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18.12.21

झुकने के बजाय पत्रकार ने सवाल क्यों कर दिया?

 arun srivastava-

सलाम कीजिए आली जनाब आये हैं... तो आली जनाब के आगे झुक जाना चाहिए था। झुकने के बजाए सवाल करने लगे, वो भी ऐरे-गैरे से नहीं सांसद से और जब सांसद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हो वो भी राक्षसी बहुमत प्राप्त वाली सरकार का, तब सवाल! अब यह मत कहिएगा कि, इससे ज्यादा सांसद तो स्व. राजीव गांधी सरकार के पास भी थे और उसमें से कई बाहुबली भी रहे होंगे। रहे होंगे पर किसी ने सरेआम घोषित तो नहीं किया था न कि, मैं एक विधायक या सांसद ही नहीं हूँ ... यहाँ के लोग जानते हैं कि इसके पहले मैं क्या था। फिर यह बात उन्होंने किसी के कान में नहीं कही थी। सरे-आम कहा था और  लाउडस्पीकर से कहा था। अब चूक यह हो गई कि, यह नहीं बताया कि, ' इसके पहले वो क्या थे ?


अब इतने भर के लिए मैं  मंत्री महोदय को दोषी नहीं मानता। अरे जब औरों ने तब बताया जब चुनाव आयोग ने बताने को मजबूर किया। अपने टेनी भइया ने तो भरी सभा में बता दिया था। मेरे विचार से सभा में मौजूद लोगों ने इतने में ही तालियों की गड़गड़ाहट से न केवल उनके कहे पर ठप्पा लगा दिया वर्ना वो तो बता ही दिये होते पर उन्होंने जता तो दिया ही। तब भी लोग न समझ पाएं तो इसमें हमरे टेनी भइया का का दोष ! 

अब इसमें सारा ठीकरा हमरे बेचारे टेनी के सिर फोड़ना 'धैर्यवान' मीडिया व बात बात में सरकार को कटघरे में खड़ा करने, सरकार से इस्तीफा मांगने वाले विपक्ष को शोभा नहीं देता। फिर तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ ने भी टेनी भइया की तरह ही साफ-साफ कह दिया था कि, यूपीए सरकार में इस्तीफे दिये जाते थे और ये यूपीए की सरकार नहीं है। यानि 'मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ मेरी मर्जी'। तभी तो इस सरकार के कार्यकाल में राज्यसभा के लिए मनोनीत/सांसद पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने साफ-साफ कह दिया कि, जब मेरा मन करता है तब मैं  हाउस (सदन) में जाता हूं। यानि यहां भी मेरी मर्जी। गनीमत है कि, सीजेआई रहते यह सोच हिचकोले नहीं मारने लगी थी वर्ना राफेल और राम मंदिर जैसे मामले धरे के धरे रह जाते।

बहरहाल .... बात मुद्दे की यानी माननीय टेनी भइया की। लगे हाथ वो ये भी बता देते कि, ' वे विधायक, सांसद या मंत्री बनने के पहले क्या थे? हो सकता है कि उन्होंने बताया हो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच यह अदना खबरनवीश सुन न पाया हो। आखिर वो इंसान है। मेरे विचार से गलती खबरनबीस की भी नहीं तालियाँ बजाने वालों की रही होगी। अरे जब कौरव-पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य पूरी बात नहीं सुन पाए वो सिर्फ इतना सुन पाए कि,'अश्वत्थामा मारा गया... इसके बाद मुरलीधर ने शंख बजा दिया। जबकि मशहूर मुरली बजाने के लिए हैं।

हो सकता है कि, कौरवों को उनसे शंख बजाने की उम्मीद नहीं रही होगी जिस तरह से खबरिया चैनल के पत्रकार को नहीं थी और मंत्री को भी नहीं रही होगी आखिरकार आज तक किसी ने उनसे सवाल किया था क्या और वो भी उनके शहजादे के संबंध में चुभते हुए। उसने सोचा होगा कि, जिस तरह से वह औरों से सवाल करता आया है और जवाब भी मिलता रहा है, मिल जाएगा या जैसे कुछ तथाकथित बड़े नेता इग्नोर कर देते हैं, टेनी भइया भी कर देंगे। पर उसे क्या पता कि, टेनी भइया उस प्रजाति के नहीं 'उस' प्रजाति के हैं। यह भी हो सकता है कि, सवाल पूछने वाला खबरिया चैनल का पत्रकार उनके क्षेत्र में नया-नया आया हो। नहीं तो उसे अवश्य पता होता कि, 2019 में चुनाव जीतने वाले गृह राज्य मंत्री राजनीति में आने से पहले क्या थे ?

अब वो क्या थे यह तो मुझे भी नहीं पता!

अरुण श्रीवास्तव
 
देहरादून

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