Ashok Chopra
करोना महामारी ने विश्व के अधिकांश लोगों के जीवन को बदल दिया है । लोग सहम गए हैं। बहुत से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। बहुतों के अपने बेवक्त काल की आगोश में चले गए। भारत सहित बहुत से देशों में बिमारी के विकराल रूप के आगे समुचा स्वास्थ्य तन्त्र बेबस, मजबूर व लाचार हो गया है।
अमेरिका जैसे विकसित देश में भी स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई । लोगों को इलाज के लिए इंतजार करना पड़ा। संसाधनों की कमी हों गई। बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा है। कोई भी देश बेबस हो सकता है ये बात समझ आती है।
परन्तु दुःख तब होता है जब कुछ लोग इस महामारी के समय में भी हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए । एक एक सांस के लिए संघर्षरत लोगों को उनकी बेबसी की अधिक से अधिक किमत वसूल रहे हैं। चाहे वो आक्सीजन सिलेंडर हो, हस्पताल का बैंड हो, जीवन रक्षक दवाएं हों, एम्बुलेंस हों जहां भी मोका मिला वहीं निर्दयतापूर्वक फायदा उठाया । सभी के मनमाने दाम लिए। दुःख इस लिए ओर अधिक है व हमारा मस्तक शर्म से झुक जाता है कि महामारी पुरे विश्व में है परंतु किसी भी ओर देश से इस तरह का समाचार सुनने में नहीं आया। क्या यही है हमारी नैतिकता , क्या यही है हमारी संस्कृति, हमारी परवरिश, हमारे संस्कार।कोन है वो लोग जो ये सब कर रहे हैं क्या किसी दुसरे गृह से आएं हुए एलियन है ? चाइना ,पाकिस्तान से आए हैं ? नहीं वो हम ही है हमारे मे से ही कुछ हैं।
परन्तु ये सब कैसे हो गया । हम ऐसे कैसे हो सकतें हैं ।हम इतने गन्दी घृणित मानसिकता वाले कैसे हो गये। पैसा हमारे लिए हमारे अपनो की जिंदगियों से ज्यादा कीमती हो गया। हमारे ज़मीर से ज्यादा कीमती है । जब हमारा ज़मीर हमारे से जवाब मांगता है तो हम दोश देते हैं सिस्टम को।
नहीं हम ऐसे नहीं हैं ये तो सिस्टम कबाड़ हों गया है, सड़ गया है सब नेता चोर है बेइमान है ।आप की बात बिल्कुल सही है। हों सकता है सिस्टम ख़राब है। परन्तु यह सब क्यों हो रहा है । 74 साल हो गये देश को आजाद हुए। सभी पार्टियों ने सत्ता सम्हाली सभी ने राज किया चेहरे भी बदलें । कुछ नेता साधारण परिवारो में से देश के शीर्ष पदों पर पहुंचे व कुछ राजपरिवारो से आये परन्तु कोई भी बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ सिस्टम में ।कुछ करना चाहते थे परन्तु कर नहीं पाये। सिस्टम ने व्यक्तियों को बदल दिया परन्तु व्यक्ति सिस्टम को नहीं बदल पाये क्या कारण है ? क्यों नहीं बदल पाये?
सिस्टम में अधिकांश लोगों एक ही सोच के है। हमारे जैसे मेरे जैसे आप जैसे ।जिन्हें ये सिस्टम सूट करता है उनकी स्वार्थ पूर्ति करता है।
जो मुझे समझ आया कारण है हम खुद जैसी जनता वैसे नेता वैसा सिस्टम। नेता भी हमारे में से बनते हैं
फिर, प्रोब्लम कहा है ? प्रोब्लम है हमारे खुद में हमारे समाज में ,समाजिक ढांचे में, हमारी सोच में । हमारे पुर्वजों ने हमें । व हमने हमारे बच्चों को चरित्रवान इन्सान बनाने कि बजाये पैसा बनाने वाली मशीन बना दिया। आप की सैलरी का पैकेज क्या है यह मैटर करता है आप के पास पैसा कितना है यह मैटर करता है पैसा कैसे कमाया है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हमें।आप किस पद पर हो यह मैटर करता है कैसे पद प्राप्त किया यह मैटर नहीं करता। दोष हमारे निर्माण में है हमारी परवरिश में है। सोच में है।
तो शूरु हमें यही से करना पड़ेगा खुद से अपने से अपने बच्चों से उनके चरित्र के निर्माण से। जैसा raw materials होगा वैसे ही products बनेंगे।हम अच्छे होंगे तो समाज अच्छा होगा , समाज अच्छा होगा तो नेता भी अच्छे होंगे नेता अच्छे होंगे तो सिस्टम अपने आप ठीक हो जाएगा।
रोते रहो , कोसते रहो, बुराई करने रहो, गालियां देते रहो कुछ भी कर लो , कुछ भी , कुछ नहीं होने वाला कभी भी कर लेना अन्त में शुरुआत खुद से करनी पड़ेगी खुद से मेरे को मुझ से आप को आप से । बहुत लम्बा रास्ता है अभी तो मुश्किल लग रहा है पर , नाउम्मीदी नहीं है । मेरे को उम्मीद जगाते हैं वह चिकित्सक जो करोना की ड्यूटी के लिए डबल सैलरी लेने से मना कर देते हैं ।वो लोग जो अक्सिजन सिलेंडर ब्लैक करने वालों के सामने अक्सिजन के लंगर लगातें है।वो लोग जो खाने के लंगर लगातें है। वो लोग जो फ्री एम्बुलेंस चलाते हैं। इसका मतलब इन्सानियत का बहुत सा बीज अभी हमारे में बाकी है बस थोड़ा सा वातावरण अनुकूल करना है संस्कारों की सिंचाई करनी है ।
ईश्वर हम सभी को हिम्मत दें सद्बुद्धि दे शुरुआत तों करें । सिस्टम हम बनाते हैं, हमे सिस्टम नहीं बनाता
अशोक चोपड़ा एडवोकेट
प्रेसिडेंट
इंटर्नैशनल ह्यूमन राइट्स काउन्सिल हरियाणा
No comments:
Post a Comment