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29.12.09

कतरने...

कतरने ...(खाली वक्त की नसीहते)
(एक)
उसने खत को जब- जब
जोडकर पढना चाहा
खुद को खुद से घटाना पडा.. ।
(दो)
अदबी जमात का सलीका भी खुब
उसी बात पे दाद मिले
जिस पर कभी एतराज था..।
(तीन)
बुलन्दी की नुमाईश मे मसरुफ रहा वो शख्स
जिसकी उडान मे हौसला भी अपना न था..।
(चार)
अपनी मरजी के सफर के लिए,ये एतिहात जरुरी है
मुकाम खुद से न छिपाया जाए
उदास रहबर अक्सर हौसला तोड देते है
इस बार एक कदम तन्हा ही उठाया जाए।
(पांच)
शिकारी जिसे समझ के परिन्दे ठहर गये थे
वो कमान का सौदागर निकला..।
(छह)
उसकी वादाखिलाफी पे ऐतराज नही
मलाल बस इस बात का रहा
वि खुद से मुकर गया..।
(सात)
लम्हा- लम्हा बिखरा हू, खुद का साथ निभाने मे
एक उम्र गुजर गयी ऐब को हुनर बनाने मे
वादा करके मुकरना कोई आसान नही
मगर वो हौसला कहा से लाउ
जो जरुरी है तेरा साथ निभाने मे..।
(आठ)
कुछ लोग जिन्दगी मे यू भी गमगीन बन गये
हुनर तो वक़्त पे काम न आ सका
ऐब तौहीन बन गये..।
(नौ)
उसके लहजे मे सियासी सोहबत की रवानी लगे
तन्ज कसके रन्ज करने की आदत पुरानी लगे
मेरी नजर मे जो है बेहद आप
दुनिया को वो शख्स खानदानी लगे..।
(दस)
शहर का होके तुमने पाया क्या खुब मकाम
कदमो मे थकान,कडवी जबान, अधुरी मुस्कान
और बस एक किराये का मकान....।
(ग्यारह)
सच कहने की आदत बुरी नही
ख्याल बस ये रखना
सलाह नसीहत न बन जाए..।
(बारह)
उसका वजूद जज्बात की अदाकारी मे खो गया
अफसोस, तालीम भी तजरबा न दे सकी
पहले किताबी बना
अब हिसाबी हो गया..।
(तेरह)
मुझसे अपना हिस्सा समेट ले
ऐसा न हो फिर बहुत देर हो जाए
मै फकीर हू बस इस लिहाज रख
क्या होगा अगर दुआ बेअसर हो जाए..।
(चौदह)
तेरी अदा सबको तेरा फन नजर आए
इसके लिए जरुरी है तुझे सलीक और तहजीब मे फर्क नजर आए..।
शेष फिर...
आपका अपना
डा.अजीत
© डा.अजीत

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