महाबीर सेठ जी की रचना पठ़ी तो मुझे अनायास ही इस रचना की याद आ गई
हालाकि मेरी लिखी नही है मगर है बहुत प्रेरणा दायक
आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हू आशा है कि पसन्द आयेगी
तुम चाहो तो
तुम चाहो तो मुझे अपने सीने में छुपा सकते हो..........
तुम चाहो तो मुझे अपने दिल की हर बात बता सकते हो...........
तुम चाहो तो मुझे सहरा से निकाल सकते हो .............
तुम चाहो तो मुझे सायबान दे सकते हो..................
तुम चाहो तो मुझे तपते धूप से बचा सकते हो.............
तुम चाहो तो मुझे अपने वजूद में छुपा सकते हो...............
तुम चाहो तो अंधेरी रात की चादर पढ़ कर .............
तुम चाहो तो इक दिया रौशनी का जला सकते हो .............
तुम्हे मालूम है के यह ज़िन्दगी कुछ दिनों की है.............
तुम चाहो तो इसे हंस कर गुजार सकते हो.................
तुम चाहो तो सब कुछ कर सकते हो ............
बस...........................
बात तुम्हारे चाहने की है
17.6.08
तुम चाहो तो.........
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2 comments:
केसरी जी मैं कोई कवि नहीं हूं, लेकिन कभी-कभी दिल से आवाज निकलती है। उसे में भड़ास और अपने http://sethmahabir.blogspot.com पर उकेर देता हूं । आपने भी अपनी सोच को अच्छे शब्दों में पिरोया है...
केसरी भाई,
अच्छा प्रयास है। जारी रखिये।
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