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15.5.22

सागर के मरीज इलाज के लिए दूसरे शहर जाने को है मजबूर!

सतीश भारतीय-

मध्यप्रदेश का सागर शहर जिसे 'भारत का हदयस्थल' भी कहा जाता है। सागर के अंतर्गत करीब 2244 गांव आते है। जिनकी अनुमानित जनसंख्या 30 लाख है। इस लाखों की तादाद वाले शहर में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज है। जिसे बुन्देलखंड मेडिकल कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है। यहां रोगों के उपचार हेतु शहर से लेकर गांव तक के लोग आते है। जिससे गरीब आवाम मेडिकल कॉलेज सागर को जिले की रीढ़ की हड्डी मानती है। लेकिन इतनी बड़ी मेडिकल कॉलेज में गंभीर बीमारियों की जांच और उपचार के लिए कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है। जिससे सागर जिले के हजारों लोग रोेजाना नागपुर (दूरी करीब 400 किमीं), भोपाल (दूरी करीब 200 किमीं) और जबलपुर (दूरी करीब 180 किमीं) जैसे शहरों में इलाज कराने के लिए जाते है। ऐसे में मरीजों का इन शहरों में आने-जाने और इलाज कराने में तकरीबन 3 दिन तक का समय लग जाता है। 



इस स्थिति में जब हमने यह जानने के लिए सागर बुन्देलखंड मेडिकल कॉलेज का दौरा किया कि, वहाँ किन-किन स्वास्थ्य सुविधाओं की कमीं है? तब मेडिकल कॉलेज में हमारी कुछ मरीजों से बातचीत हुई। जिनसे हमने सवाल किया कि क्या अस्पताल में आप लोगों का इलाज ठीक से हो पा रहा है? तब वहां मौजूद सुनीता बताती है कि मुझे आंखों से कम दिखाई देता है। जिनके इलाज के लिए, मैं अस्पताल आयी हूं। लेकिन यहां न आंखों की जांच के लिए मशीनें है। और न इलाज की व्यवस्था हैै। इसलिए मैं आंखों के इलाज के लिए नागपुर जाने को विवश हूं। 

आगे रवि से पूछे जाने पर पता चलता है कि उनके पेट में पथरी जैसा रोग पनप रहा है। जिसके इलाज के लिए अस्पताल की 2 हफ्ते से दवा खा रहे है। लेकिन आराम लगने के बजाए, पेट का दर्द बढ़ता जा रहा है। जब हमने रवि से यह पूछा कि आपको पथरी के रोग में आराम क्यों नहीं लग रहा है, आपको क्या लगता है? तब रवि कहते है कि अस्पताल में अलग-अलग रोगों के मरीजों के लिए एक समान दवाई वितरित की जा रही है। जिसे खाने से किसी की तबियत हरी हो जाती है, तो

कोई मेरे जैसी दर्दनाक दशा में पहुंच जाता है। जब हम डॉक्टर से दूसरी दवाई मांगते है। तब वह कहते है कि अस्पताल में केवल यही दवा है।

आगे रवि बताते है कि पेट की पथरी के उपचार हेतु अब मेरी नजरें भोपाल की तरफ हैं।

 अस्पताल में आगे की ओर जब हमने रुख़ किया। तब वार्ड 3 के पास हमें गोविंद मिले। जो शरीर में अकड़न की बीमारी से जूझ रहे हैं। जब इनसे हमने प्रश्न किया कि आप कब से अस्पताल में हैं और आपके स्वास्थ्य में कितना सुधार आया है? तब गोविंद बताते हैं कि हम 10 दिन से अस्पताल में हैं। लेकिन यहां की दवा-दारू से जरा सी भी राहत नहीं मिली। अब ऐसे मेें डॉक्टर साहब ने इलाज के लिए जबलपुर जाने की सलाह दी है।

तब हमने पूछा जबलपुर कब जायेगें? तब गोविंद कहते है कि अभी तो पैसे की कड़की चल रही है। घर वाले जब हफ़्ता भर 200 रुपए दिन की दिहाड़ी करेगें। तब इलाज के लिए जबलपुर आना-जाना हो पायेगा।  

