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6.6.09

कैसे बची खण्डूरी की कुर्सी

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16 मई को चुनाव परिणाम आये तो भाजपा में सबसे पहले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री खण्डूड़ी पर संकट के बादल गहरा गये. उत्तराखण्ड में कांग्रेस ने पांचों सीट पर भाजपा को पराजित कर दिया था. आनन-फानन में मांग उठने लगी कि खण्डूरी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए. भाजपा आलाकमान ने भी इस दिशा में तुरंत कदम उठाया और दो पर्यवेक्षक यहां भेज दिया. पर्यवेक्षक आये थे खण्डूरी को हटाने लेकिन वे खण्डूरी को अभयदान देकर चले गये. भाजपा को प्रदेश में रसातल में पहुंचानेवाले खण्डूरी ने आखिर ऐसा क्या कमाल किया कि उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आयी?

अपनी कुर्सी बचाने के लिए खण्डूरी ने पानी पैसा की तरह बहाया. सबसे पहले उन्होंने उन पर्यवेक्षकों को मैनेज किया जो दिल्ली से उनके कामकाज का जायजा लेने यहां आये थे. उन्होंने इसमें राज्य के हैलीकाप्टर विमान के साथ ही होटलों पर लाखों रूपये खर्च किये. प्रदेश सरकार का एक कबीना मंत्री प्रदेश सरकार के हैलीकाप्टर से राजधानी के जेटीसी हैलीपैड से जौलीग्रांट हवाई अड्डे तक जाता है, जहां से वह सरकारी वायुयान से दिल्ली की उडान भरता है, वहां से पर्यवेक्षकों को लेकर फिर जौलीग्रांट वापस आता है। जहां सें ये लोग फिर हैलीकाप्टर से देहरादून में उतरते हैं। बैठक के बाद रात्रि विश्राम राजधानी के एक चार सितारा होटल में होता है। जहां से दूसरे दिन सुबह ये लोग फिर हैलीकाप्टर से जौलीग्रांट जाते हैं वहां से फिर सरकारी वायुयान से प्रदेश सरकार का एक अन्य कबीना मंत्री इन्हे दिल्ली छोडने जाता है। इसके बाद यह जहाज फिर वापस जौलीग्रांट पहुंचता है, जहां से तीन चार विधायकों के साथ एक दो कबीना मंत्री फिर इसी जहाज से दिल्ली केन्द्रीय नेताओं से वार्ता के लिए जाता है और दूसरे दिन फिर यही जहाज वापस इन्हे लेकर जौलीग्रंाट लौटता है। इतना ही नहीं सरकार को राहत मिलने के बाद मुखिया सपरिवार सरकारी हैलीकाप्टर से उखीमठ कालीमठ पूजा अर्चना के लिए जाते हैं और फिर इसी से वापस लौट आते हैं।

इतनी आवभगत के बाद दिल्ली से आये दो पर्यवेक्षक थावर चंद गहलोत और मुख्तार अब्बास नकवी की कार्यप्रणाली को लेकर भी प्रदेशभर में चर्चा है कि जब 23 मई की सायं दोनों पर्यवेक्षक कार से दिल्ली रवाना हो गये थे तो इन्हे राजधानी से 22 किलोमीटर दूर मोहण्ड से आखिर वापस आने की क्या जरूरत आ पड़ी और ये लोग किसके फोन के बाद देहरादून वापस आये और देर रात्रि तक मुख्यमंत्री आवास में क्या करते रहे। भाजपा में जिस तरह से पैसा लेकर पदों की बंदरबाट होती है उसका एक उदाहरण उत्तराखण्ड में भी दिखा. देहरादून की राजनीतिक गलियों में यह चर्चा आम है कि पर्यवेक्षकों ने खण्डूरी की कुर्सी को सलामत रखने के लिए करोड़ों का लेन-देन किया है. चर्चा यह भी है कि खण्डूरी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए जितना पैसा तुरंत दिया है उससे कई गुना अधिक पैसा देने का वादा भी किया है.

इसी तरह चुनावों में हार के लिए केवल मुख्यमंत्री को जिम्मेदार न मानकर सामूहिक जिम्मेदारी के मामले पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह सब मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द घूमने वाली चौकड़ी का ही कमाल है जो हार को आत्मसात करने को तैयार नहीं है। जबकि जानकारों का कहना है कि सामूहिक जिम्मेदारी के मामले पर अब मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल के सदस्यों सहित कई विधायक तक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। इनका कहना है कि लोकसभा चुनाव को मुख्यमंत्री स्वयं लड़ रहे थे और उन्होने कहीं भी किसी को कोई जिम्मेदरी नहीं दी,इन्होने चुनाव के दौरान के तमाम समाचारों तथा विज्ञापनों का उदाहरण देते हुए बताया कि इससे तो साफ ही था कि यह चुनाव मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा तथा उन्ही के नेतृत्व में लड़ा गया ऐसे में सामुहिक जिम्मेदारी की बात कहां से आयी। इनका ही कहना है कि जब मुख्यमंत्री ने प्रदेश के दौरे में कहीं भी उस क्षेत्र के मंत्री अथवा विधायक तक को उस क्षेत्र की जनता के सामने रख उसके कार्यों पर वोट नहीं मांगे तो सामुहिक जिम्मेदारी की बात करना ही बेईमानी है।

जहां तक 24 विधायकों के समर्थन का बात भाजपा द्वारा की जा रही है इसे लेकर भाजपा केन्द्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य मुख्यमंत्री से खफा बताये गये हैं कि जब भाजपा के पास राज्य में 34 विधायक है तो ऐसे में मुख्यमंत्री खेमे की ओर से मात्र 24 विधायकों के समर्थन देने की बात कहां से आयी। खैर एक जानकारी के अनुसार इस मामले को लेकर सरकार ने एनआईसी के एक अधिकारी को जांच का जिम्मा सौंपा है कि वह यह पता लगायेगा कि आखिर वह मेल कहां से आया जिसमें मुख्यमंत्री को 24 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। वहीं जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत एक अधिकारी के भाई के नौएडा स्थित पीआर एजेन्सी के कार्यालय से यह ई मेल जारी हुआ था तथा इसे केवल दिल्ली के ही समाचार पत्रों में प्रकाशित करने को कहा गया था लेकिन वह गलती से यहां के समाचार पत्रों तक में प्रकाशित हो गया जिस पर यहां हंगामा खड़ा हो गया है। वहीं इस पूरे प्रकरण पर भाजपा भी गंभीर हुई है। बताया जाता है कि भाजपा आलाकमान इस पूरे मसले को गंभीरता से ले रहा है। वहीं अब एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर प्रदेश में उहापोह की स्थिति है क्योंकि केन्द्र ने आज इस मामले पर चर्चा का आश्वासन दिया है। इस दिशा में देखें तो प्रदेश के कई विधायकों तथा मंत्रियों के दिल्ली जाने की भी चर्चा है।

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