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11.12.09

मेरी प्रेम स्वीकारें!

विज्ञान-चर्चा पर रवि प्रकाश ने लिखा है कि प्रेम अंधा होता है, यह विज्ञान ने भी साबित कर दिया है. इस पोस्ट पर दसियों मित्रों ने सहम्ति जताई. शायद इनमें से किसी ने प्रेम नहीं किया, सिर्फ़ सेक्स किया है. प्रेम जीवन का भाव है, सेक्स शरीर की क्रिया. प्रेम जीवन-मूल्य है, परिपूर्ण मूल्य. प्रेम का शारीरिक क्रियाओं से कोई सम्बन्ध ही नहीं.

भौतिक-रासायनिक स्तर पर होता है सेक्स, इसलिये विज्ञान की पकङ में आता है. विज्ञान बता देगा कि शरीर की अन्तस्रावी ग्रंथ्यों से कौन सा रसायन बनने से सेक्स प्रबल होता है. प्रेम विज्ञान की पकङ में नहीं आ सकता.
रविजी को मैंने यह ट्टिपणी भेजी है, कैसी लगी, जरा प्रेमसे बतायें.
अंधा नहीं होता प्रेम. प्रेम एक विशेष रस का स्राव करता है, शरीर की अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ ऐसा स्राव करती हैं कि प्रेमी सिर्फ़ अच्छा- अच्छा देख पाता है. नकारात्मक दिखना बन्द हो जाता है. वास्तवमें यही सही देखना है. अस्तित्वमें नकारात्मक कुछ है ही नहीं. अस्तित्व में सब कुछ सकारात्मक है, अच्छा है. जिनको नकारात्मक दिखता है, वे अंधे हैं. अब सओ अंधे मिलकर देख सकने वालेको अंधा समझ लें तो कौन क्या कहे. देखने वाला कितना ही समझाये कि सूरज है, धूप और रोशनी देता है, इस रोशनी में फ़ूल-पत्ते-पेङ-पहाङ-झरणें आदि दिखाई देते हैं, तो क्या अंधे मान जायेंगें?
प्रेम सही का दर्शन है, प्रेम ही सच्ची दृष्टि.
प्रेम को अंधा मत समझ, प्रेम से चलती सृष्टि.
प्रेम से चलती स्रुष्टि, प्रभु द्वार जान लो.
प्रेम बिना सब सून, प्रेम रवि-प्रकाश मान लो.
कह साधक विज्ञान प्रेम को कैसे जाने?
प्रेम सही का दर्शन है, अंधे ना मानें.
वैसे विज्ञान-चर्चा में आपके लेख का होना चर्चा को सार्थकता देता है, धन्यवाद. मेरी प्रेम स्वीकारें- साधक उम्मेद. ०९९०३०९४५०८

1 comment:

Creative Manch said...

प्रेम सही का दर्शन है, प्रेम ही सच्ची दृष्टि.
प्रेम को अंधा मत समझ, प्रेम से चलती सृष्टि.

अत्यंत सुन्दर व उत्कृष्ट लेखन
पठनीय पोस्ट
आभार व शुभकामनायें

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