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12.5.22

लुधियाना का बूढ़ा नाला : पानी रे पानी, तेरा रंग क्यों इतना काला?

12 सौ करोड़ के प्रोजेक्ट के उपरांत भी हालात में नहीं हो पा रहा सुधार

नामधारी सतगुरु उदयसिंह भी अब अध्यक्ष पद छोडऩे का कर रहे विचार

जिस कमेटी में मुख्य सचिव, वह कमेटी भी अधिकारियों में इच्छाशक्ति को नहीं कर पाई बलवती

द सांध्य नेटवर्क

लुधियाना/श्रीगंगानगर। राजस्थान के श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सहित आधा दर्जन जिलों में पेयजल के रूप में जिस सतलुज नदी के पानी का इस्तेमाल किया जाता है, उस नदी की हालत को सुधारने के लिए नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, केन्द्र सरकार ने बहुतेरे प्रयास किये। मोदी सरकार ने 12 सौ करोड़  से ज्यादा बजट भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के रूप में मंजूर किया किंतु लुधियाना नगर निगम, प्रशासन के अधिकारियों की इच्छाशक्ति के अभाव में यह कार्य नहीं हो पाया। पंजाब सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक निगरानी कमेटी का भी गठन किया ताकि कार्य निर्बाध गति से पूर्ण किया जा सके किंतु यह कमेटी भी उद्योगों के रसायन को सतलुज नदी तक जाने से नहीं रोक पायी। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल करीबन पांच सौ करोड़ रुपये सरकार पर जुर्माना लगा चुका है किंतु नतीजा जीरो है। इन सब हालात को देखते हुए नामधारी सतगुरु उदयसिंह अब कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं।

राजस्थान में स्वच्छ पेयजल को लेकर राजनीति का एक लम्बी इतिहास नजर आ जाता है। एक दशक से भी लम्बे समय से दूषित पेयजल को लेकर हा-हाकार मचा हुआ है। राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं ने स्वयं को समाजसेवी के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिशें करते हुए इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रूप से लाभ, प्रतिष्ठा भी अर्जित करने की कोशिश की।

दूषित पेयजल का मुद्दा अब इस तरह का हो गया है, इस पर चर्चा करने का अर्थ यह हो जाता है कि इस पर राजनीतिक या अन्य लाभ प्राप्त करने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि जिन भी 'समाजसेवियोंÓ ने इस मुद्दे पर कार्य करने का दावा किया किंतु वे कोई नतीजा नहीं दे पाये। प्रभावशाली प्रचारतंत्रों के माध्यम से वे अपना नाम अवश्य लोगों की जुबां तक पहुंचाने में कामयाब हो गये। जिन परिवारों ने दूषित पेयजल के कारण अपने सदस्यों को खोया, उनके जख्मों पर मरहम लगाने का कार्य नहीं हो पाया। भविष्य में और परिवार इस तरह का दु:ख नहीं झेल पायें, यह भी सुनिश्चित नहीं हो पाया।

आतंकवाद से मौत नहीं, जितनी कैंसर ने जीवन को छीन लिया

राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, पंजाब के मुक्तसर, फाजिल्का, फिरोजपुर, भटिण्डा वो जिले हैं, जहां पर दूषित पेयजल ने कैंसर जैसी बीमारी को विकराल रूप दे दिया। अगर एक दशक को ही देखा जाये तो श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर आधा दर्जन से ज्यादा कैंसर अस्पताल आरंभ हो गये हैं। यह अस्पताल सिर्फ कैंसर और कैंसर मरीजों का इलाज करने का दावा करते हैं। बीकानेर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध मरीजों की सूची भी यह दावा करती है कि मालवा और श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर के कारण बहुत ज्यादा मौतें हुई हैं या इनकी चपेट में आने से हजारों लोगों ने सर्जरी या अन्य दुखदायी चिकित्सा को झेला है। ऐसे मरीजों की संख्या कश्मीर घाटी में आतंकवाद या नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में बंदूक की गोली ने उतने लोगों के जीवन को नहीं निगल, जितना इस महामारी ने प्रभावित किया।

लुधियाना का बूढ़ा नाला नहीं हो पा रहा स्वच्छ?

