Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

14.12.21

पत्रकारिता की ऐसी स्थिति लोकतंत्र के लिए बहुत भयावह है

प्रवेश चौहान-

आज की मीडिया इंडस्ट्री में एक नया प्रचलन बढ़ गया है। पत्रकार सरकार से सवाल ना पूछ कर विपक्ष से सवाल पूछता है। अगर कोई मीडिया हाउस सरकार से सवाल करता भी है तो उस पर इनकम टैक्स काले साए की तरह मंडराता रहता है। अभी कुछ समय पहले ही देश के जाने-माने प्रतिष्ठित अखबार दैनिक भास्कर पर लगातार छापे पड़े थे। जिस कारण सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा जिस यूट्यूब चैनल के लिए काम करते हैं उस यूट्यूब चैनल न्यूज़ क्लिक के दफ्तर पर छापे मारे गए थे। यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या छापा मारने से सरकार पत्रकारों की आवाज दबा लेगी। खैर यह आने वाला वक्त ही बताएगा।


आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि देश में कुछ इक्का दुक्की मीडिया संस्था ही बची है जो अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जानी जाती हैं। इनमें से दैनिक भास्कर, एनडीटीवी चैनल और बीबीसी न्यूज़ का नाम सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। जिनका इस वक्त पत्रकारिता के क्षेत्र में एक विशेष स्थान है।

हालांकि अभी भी देश की जनता में एक भ्रम पैदा है कि जो सरकार के खिलाफ है वह देश के खिलाफ है। वह देश भक्त नहीं है। मगर इस जनता को कौन समझाए, सरकार से सवाल पूछना और उनकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना वही पत्रकारिता का धर्म है। यही भ्रम एनडीटीवी न्यूज़ चैनल पर भी लोगों को पैदा हो गया है। एनडीटीवी चैनल को भी लोग सरकार की आलोचना करने के लिए जानते हैं। मगर हाल ही में हमने यह भी देखा है कि किसान आंदोलन के दौरान किसी भी मीडिया संस्थान ने किसानों के पक्ष की बात नहीं की थी। जिस कारण किसानों में मीडिया को लेकर खासी नाराजगी भी सामने आई है। यानी कि अब लोगों को भी बात समझ में आने लगी है। सरकार से सवाल करना और उनकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना बहुत जरूरी है। अगर आवाज नहीं उठाएंगे तो जनता की आवाज कभी नहीं उठेगी। यही कारण है की किसान आंदोलन को लगभग 1 साल पूरा हो चला है मगर आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

आंदोलन में सबसे अहम बात उभरकर जो निकली वह है, लोगों ने पत्रकारिता के उस बिकाऊ चेहरे को देखा जिस पर कभी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। यही कारण था किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह न्यूज़ चैनल और अखबारों ने कवरेज की। उसको लेकर किसान बहुत आहत हुए। मगर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ने इस आंदोलन को जीवित करके रखा। यूट्यूब चैनलों और वेब पोर्टलों ने इस आंदोलन में जान फूंक कर रखी जो देश के नेशनल मीडिया ने नहीं किया।

एक बड़े आंदोलन के बाद लोगों ने नेशनल मीडिया के उस काले चेहरे को देखा जिस पर सरकार का शिकंजा कसा हुआ है। कहीं ना कहीं आंदोलन के दौरान लोगों का बौद्धिक स्तर से भी विकास हुआ है। साथ ही सरकार पर लोगों का अंधविश्वास भी बहुत ज्यादा कम हुआ है। लोग सरकार के उस खेल को समझ चुके हैं।

No comments: