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29.12.09

काश 19 पहले ये हिम्मत दिखती...

ये महिला आयोग, ये राजनेता, ये ब्यूरोक्रेसी, और ये समाज, 19 साल से ये सब जाने कहां सो रहे थे... आराधना अपने माता-पिता के साथ अकेले रुचिका के लिए लड़ाई लड़ रही थी... उस वक़्त कोई साथ नहीं था... जब राठौड़ अपनी लाठी चला रहा था... उस वक़्त भी कोई नहीं आया जब रुचिका को स्कूल से बेदखल कर दिया गया... और उस वक़्त भी किसी की आंखें नहीं खुली जब रुचिका गेहरोत्रा ने थककर अपनी जान इस सिस्टम पर कुर्बान कर दी...

अब 19 साल बाद... जब मीडिया ने रुचिका की इंसाफ की लड़ाई को एक मुहिम बनाया है... तो सब खड़े हो गए हैं... कुछ की तो आंखें खुल गई हैं... और कुछ ऐसे हैं जो मौके का फ़ायदा उठाने के लिए इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहते हैं... सिस्टम को लेकर अगर पूरा देश पहले खड़ा हुआ होता तो 29 दिसम्बर 1993 को यानि अब से 16 साल पहले रुचिका को आत्महत्या न करनी पड़ती...

लखनपाल नाम के एक वकील ने रुचिका मामले में पहली बार स्कूल को निशाना बनाया है... और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रुचिका को सेक्रेड हार्ट स्कूल से निकाले जाने पर सवाल उठाए हैं... जिस पर चंडीगढ़ गृह सचिव ने जांच के आदेश दिए हैं... हालांकि ये सवाल उसी वक़्त उठाए जाने चाहिए थे... लेकिन अब मीडिया ने लोगों में वो ताक़त भर दी है कि वे अब सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं... साथ ही अब रुचिका के वकील भी केस रिओपेन कराने की कोशिशों में लग गए हैं... और इसी सिलसिले में पंचकुला में राठौड़ के खिलाफ दो शिकायतें दर्ज कराई गई हैं

ये भी मीडिया की मुहिम का ही नतीजा है जिन खाकी वर्दीवालों ने 9 सालों तक राठौड़ के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज नहीं की... वही अब उसके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं... वैसे मीडिया के प्रयासों से ही सही जो लोग रुचिका के लिए इंसाफ की मुहिम में किसी भी तरह से जुड़ रहे हैं... वही रुचिका की बरसी पर उसके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है... और अब जनता से यही अपील है कि वे बस इस आग को बुझने न दें...

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