हमने लेख भी ऐसे लिखे
जिसने पढ़े वही हिले।
कलम, कागज, सब मिले
पर ना आप जैसी लिखे।
कुछ हमको भी लिखना आ गया
जब कागज पर पेन चले।
शब्द दर शब्द तुकबंदी मिलाई
हमको लगा कि गज़ल लिखे।
भ्रम में खुद को शायर समझे
हर शायर से उलझ गये।
देख कर आपकी गज़ल हम,
अजीत खुद की औकात समझ गये।
09235133411
11.6.08
नीरव गुरूजी को समर्पित
Labels: औकात
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment