों में कोरोना का फ्री में इलाज हो रहा है ? गौतमबुद्धनगर के सांसद महेश शर्मा के तो कई अस्पताल हैं, बताएं कोरोना मरीजों के लिए क्या कर रहे हैं ? राम मंदिर निर्माण के लिए जो पैसा उगाहा गया है उसे कोरोना महामारी में लगाओ। या फिर कोरोना महामारी के लिए भी राम मंदिर निर्माण की तरह चंदा इकट्ठा करो। देश में जितने भी मंदिर हैं उनको कोविड सेंटर के रूप में तब्दील करो। मंदिर में आने वाले अरबों  के चढ़ावे को कोरोना महामारी पर खर्च करो। रोजी-रोटी के लिए तरस रहे लोगों की मदद करो। तब जाकर सकारात्मकता की बात करना। वातानुकूलित कमरो में बैठकर सकारात्मकता की बात नहीं की जा सकती है ? जैसा खाते पीते हो। जैसा रहन-सहन है। वैसा ही जनता के लिए करो। तब सकारात्मकता की बात करना। अब देश की जनता तुम जैसे बेगैरत लोगों के प्रवचन सुनने को तैयार नहीं है। प्रवचन देने ही हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उसके गृहमंत्री और दूसरे मंत्रियों को दो। भाजपा शासित प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को दो। भाजपा ओैर आरएसएस कार्यकर्ताओं को दो कि कोरोना महामारी में लोगों की मदद करें। न कि राजनीति।  लॉकडाउन के नाम पर राशन की दुकान मत खुलने दो। आम आदमी को जरूरी काम के लिए भी मत चलने दो और शराब के ठेके खोल दो। बन जाएगी सकारात्मक सोच। लोगों को मास्क लगाने औेर सोशल डिस्टिेंडिंग का उपदेश देते रहो औेर खुद बिना मास्क के लाखों की भीड़ को संबोधित करते रहो। कुंभ मेले में लाखों साधु संतों को गंगा स्नान करने की छूट दे दो। उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बोले गंगा स्नान करने से कोरोना भाग जाएगा औेर लोगों को उपदेश दो सकारात्मकता का। कुछ तो शर्म करो। चुल्लूभर पानी में डूब मरो।

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