आगे हमने गोविंद से पूछा कि आपको अस्पताल की व्यवस्थाएं कैसी लगी? तब वह कहते है कि अस्पताल बाहर से तो चमकता-दमकता है। लेकिन अंदर पीने तक के पानी की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मरीज और उनके परिजन पानी बाहर से लेकर आते है। आगे इसी विषय में एक अन्य सुगर के मरीज राजू कहते है कि अस्पताल मेें टॉयलेट की व्यवस्थाएं गड़बड़ है। टॉयलेट में यदि नल की टोटी है, तो पानी नहीं है। और यदि पानी है, तो नल की टोटी टूटी हुई है। वहीं गंदगी इतनी है कि टॉयलेट के भीतर पैर रखना दुभर हो जाता है। 

फिर हम अस्पताल दवा वितरण केन्द्र गए। जहां मरीजों की इतनी भीड़ थी कि कुछ महिला मरीज एक कतार के बीच बैठीं नजर आयीं। जब इनसे हमने पूछा कि आप इस कतार के बीच क्यों बैठी है? तब इन महिला मरीजों में से  रंजिता बताती है कि कतार में खड़े-खड़े हमारे पैर दर्द करने लगे है। इसलिए हम बैठ गए है। आगे वहीं मौजूद सविता कहती है कि यह हर बार की स्थिति है। जब अस्पताल में इलाज के लिए आते है। तब घंटो लाइन में लगना पड़ता है।

इसके बाद जब हमने अस्पताल के अंदर से बाहर की ओर आए। तब हमारी मुलाक़ात बुन्देलखण्ड मेडिकल कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों से हुई। जिन्होनें नाम न बताने की शर्त पर हमारे कुछ सवालों का जवाब दिया। इन विद्यार्थियों से हमने सवाल किया कि अस्पताल में किन बीमारियों के इलाज की व्यवस्था नहीं है और यहां से रोज कितने गंभीर मरीज नागपुर जैसे अन्य शहरों के लिए रेफर किए जाते है? तब इन विद्यार्थियों ने बताया कि अस्पताल में ब्लड बैंक, सीटी स्केन, एमआरआई, न्यूरोलॉजिस्ट, हदय और कैंसर जैसे अन्य रोगों के इलाज की व्यवस्था नहीं है। और बहुत रोगों की जांच के लिए मशीनें नहीं हैं।

इसके अलावा मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाओं के बारें में विद्यार्थियों ने बताया कि कॉलेज में स्टॉफ की कमीं है, पैरामेडिकल नहीं है, आपालकालीन स्थिति के लिए कोई व्यवस्था नहीं, ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) लगभग सुबह 8ः30 से दोपहर 1ः30 तक ही रहता है। बाकी समय ओपीडी की कोई व्यवस्था नहीं है। आगे विद्यार्थी बताते हैं कि अस्पताल से इन सभी व्यवस्थाओं की कमीं के चलते रोजाना 10 से ज्यादा गंभीर मरीज नागपुर, भोपाल और जबलपुर जैसे शहरों के लिए रेफर किए जाते हैं। जिनमें से कुछ तो रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।

आगे इसके उपरांत हमने सागर मेडिकल कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉ उमेश पटेल से मेडिकल कॉलेज की स्थिति और व्यवस्थाओं को लेकर बातचीत की। उनसे हमने सवाल किया कि इतने बडे़ मेडिकल कॉलेज मेें स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमीं क्यों हैं? तब डॉ उमेश कहते है कि यहां स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमीं का कारण सुपर स्पेशलिटी न होना है। जिसके लिए बहुत दिन से मेडिकल कॉलेज का स्टॉफ प्रयास में लगा हुआ है। फिर जब हमने यह पूछा कि स्टॉफ ने अस्पताल की दशा सुधारने के लिए क्या किया है? तब मीडिया प्रभारी कहते है कि मेडिकल कॉलेज के स्टॉफ ने प्रशासन को सुपर स्पेशलिटी की सुुविधा के लिए प्रस्ताव भेजा है। और सागर के जनप्रतिनिधियों द्वारा भी अस्पताल में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग को उठाया जा रहा है। ऐसे में अस्पताल में सुपर स्पेशलिटी की सुविधा जल्द से जल्द होने की संभावना है।