पंजाब में लुधियाना जिला मुख्यालय पर बूढ़ा नाला को स्वच्छ करने के लिए पंजाब में तत्कालीन कैप्टन सरकार ने केन्द्र सरकार के सहयोग से 650 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट आरंभ किया। इससे पहले 550 करोड़ रुपये भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत प्राप्त किये गये। इस तरह से 12 सौ करोड़ रुपये के कार्य आरंभ करवाये गये। बूढ़ा नाले के चारों तरफ जिस तरह के हालात हैं, उसका मौका-मुआयना स्वयं 'द सांध्यदीपÓ टीम ने किया।  बूढ़ा नाला लुधियाना नगर निगम क्षेत्र में ही 14 किमी एरिया में बहता है और जिस भी क्षेत्र में यह जाता है, उसके आसपास उद्योगिक इकाइयां विकसित हैं और इनका रसायनयुक्त पानी भी इसमें ही जाता है। इस पानी का रंग इतना काला है कि किसी वाहन के इंजन में ऑयल सर्विस के दौरान भी तेल का रंग इतना ही ब्लैक और विषैला होता है।

ताजपुर रोड पर स्थापित हैं फैक्ट्र्रियां?

पंजाब में चण्डीगढ़ मार्ग पर जमालपुर है। जमालपुर से लेकर बुढ़ा नाला शहर के 14 किमी क्षेत्र से होता हुआ सतलुज नदी में जाकर मिल जाता है। समराला चौक के निकट ही ताजपुर मार्ग है। ताजपुर मार्ग पर ऊन को रंगने वााली फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त पानी बुढ़ा नाले में जाकर गिर जाता है। फैक्ट्री संचालकों ने फैक्ट्री के भीतर से लेकर बूढ़े नाले तक भीतरी पाइपलाइन बिछायी हुई है। इसके बाईं तरफ पशुओं की डेयरियां बनी हुई हैं। इन डेयरियां का गोबर व अन्य गंदी सामग्री भी इस नाले में ही गिरा दी जाती है। यह बुढा नाला सुंदर नगर, बाजवा नगर, सलीम टाबरी, चंदननगर, हैबोवाल तक जाता है। इन सभी स्थानों पर सीवरेज और अन्य गंदा पानी इस बूढ़े नाले में डाल दिया जाता है। जिन फैक्ट्रियों में ऊन को रंगने का काम किया जाता है, उसमें किस तरह के कैमिकल का प्रयोग होता है, यह आसानी से समझा जा सकता है। एक विशेष रंग देने के लिए अनेक प्रकार के रंगो वाले कैमिकल को मिक्स किया जाता है। इन फैक्ट्रियों की संख्या एक या दो नहीं बल्कि दर्जनों में हैं। जिधर भी नजर डालो, उस तरफ ही कैमिकल युक्त पानी छोडऩे वाली फैक्ट्रियां नजर आती हैं।

