भाई वाह पंडितजी,आपकी हाजिरजवाबी के कायल हो गए.बहुत खूब.इसी को कहते हैं सौ सुनार की एक
लुहार की.भाई जगदीश त्रिपाठी का हर्तिरिया देखकर एक शेर याद आगया।
मौत भी इस लिए गवारा है,क्योंकि मौत आता नही आती है।
आपके सुराप्रेम को देखकर तबीयत बाग़-बाग़ हो गई.आपकी शान मे एक शेर अर्ज़ है।
दारु की बात क्या कहू ,उसकी तो याद में,
अपना भी ध्यान मुझको कभी है कभी नही।
इसी तरह भड़ास निकलते रहिये और हमें भडासी टोनिक पिलाते रहिये।
जय भड़ास
Maqbool
30.6.08
उल्लू और Gadha
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