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12.5.22

अजीत अंजुम जी के नाम एक खुला पत्र

 अजीत अंजुम जी,

हाल ही में आपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के माध्यम से अपने यूट्यूब चैनल के लिए कुछ वैकेंसी निकाली हैं। ज़ाहिर सी बात है आप पत्रकारिता कर रहे हैं तो अकेले आख़िर कितना काम करेंगे काम में हाथ बंटाने वाले कुछ लोग तो चाहिए ही होंगे जो आपके काम को अपना समझकर कर सकें। इसी वजह से टीम को बढ़ाने की आवश्यकता भी होगी और यह ज़रूरी भी है। चूँकि आप देश के वायरल पत्रकारों में से एक हैं तो कल आपकी पोस्ट चंद घंटों में ही पत्रकारिता जगत से जुड़े हज़ारों लोगों की मोबाइल स्क्रीन पर फ़्लैश कर गई जिसके बाद से एक बहस छिड़ी हुई है और उसी बहस में सोशल मीडिया के धुरंधरों ने आपका भूतकाल तक खोद निकाला है। यहाँ तक कि लोगों ने आप पर सामंतवादी सोच का होने से लेकर जूनियर्स से जबरन समय से ज़्यादा काम कराने समेत कई तरह के आरोप मढ़ दिए हैं। ख़ैर, जो बहस छिड़ी है वह लाज़मी भी है। क्यों की आपने पोस्ट में मोटा-माटी एक दर्जन से अधिक खूबियाँ गिना दी हैं जो आप सामने वाले में ढूँढ रहे हैं। फ़िलहाल देश यह नहीं जानता की उनमें से आपके अंदर कितनी खूबियाँ हैं। 

इस सब से इतर जो सबसे ज़रूरी बातें हैं वो यह की आपने अपनी तरफ़ से दी  जाने वाली किसी भी सुविधा का ज़िक्र नहीं किया। फिर चाहे वह रोज़ाना की कार्यावधि हो, वेतन हो या फिर रहने-खाने की सुविधा। इसके अलावा यहाँ मेडिकल एक्स्पेन्स और वीक ऑफ़ आदि छुट्टियों की बात करना तो बेकार ही है और वैकेशन वग़ैरह के बारे में तो सोचना ही गुनाह होगा। अब आपने जो मांगें रखी हैं उसमें कहा है कि “काम के वक्त घंटे जोड़ना जिनकी फ़ितरत न हो” भाई जो जीवित प्राणी नौकरी करेगा वो काम के घंटे तो जोड़ेगा ही और क्यों न जोड़े ? क्या उसका निजी जीवन नहीं होगा, क्या उसका परिवार-दोस्त और रिश्ते नहीं होंगे ? आज जब वैश्विक स्तर पर काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ी हुई है तो आपको ऐसा साथी चाहिए जो बंधुआ मज़दूरी के लिए तैयार हो। 

एक तो भारत वैसे ही हैप्पीनेस इंडेक्स में पिछड़ा पड़ा है ऐसे में आप जैसे लोग इसे और भी पीछे खींचने में अपना योगदान दे रहे हैं। भले ही आप और आपके जैसे कई अन्य लोग भारतीय टीवी चैनल्स को पानी पीकर कोसते हों लेकिन आपकी पोस्ट देखने के बाद आसानी से समझा जा सकता है की आप और उन टीवी चैनल्स में कोई अंतर नहीं है जो इंसानों को मशीन समझकर उनसे गधा मज़दूरी कराते हैं। साथ ही आपने एक और चीज़ का ज़िक्र किया था “देर तक सोने की आदत न हो” अब एक तरफ़ आप कहते हैं की काम के घंटे न जोड़े और दूसरी तरफ़ कहते हैं की देर तक सोए भी न, अरे मालिक, आपके कहने के हिसाब से जब अकेला आदमी दर्जन भर से अधिक काम करेगा तो या तो वो रात को जल्दी सोएगा या फिर सुबह देर तक। चूँकि आपने काम के घंटों को जोड़ने पर प्रतिबंध लगा रखा है तो ज़ाहिर सी बात है की वह जल्दी तो सो नहीं पाएगा और जब देर से सोएगा तो सुबह देर तक सोना तो उसके शरीर की ज़रूरत ही बन जाएगी। 

आज, नौकरी पेशा लोगों के जीवन में सुधार जहां एक ओर वैश्विक मुद्दा बना हुआ है वहाँ आपकी यह माँग क़तई जायज़ नहीं लगती। यहाँ एक कला सीखने में लोगों का आधा जीवन निकल जाता है और आप हैं की दर्जन भर कलाओं से भरा इंसान मज़दूरी के लिए खोज रहे हैं। जिसे लिखना, पढ़ना, बोलना, कैमरा चलाना, एडिटिंग करना सब आता हो। मतलब आप राइटर, एंकर, रिपोर्टर, वीडियोग्राफ़र/फ़ोटोग्राफ़र, एडिटर ( इसमें नैचरल स्किल्स- ज़िद्दी, जुनूनी जुझारू, उत्साही, युवा, देशाटन करने वाला, जल्दी उठने वाला, काम के घंटे न जोड़ने वाला, कुछ नया करने वाला नहीं जोड़ रहा हूँ ) इन सबकी खूबी एक इंसान में चाह रहे हैं। ख़ैर भारत एक बड़ा राज्य है और  आजकल बेरोज़गारी भी बढ़ी हुई है इसलिए आपकी इन नाजायज़ माँगों के बावजूद अपना रक्तदान करने के लिए सैकड़ों लोग सीवी मेल कर ही देंगे। बाक़ी आपकी माँग से तो यही लगता है की “आप खुद को गन्ना पेरने वाली मशीन और काम करने वालों को गन्ना मानकर चल रहे हैं।” 

धन्यवाद, 

सादर

संतोष तिवारी 

(देश के प्रतिष्ठित और अच्छे माहौल वाले मीडिया संस्थान में कार्यरत एक युवा पत्रकार)

santoshtiwari788@gmail.com

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