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14.6.08

रोटी की चाह

है रोटी की चाह जिन्हें, क्या आएगी उनको kavitaa
kyaa कभी किसी भूखे ने, लिखी कोई kavitaa
he कवि, क्या है उद्देश्य tumhaara
kya सौंदरय वणॆ‌न तक सीमित है तुम्हारी kalama
kyaa नहीं दिखती भूख behali ]
तुमको दिखती नहीं गरीबी की jalana
he रचनाकार, कभी भी शायद रहे होंगे bhookhe
तो उपवास मनाते हो,अरे उनका तो सोचो जो हर दिन उपवास रहते हैंये
वे हैं जिन पर कोई कुछ लिखता नहींये
वे हैं जिनको जंचती कोई कविता नहींये
नंगे भूखे हैं, नहीं विद्या का ग्यान इन्हेंतुम्हारी
लेखनी की गहराई का न है भान इन्हेंकरो
कुछ इनके लिए भी करो, कविता से नहीं करमों se
tumhari कविता में है वो शीतलता नहींशांत
करे जो इनके पेट की jalan
garibon की नहीं, गरीबी को मिटाना hai
aaj इंसान अपने सोच व मन से गरीब hai
door करना है अपनी सोच को hamen
bhookh नहीं पर अपनी रोटी को बांट सकते हैं हम.....महाबीर सेठ

1 comment:

Anonymous said...

महाबीर जी,

बात तो आपने सौ टक्के सही की है, मगर आप इस से तो इनकार नही करेंगे कि आजकल कविता भी रोटी के लिये ही होती है। चलये बहुत दिन बाद ही सही, कविवरों को कविता से दो रोटी मिल जाये ;-)

जय जय भडास