हड्डारोड़ी के अवशेष भी सतलुज नदी में गिराये जाते हैं

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में कुलविंदरसिंह संधू आदि ने याचिका (465/2019) दाखिल की। दिल्ली की मुख्य पीठ ने जस्ट्सि आदर्श कुमार गोयल (अध्यक्ष), जस्ट्सि एसपी वानगड़ी, जस्ट्सि रामकृष्ण और विषय विशेषज्ञ नागिन नंदा ने दोनों पक्षों को सुना। कुलविंदर सिंह आदि ने याचिका में बताया था कि राम मूर्ति, रमेश कुमार, सूरज कुमार, पुरुषोत्तम लाल और मुनीश कुमार लाडोवाल गांव में एक हड्डारोड़ी का संचालन करते हैं। इसमें मृत पशुओं के अवशेषों को अलग-अलग किया जाता है। पशुओं का रक्त, मांस आदि को भी सतलुज नदी में बहा दिया जाता है। इस कारण सतलुज नदी का पानी विषैला, अस्वच्छ, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली अवस्था में पहुंच जाता है। मुख्य पीठ ने इस फैसले में पंजाब सरकार को आदेशित किया कि वह तुरंत लाडोवाल स्थित हड्डारोड़ी को हटाये और मृत पश्ुाओं के शवों का निस्तारण के लिए आधुनिक कारकस प्लांट को स्थापित करे। एनजीटी ने इन आदेशों की पालना के लिए एक अवधि का भी निर्धारण किया, किंतु यह हड्डारोड़ी को अभी तक नहीं हटाया जा सका।

नूरपुर बेट में बनाया गया कारकस प्लांट, लेकिन काम नहीं चालू हुआ

लुधियाना जिला मुख्यालय के निकट ही कारकस प्लांट स्थापित करने के आदेश एनजीटी ने दिये। इन आदेशों के उपरांत नूरपुर बेट में कारकस प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया गया। नूरपुर ग्राम पंचायत ने भी राष्ट्रीय हरित अभिकरण में एक याचिका (218/2021) दायर की और एनजीटी से आग्रह किया कि वह अपने आदेश पर पुनर्विचार करे। एनजीटी ने सुनवाई के उपरांत इस याचिका को खारिज कर दिया। ग्राम पंचायत इसके उपरांत पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में पहुंची और वहां पर भी सुनवाई का आग्रह किया किंतु वहां पर भी कोई राहत नहीं मिली। नगर निगम ने नुरपूर बैट में कारकस प्लांट स्थापित करने के लिए गुरुगांव की एक कंपनी के साथ अनुबंध किया। नगर निगम के अधीक्षण अभियंता राहुल गुनेजा ने बताया कि कारकस प्लांट चालू है किंतु उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।

हाईलेवल कमेटी भी नहीं कर पायी सतलुज को स्वच्छ

वर्ष 2020 में राज्य सरकार ने लुधियाना में सतलुज नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया। इस कमेटी की कमान सतगुरु उदयसिंह को सौंपी गयी। कमेटी में पंजाब के मुख्य सचिव, नगरीय शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव, पीएससीपीएल के अध्यक्ष, लुधियाना नगर निगम के मेयर बलकार सिंह संधू, जिला कलक्टर/जिला उपायुक्त, नगर निगम आयुक्त, जल संसाधन विभाग, उद्योग विभाग के निदेशक, पंजाब एनर्जी डवल्पमेंट एजेंसी सहित कई अन्य विभागों के उच्चाधिकारियों को इसका सदस्य बनाया गया। सतगुरु ने दो सालों के भीतर 10 से भी ज्यादा बैठकों में भाग लिया। अधिकारियों को आवश्यक आदेश भी जारी किये गये। मुख्य सचिव इस कमेटी के सदस्य थे, किंतु इसके उपरांत भी हालात में सुधार नहीं हुआ। अब सतगुरु इस पद से मुक्त होना चाहते हैं। उनके एक समर्थक का कहना था कि सतगुरु ने जो भी आदेश दिये, उनकी पालना में अधिकारियों ने इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं किया। आज भी हालात यह हैं कि डेयरियों, फैक्ट्रियों का रसायन, मल-मूत्र आदि बुढ़ा नाले में गिर गर रहा है। डिस्चार्ज प्वाइंट को बंद नहीं किया जा सका है। इन तथ्यों के कारण सतगुरु अब इस पद को छोडऩा चाहते हैं।

