राज्य के बटवारे शायद इनकी दुर्दशा की नींव रखते है | तेलंगाना की मांग ने जैसे देश के कई राज्यों को आग में घी डालने की जुगत लगा दी |गोरखालैंड ,पूर्वांचल ,बुदेलखंड सब के सब अपनी पूरी ताकत से इस मांग को मनवाने को आतुर हो चुके है | राज्यों की मंद सी राजीनीतिक स्थिति में अचानक एक हलचल सी मच गई है | अलग राज्य की उम्मीद लगाए ये आम लोग चाहते क्या है ये तो पता ही नही चलता है |आमरण अनशन और भूख से अगर राज्यों को बांटा जाने लगा तो देश में कई राज्य खड़े हो जाए | जहाँ मधु कोड़ा जैसे निर्दलीय मुख्यमंत्री अपने सात पुश्तो के लिए राज्य की सम्पति को अपना बनाने में कोई कसर ना छोड़े |
ये सच है की भोली भाली और आम जनता के स्वार्थ इसमे जरूर निहित है | लेकिन सबसे अधिक तो राजनितिक स्वार्थ ही निहित दिखता है |राज्यों के बटवारे से क्या उस बटे राज्य का खूब विकास होता है ,पिछले ९ सालो के बाद भी झारखण्ड में विकास के उंगली पे गिने काम हुए दीख पड़ते है |राज्य छोटा हो या बड़ा ये बात निर्भर करती है उसके शासक पर की वो इसे कैसे चलता है |एक अच्छा शासक राज्य को अतुल्य बना सकता है यह बात तो उसकी सोच , विवेक और कार्यकुशलता पर निर्भर करती है |
आम जनता के लिए इस राज्य के बंटवारे से बहत कुछ तो नही मिल सकता है | हां एक बात जरूर है एक आध बलिदान ( आत्मदाह )करना पर सकता है और बहुत सी आशओं के बाद परिणाम के रूप में मोहभंग की प्राप्ति हो सकती है
ये सच है की भोली भाली और आम जनता के स्वार्थ इसमे जरूर निहित है | लेकिन सबसे अधिक तो राजनितिक स्वार्थ ही निहित दिखता है |राज्यों के बटवारे से क्या उस बटे राज्य का खूब विकास होता है ,पिछले ९ सालो के बाद भी झारखण्ड में विकास के उंगली पे गिने काम हुए दीख पड़ते है |राज्य छोटा हो या बड़ा ये बात निर्भर करती है उसके शासक पर की वो इसे कैसे चलता है |एक अच्छा शासक राज्य को अतुल्य बना सकता है यह बात तो उसकी सोच , विवेक और कार्यकुशलता पर निर्भर करती है |
आम जनता के लिए इस राज्य के बंटवारे से बहत कुछ तो नही मिल सकता है | हां एक बात जरूर है एक आध बलिदान ( आत्मदाह )करना पर सकता है और बहुत सी आशओं के बाद परिणाम के रूप में मोहभंग की प्राप्ति हो सकती है
8 comments:
बहुत ही अच्छा लेख एवं सही मुद्दा उठाया है आपने
बहुत-२ आभार
ापकी एक एक बात से सहमत हूँ बहुत बडिया आलेख है। धन्यवाद्
वाह, वाह सचदेवजी, खूब लिखा है आज.
अब तक था जो इन्तजार, वही मिला है आज
मैं एक दलित हूँ , मेरा जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ , जब राम कृष्ण और गौतम बद्ध की भूमि से देव भूमि जिससे पवित्र गंगा का उद्गम होता हैं , उत्तरांचल नाम से उत्तर प्रदेश के काटी जा रही थी तो लग रहा था कि कोई ह्रदय को काट रहा हैं , लोकतंत्र में क्षेत्रवादी भावनाओं को राष्ट्रद्रोही कहा जाना चाहिए या नहीं इसपर चिंतन न कर , मैं मंथन कर रहा हूँ कि जनता की गाढ़ी कमाई को पिछली सरकार ने वोट बैंक की राजनीति में बरबाद किया किन्तु पूरब की बाढ़ और बुन्देल खंड के सूखे के लिए सक्षम प्रयास न हुए और वर्तमान नेतृत्व तो ओर आगे बढ़ चला. बिजली की एक नयी समस्या प्रदेश के सामने हैं , लाल पत्थरों के स्मारक ओर पार्क, गजराज की मुर्तिया , महान दलित नेताओ की प्रतिमाओ पर जितना धन बर्बाद हुआ हैं, उससे डॉ. अम्बेडकर जीवन जल धरा बनाकर बुन्देलखंड तक पहुंचाई जा सकती थी, पूरब में बाढ़ रोकने के प्रयासों में डॉ. अम्बेडकर जन सुरक्षा बांध बनाये जा सकते थे जिन्हें सुन्दर घाटो ओर स्मारकों का रूप प्रदान किया जा सकता था, बिजली की समस्या के निदान के लिए डॉ . अम्बेडकर प्रकाश उत्पादन केंद्र बनाये जा सकते थे. यह बाबा साहेब को सच्चे श्रद्धा सुमन अर्पित करने का सर्वोतम तरीका हो सकता था जो बाबा साहेब को जन जन के ह्रदय में उतार देता. ऐसा नहीं कि दलित सक्षम नहीं , पात्र और योग्य नहीं किन्तु यदि कोई उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की बागडोर पूर्ण बहुमत होने के बाद भी सँभालने में सक्षम नहीं , वो अपनी पात्रता और योग्यता के अनुसार उत्तर प्रदेश के चार तुकुड़े करने को व्याकुल हैं तो उसकी योग्यता और पात्रता से सम्पूर्ण दलित समाज की तुलना किया जाना उचित नहीं और जनता का प्रश्न उचित हैं कि जो एक बड़े प्रदेश की बागडोर थामने में असफल हो, प्रदेश को छोटे-2 हिस्सों में तोड़ने की बात करता हो वो कैसे भविष्य में देश का प्रधानमंत्री बनकर देश की बागडोर संभल पायेगा? निसंदेह देश को भी अपनी योग्यता और पात्रता के अनुसार बिखंडित करेगा ? जवाब में दलितों का यही उत्तर हैं कि किसी की व्यक्तिगत पात्रता और योग्यता से सम्पूर्ण दलित समाज की छवि निर्धारित न की जाय.
जय भीम जय भारत.
vikas mogha jee mai aapki bhavnaon ki kadr kartaa hoo .lekin meri ek baat bilku samajh me nahi aayi ki aap apni abhvyakti ke jariye kya spasht karna chaahte hai.
na to uttar pradesh ki janta rajya ke batwaare ki mang kar rahi hain na hi koi rajnaitik dal or naa hi hum dalit kah rahen hain phir batwaare ki baat kahan se aa gayi, main itna hi kahna chahta hun
राज्य छोटा हो या बड़ा ये बात निर्भर करती है उसके शासक पर की वो इसे कैसे चलता है |एक अच्छा शासक राज्य को अतुल्य बना सकता है यह बात तो उसकी सोच , विवेक और कार्यकुशलता पर निर्भर करती है |
vikas mogha jee ye baatein jyaade diplomatic lagti hai. lekin sabhi raajy Gujraat to nahi ho sakte hai naa.
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