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28.12.09

अशोक जी हम हिले, आप तो हिला ही गए !

2008 में चली वीओआई की आंधी में नए नवेले पौधे तो छिटके ही, कई दरख़्त भी उखड गए. आधा ईटीवी साफ़ हो गया. हर तीसरा, सामान बाँधने में लगा था..नई ज़मीन, नई उमीदें , नया जोश, मीडिया के मक्का दिल्ली में काम करने का मौक़ा...वो भी एक बहुप्रचारित चैनल में जिसकी अगुआई रामकृपाल सिंह जैसी शख्सियत कर रही थी..और उनके साथ थी राजेश बादल जैसे मीडिया दिग्गजों की फौज..आखिर कौन ना चाहता ऎसी टीम के साथ जुड़ना...मैं पसोपेश में था कि ईटीवी में आठ सालो तक काम करने के बाद इस नए चैनल रूपी घोड़े पर दांव लगाया जाये या नहीं...पर एक व्यक्ति गुपचुप दांव लगा चुका था. वो था अशोक उपाध्याय....अचानक एक दिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया. मैं सकते में था. अशोक जी भी जा रहे हैं..! ईटीवी का पुराना बरगद.. हैदराबाद से 20-25 सालों का नाता..
प्रिंट से इलेक्ट्रोनिक में हम साथ ही आये. मैं भास्कर से और वे मिलाप से. हालाँकि पद और अनुभव में दोनों में वे मुझसे बड़े थे. वे बुलेटिन प्रोडूसर और मैं कॉपी एडिटर कम एंकर. उनको कभी सर कहता, कभी अशोक जी..लेकिन उनसे मुझे 'यार अनिमेष ' का संबोधन अक्सर मिलता रहता. रात की पाली में जब वीओ करने वालों का टोटा रहता, अशोक जी ढेर सारी स्क्रिप्ट लिए वीओ रूम में नज़र आते..मैंने कई बार सलाह दी- आपके पास आवाज़ है, पर्सनालिटी है, एंकरिंग क्यूँ नही करते..? पर वे हमेशा कहकर बच निकलते..यार मुझे परदे के पीछे ही रहने दो..आज वाकई अशोक परदे के पीछे चले गए, स्मृतियों के परिदृश्य में..दोस्तों के लगातार पीछे पड़ने पर उन्होंने बड़े संकोच के साथ एंकरिंग का आग़ाज़ किया, और फिर ईटीवी राजस्थान का चेहरा ही बन गए..ईटीवी में उन्होंने कई उतार-चढ़ावों का सामना किया. न कभी शिकवा न शिकायत.. कुल मिलाकर उनकी गाड़ी अच्छी चल रही थी..भाभी जी भी जॉब में थीं. बेटा स्कूल में था. अक्सर वे उसे ऑफिस ले आते. कभी-कभी प्यार से हम लोग उसे 'जूनियर अशोक जी' बुलाया करते..हैदराबाद में काफी बड़ा फ्रेंड सर्किल था उनका..कोई बड़ी वजह नहीं थी ईटीवी छोड़कर जाने की...शायद उन्हें बड़े मंच पर खुद को साबित करना था..दिलों के मंच पर..कई और लोगों को अपना बनाना था..कई और को रुलाना था..
ईटीवी के उन आखिरी दिनों में अशोक जी अक्सर मजाक में कहते- ''दुनिया यहाँ की वहां हो जाए, ईटीवी के चार स्तम्भ यहाँ से नहीं हिलेंगे..अशोक,अनिमेष,अनिल और शैलेष"..हम सभी ईटीवी की लोंचिंग टीम का हिस्सा थे. पर अशोक जी, हम तो सिर्फ हिले, आप तो सभी को हिला गए..!
उनका ईटीवी छोड़ना सभी को हैरान कर रहा था.लोग कहा करते थे की अशोक जी तो रिटायरमेंट लेकर ही रुखसत लेंगे..अशोक जी ने उतना इंतजार भी नहीं कराया. उनका वीओआई जाना वहां जा रहे लोगों को उत्साहित और प्रोत्साहित कर रहा था..आखिर अशोक जी ने सोच-समझ कर ही फैसला लिया होगा. पर उनके चाहने वालों को एक शक कुरेद रहा था. इतनी शांत और सुलझी तबियत वाला आदमी दिल्ली मीडिया की आपाधापी में 'सेट' हो पायेगा..? सीधे तने वाला पुराना पेड़..और दिल्ली की सख्त ज़मीन...! खैर दिल में उहापोह लिए अशोक जी दिल्ल्ली चले गए, फिर कभी न लौटने के लिए...साथ रह गयी हैं कुछ स्मृतियाँ..धीर-गंभीर व्यक्तित्व, किसी से कोई शिकायत नहीं, शांत मुस्कुराता चेहरा..जैसे कह रहा हो..."ऑल इस वेल".

अनिमेष पाठक
टीवी 9