बुढ़ा नाला को दरिया बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया था

पंजाब के प्राचीन इतिहास में बुढा दरिया का जिक्र है। अब यही दरिया (नदी) एक गंदे नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। इस गंदे नाले के आसपास अब घनी आबादी क्षेत्र स्थापित हो चुका है। केन्द्रीय कारागृह कभी लुधियाना का बाहरी क्षेत्र हुआ करता था किंतु अब यह भी भीतरी क्षेत्र में आ चुका है और बूढ़ा नाला इस क्षेत्र से भी गुजरता है। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्रसिंह ने वर्ष 2021 के जनवरी माह में स्मार्ट सिटी के तहत बुढ़ा नाले को प्राचीन रूप में लाने के लिए 650 करोड़ रुपये के अभियान को मंजूरी दी गयी थी। यह राशि केन्द्र सरकार ने जारी की थी। इस राशि के माध्यम से दिसंबर 2022 तक बुढ़ा नाले को प्रदूषण मुक्त करने के साथ-साथ विभिन्न स्थानों पर एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित अथवा उनकी क्षमता में विस्तार करने, नीलो नहर (लुधियाना शहर के बीच से निकलने वाली मुख्य नहर) का पानी बुढ़ा नाले में डालने, नाले के आसपास सौंदर्य और विकास कार्य करवाये जाने थे। नगर निगम ने अभी तक बुढ़ा नाले के ऊपर फेसिंग का कार्य करवाया है। अन्य कार्य जो ज्यादा आवश्यक थे, उनको अभी तक पूर्ण नहीं किया जा सका है। ताजपुर रोड पर नाले के दोनों तरफ जालियां लगा दी गयी हैं ताकि कोई कचरा नहीं फेंक सके किंतु आसपास की डायरियों और फैक्ट्रीज का कचरा अभी भी इस नाले में ही जा रहा है।

क्या कहते हैं संत बलबीर सिंह सिंचेवाल

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जसबीरसिंह की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था, जिसको सतलुज दरिया को प्रदूषण मुक्त करवाने की जिम्मेदारी दी गयी थी। इस कमेटी के सदस्य बलबीरसिंह  सिंचेवाल भी हैं। संत बलबीरसिंह सिंचेवाल ने ही कालासिंघा क्षेत्र में आने वाले प्रदूषित पानी के मुद्दे को दुनिया के समक्ष पहली बार रखा था और इसके उपरांत कालासिंघा क्षेत्र में प्रदूषित पानी का प्रकोप कम या समाप्त हो गया। एनजीटी ने उनको नयी जिम्मेदारी दी है। उस संबंध में उनसे वार्ता की।

बुढ़ा नाला को अभी तक प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सका?

अनेक स्थानों पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का कार्य चल रहा है। कार्य पूर्ण होने पर नतीजा सामने आ जायेगा।

फैक्ट्री और गौशालाओं के मल-मूत्र और रसायन को नहीं रोका जा सका?

इस संबंध में लापरवाही बरतने पर कार्यवाही हो रही है। जिन बिंदुओं को चिन्हित किया गया है, उन पर निर्धारित अवधि में कार्य नहीं होने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है। अभी तक पंजाब सरकार पर 500 करोड़ रुपये के जुर्माने लगाये जा चुके हैं।

हड्डारोड़ी स्थानांतरित नहीं हो पायी?

लाडोवाल में हड्डारोड़ी को लेकर एनजीटी ने पूर्व में ही आदेश जारी किये हैं। उनको निरीक्षण के संबंध में भी रिपोर्ट भेजी जाती है। कारकस प्लांट भी तैयार है।

दो दिन पहले हुई थी उद्योगपतियों से वार्ता : मल्होत्रा

लुधियाना में बुढ़ा नाला को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कार्य जारी है। फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त पानी का प्रवाह रोकने के लिए उद्योगपतियों के साथ दो दिन पहले ही बैठक आयोजित हुई थी। एसटीपी को लेकर भी कार्य जारी है।

-श्यामसुंदर मल्होत्रा, डिप्टी सीनियर मेयर, लुधियाना नगर निगम, पंजाब

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