राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 21 दिसम्बर। उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने निंशक सरकार को सदन से सड़क़ तक घेरने का प्रयास किया। पिछले तीन वर्षों के भाजपा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा घेराव का प्रदेश कांग्रेस का यह पहला कार्यंक्रम रहा। कांग्रेस के विधानसभा घेराव कार्यंक्रम को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाऐं की जा रही हैं। पिछले तीन वर्षों से शांत बैठी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अचानक बौखला गई है। शीतकालीन सत्र के आंरभ होते ही आनन-फानन में कांग्रेसियों ने राज्य सरकार को घेरने की रणनीति बनाई। जिसे 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस का यह घेराव कार्यक्रम ऐसे समय में आयोजित किया गया है,जब उत्तराखंड ही नहीं कई प्रदेशों की राज्य सरकारें केंद्र सरकार पर सौतेले पन का आरोप लगा रही हैं। यहां तक कि पंजाब सरकार तो कांग्रेस की केंद्र सरकार के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा चुकी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे समय में कांग्रेस का यह विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम केंद्र सरकार के खिलाफ पनप रहे असंतोष को दबाने की साजिश है। मौजूदा समय में राज्य के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक केेंद्र सरकार द्वारा उपेक्षित किए जाने के बावजूद सराहनीय कार्य कर रहे हैं, जो विरोधियों के गले नहीं उतर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड को अलग राज्य बने भले ही नौ वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के साथ लंबित पड़ा परिसंपतियों के बंटवारे का मसला मौजूदा मुख्यमंत्री निशंक की पहल के कारण ही पूरा हो पाया है। उत्तर प्रदेश के साथ मिलकर देहरादून -दिल्ली के बीच फोर लेन हाइवे की स्वीकृति भी निशंक के प्रयासों से ही पूरी हो सकी है। केंद्र सरकार द्वारा राज्य के आर्थिक पैकेज में कटौती किए जाने के बाद उपजे वित्तीय संकट को चुनौती के रूप में स्वीकार कर मुख्यमंत्री कुशलता के साथ राज्य का संचालन कर रहे हैं। राजनैतिक जानकारों की मानें तो मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस का यह प्रदर्शन ठेठ राजनैतिक है। उनका मानना है कि निशंक की कार्यप्रणाली अब तक के मुख्यमंत्रियों से बिलकुल हट कर है। राज्य के विकास के लिए वह कांग्रेस के सांसदों को भी साथ लेकर भविष्य के लिए स्वस्थ्य राजनैतिक पंरपरा डालने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस के सांसदों, विधायकों और नेता प्रतिपक्ष से राज्य के विकास में सुझाव भी लेेते हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के द्वारा सरकार के खिलाफ विधानसभा घेराव और किसी भी प्रकार की टीका-टिप्पणी का कोई औचित्य नहीं रह जाता। कांग्रेस से जुड़े सूत्र दबी जुबां स्वीकार करते हैं कि यह प्रर्दशन राज्य सरकार के खिलाफ पार्टी आलाकमान के दबाव के कारण किया जा रहा है। चर्चा यहां तक भी है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से आलाकमान ने अब तक भाजपा सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद न करने के मसले पर जवाब भी मांगा है। इसी कारण कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारणी को प्रर्दशन जैसा कदम मजबूरन उठाना पड़ा है।
बाक्स:- कांग्रेस से जुड़े एक प्रदेश स्तरीय नेता नाम न छापने की सूरत में यह स्वीकार करते हैं कि रमेश पोखरियाल निशंक की बजाय पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंण्डूड़ी की सरकार उनके लिए ज्यादा बेहतर थी। कांग्रेस ने बीसी खंण्डूड़ी के मुख्यमंत्री रहते कभी विरोध और प्रर्दशन कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया, क्योंकि इस दौरान सरकार के खिलाफ असंतोष लोगों में भीतर ही भीतर पनपने लगा था । वह असंतोष लोकसभा चुनाव में मतदाता ने जाहिर भी किया। कांग्रेस के यह नेता कहते हैं कि निशंक के मुख्यमंत्री बनने के बाद परिस्थितियां बदली हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिला है। वर्षो से लटके जनहित के कार्यों की शुरूआत होने से आम जनता का सरकार की ओर सकारात्मक रूख हुआ है। ऐसे में 2012 में सुनिश्चित समझी जा रही कांग्रेस की जीत को चुनौती मिलनी शुरू हुई है। इसी कारण पार्टी को सडक़ों पर उतरना पड़ रहा है।
21.12.09
कांग्रेस के विधानसभा कूच पर उठे सवाल
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