Rizwan Chanchal-
एक बार फिर मानवीय संवेदना को तार तार करता वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जो नंगे होते समाज पर प्रश्न चिन्ह छोड़ गया। कंधे पर बेटी का शव उठाये सड़क पर चलते इस बाप के दर्द से न तो पत्थर दिल होते समाज के उन तमाम आते जाते राहगीरों वाहन सवारों में किसी एक का दिल पसीजा और न ही कोई प्रसाशनिक सहायता दी गई।
बताया जाता है कि जालंधर जिले के रामनगर इलाके में गरीब मजदूर दिलीप की 11 साल की बेटी की कोरोना से मौत हो गई। इलाके के लोगों ने उसकी अर्थी को कंधा देने से इनकार कर दिया। अंततः मजबूर पिता दिलीप ने बेटी की लाश को कंधे पर लादा और बेटे को साथ ले श्मशान घाट की ओर खुद निकल पड़ा। लंबी दूरी तय करने के बाद किसी तरह उसने अपनी बेटी का अंतिम संस्कार किया। हालांकि घटना 10 मई की है लेकिन बेटी को कंधे पर लेकर जाते पिता का वीडियो सोशल मीडिया पर अब वायरल हुआ है।
कहना न होगा बेटी को कंधे पर श्मशान ले जाते बाप की इस घटना ने एक बार फिर प्रशासन के दावों की पोल खोलकर रख दी है।
वीडियो में जालंधर के रामनगर में लाचार पिता दिलीप अपनी बेटी का शव लेकर जाता दिख रहा है। बुजुर्ग के साथ एक बच्चा भी है जो बार-बार नीचे गिर रहे लाश के ऊपर रखे कपड़े को उठा कर सही कर रहा है ।
करीब 34 सेकेंड के इस हृदय विदारक वीडियो से जहां प्रशासनिक दावों और व्यवस्थाओं की हक़ीक़त साफ तौर पर सामने आ रही है वही संवेदन शून्य होते जा रहे समाज के नंगे होते जा रहे स्वरूप की झलक भी साफ दिख रही है।
दिलीप के मुताबिक,अमृतसर के गुरु नानक मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों ने उसकी बेटी के कोरोना संक्रमित होने की बात कही लेकिन कोई रिपोर्ट उन्हें नहीं दी गई। दिलीप को इस बात का भी मलाल है कि किसी ने उसकी बेटी के शव को कंधा नहीं दिया बल्कि रास्ते में लोगों ने उसकी वीडियो जगह जगह जरूर बनाई जिसका उसे बेहद मलाल है जो वह जीते जी कभी नही भुला पायेगा।
आज जब मेरे पास भी इस वीडियो को साथी इमरान ने भेजा तो देखकर एकबार फिर दर्द से दिल बोझिल हो उठा कलम सिसकने लगी। भले ही एक मजदूर बाप की इस बेवसी व अथाह पीड़ा को समाज के बड़े वर्ग ने मात्र वीडियो बनाने तक ही समेट दिया हो लेकिन इस तस्वीर ने मुझे बेहद दर्द दिया देखकर आंखे नम हो चली। ऐसा नही कि ये वीभत्स तस्वीर सत्ता के गलियारों तक न पहुंची हों जरूर पहुंची होगी लेकिन अब ऐसी घटनाएं आम हो चुकी है जो न तो नंगे हो चले समाज के दिलों को झकझोरती है और न ही प्रसाशन की कारगुजारियों पर सवाल खड़ा करती हैं।
कहने का तातपर्य यह कि हम आये दिन ऐसी घटनाओं को देख देख कर पत्थर हो गए है या यूं कहें की इतने संवेदनहीन हो गए कि इस तरह की तस्वीरें अब न तो हमे विचलित करती हैं और न ही दिल बोझिल होता है । कहना न होगा आपदा के इस बुरे वक्त में क्या राजा क्या प्रजा सभी का इम्तिहान हो रहा है। अच्छे वक़्त में तो सभी साथ खड़े दिखते है लेकिन इस बुरे दौर में जो चंद लोग चट्टान की तरह खड़े रहकर लोगों की सेवा में जुटे है,लोगो की सहायता कर रहे है,शवों का अंतिम संस्कार करा रहे हैं उन्हें दिल से मेरा सलाम है ऐसे लोंगो को इतिहास याद रखेगा।
मुश्किल दौर है ये आज नही तो कल गुजर ही जायेगा लेकिन एक सबक जरूर हम सबको दे जाएगा । खत्म होती इंसानियत ,झूठे रिस्ते,बड़े बड़े हवा-हवाई प्रसाशनिक दावे, मौजूदा समाज की हक़ीक़त आदि से हम सबको रूबरू कराते हुए आईना जरूर दिखा जाएगा। जिन्होंने अपनो को खोया वह ताउम्र इस काल को याद रखेंगे और उनके साथ इस बुरे वक़्त में किसी के साथ न खड़े होने का ये ज़ख्म भी उनको हमेशा टीस देता रहेगा। कल्पना करिए जिन्होंने अपनो को खो दिया हो और ऐसे बुरे वक्त में उनसे उनके अपनो ने भी आंखे मोड़ ली तो आखिर उस पर क्या गुज़री होगी।
ऐसे में अगर उसके पास अपना कुछ बचा तो वो थी सिर्फ हिम्मत यही हिम्मत इस मजबूर बाप को बेटी के शव को श्मशान तक ले जाने में सफल हो पाई । होती भी क्यों न आखिर लाडली तो उसकी दिल का टुकड़ा थी। वक़्त बुरा है लेकिन याद रखिये ये केवल एक बाप बेटी की कहानी मात्रा नही बल्कि वर्तमान समाज की वो तस्वीर हैं जो इतिहास के पन्नो से नही मिटाई जा सकेंगी ?
देखें वीडियो-
लखनऊ से रिज़वान चंचल की रिपोर्ट.
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