फिर इसके आगे हम बुन्देलखंड मेडिकल कॉलेज से निकलकर सागर डॉ हरीसिंह गौर मुख्य बस स्टेन्ड की तरफ गए। वहां पर हमने नागपुर, भोपाल और जबलपुर बसों के कुछ बस कंडक्टर्स से मरीजों की आवाजाही को लेकर बातचीत की। तब इन बस कंडक्टर्स में से राहुल बताते है कि सागर से रोजाना करीब नागरपुर 8 बसें, भोपाल 15 बसें और जबलपुर 10 बसें जाती हैं। जिनमेें दिन में करीब 500 मरीज इलाज के लिए इन शहरों को जाते हैं।

आगे नजीम बताते हैं कि 200 से ज्यादा मरीज नागपुर जाते है। और 150 के करीब भोपाल जाते है। इतने ही जबलपुर जाते है।

आगे वहीं मौजूद राज बोलते है कि इन्हीं शहरों में इलाज के लिए बसों की अपेक्षा ट्रेन से हजारों की तादाद में मरीज जाते है। 

इसके पश्चात हमने बस स्टेन्ड पर कुछ मरीजों से बात की। तब पता चला कि इनमें अधिकतर मरीज हदय और कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित है। जिसके इलाज के लिए वह नागपुर जैसे अन्य शहरों के लिए जा रहे थे। जब इनसे हमने सवाल किया आप लोगों की आवाजाही और इलाज पर कितना खर्च हो जाता है? तब दिल के दौरे से पीड़ित नीलेश बोलते है कि हमारा भोपाल जैसे अन्य शहरों में बस से आने-जाने का किराया 1000 रुपए से ज्यादा लगता है। 

आगे इलाज़ के खर्च के बारे में कैंसर से ग्रस्त संजय कहते हैं कि इलाज के लिए एक बार में 20-30 हजार रुपए लग जाता हैं। ऐसे में यदि हम 3-4 बार नागपुर जैसे शहर के प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाते हैं, तब लाख रुपए लगता है। 

फिर हमने सवाल किया कि इतना पैसा क्या आप खुद की जेब से लगाते हैं या आपको आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिलता है? तब संजय कहते हैं कि हम 30 हजार रुपए कर्ज लेकर अपना इलाज करवा रहे है। हमारा आयुष्मान कार्ड भी बना है। जिसे प्राइवेट अस्पताल में दिखा-दिखाकर थक गए हैं। पर उसका लाभ आज तक नहीं मिला।

विचारणीय है कि भारत सरकार हेल्थ एक्सपेंडिचर पर जीडीपी का 1 फ़ीसदी खर्च करती है। जिससे विश्व में भारत को स्वास्थ्य के मामले में कंजूस देश कहा जाता है। लेकिन यहां के नेता और प्रसिध्द व्यक्ति विदेशों में इलाज के नाम पर खूब पैसा उड़ाते है। और गरीब आवाम देश की चरमराती अस्पतालों में इलाज के लिए पैसा लगाते-लगाते और गरीब होती है। भारत में स्वास्थ्य खर्च पर विश्व बैंक का आंकड़ा कहता है कि भारत सरकार स्वास्थ्य पर कुल 27 फ़ीसदी खर्च करती है, बाकी 73 फ़ीसदी स्वास्थ्य का खर्च जनता खुद उठाती है। ऐसे में यह मालूम होता है कि सरकार ने 27 फ़ीसदी स्वास्थ्य खर्च के नाम पर केवल सरकारी अस्पताल खोल रखें है। लेकिन उनमें ढंग की स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं है। जिससे देश के सागर जैसे विभिन्न शहरों के लोग स्वयं के खर्च पर बीमारियों के इलाज के लिए बड़े-बड़े शहरों के निजी अस्पतालों पर आश्रित है।

(सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार हैं) 

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