हरे प्रकाश भाई
ये बात समझ में नहीं आई
कि,ये गुलाम अली का बाजा है
या कोई खूनी दरवाजा है
जिसे मालिक की बजाय
गुलाम ने नवाजा है
हरे भाई जब भी मस्त मूड में आता है
बाजा यही गाता है
चाहे हो सुबह,चाहे हो शाम
बाजा हूं मैं मुझे बजने से काम
चाहे हो राम या चाहे गुलाम
आपको मेरी सलाह है भली
भूल जाओ बाजा भूल जाओ अली
मुबारक हो इनको ही अंधी गली
सहायक तुम्हारे हैं बजरंग बली।
पं. सुरेश नीरव
28.6.08
हरे प्रकाश भाई
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