लांचिंग पर बधाई
एक साथी ने सूचना दी कि इलाहाबाद में भी अमर उजाला का बच्चा अखबार इंपैक्ट आज लांच कर दिया गया है। यहां दैनिक जागरण ने पहले ही अपना बच्चा अखबार आईनेक्स्ट ला दिया है। अब अमर उजाला और दैनिक जागरण दोनों की कोशिश है कि फटाफट यूपी के अन्य बाकी बचे प्रमुख शहरों में भी बच्चा अखबारों को जन्मा दिया जाये। इस कोशिश के चलते इस वक्त हिंदी पत्रकारों की बेहद डिमांड भी है। इधर अपने दिल्ली में चार-चार हिंदी बिजनेस डेली लाने की चर्चाओं और तैयारियों और भर्तियों के चलते हिंदी पत्रकारों की चांदी कट रही है।
नई लांचिंग और नई भर्तियों पर पत्रकार साथियों को बधाई!
भड़ास की ओर से यही कहा जा सकता है कि भई, पैसे बढ़वाओ पर ज्ञान व कौशल भी बढ़ाओ वरना अगले साल-दो साल में लेने के देने पड़ सकते हैं। हालांकि मेरे तरीके से आप भी गा सकते हो, जी लेने दो इस पल को, कल की देखेंगे कल को.. पर आज नहीं तो कल सोचना चाहिए।
अभी विस्तार का दौर है, सो, जो पत्रकार जहां से मिल रहा है, आ रहा है, उसे रख लिया जा रहा है। जो जहां से टूट रहा है, तोड़ लिया जा रहा है। टूटने और जुड़ने का दौर है। लेकिन जब यह एक्सपेन्सन मोड खत्म होगा और सारे मीडिया घराने कोनसोलिडेशन मोड में ले जायेंगे तो अपने खर्चे कम करेंगे और रेवेन्यू ज्यादा जनरेट करने की सोचेंगे। उस दौरान खर्चे कम करने के लिए पहला काम होगा स्टाफ कम कर दिया जायेगा, जो सदियों से होता आया है, क्योंकि जब एक बार कोई प्रोडक्ट चल जाता है तो उसे चलाने के लिए औसत लोगों की ज्यादा जरूरत महसूस होती है, जो रोज रोज अखबार निकालते रहें, प्रोडक्ट मार्केट में लाते रहें। तब डायनमिक और तेवरदार और महंगे लोगों से मुक्ति पाकर भी काम चलाया जा सकता है। और कई बार बेहद लो-प्रोफाइल लोगों को इसलिये किनारे कर दिया जाता है, बहरिया दिया जाता है क्योंकि वे प्रोडक्ट की क्वालिटी को विजुवलाइज नहीं कर पाते। और खुद को पिछड़ा साबित करते हैं।
तो कोनसोलिडेशन मोड में मीडिया घरानों के मैनेजमेंट गुरु लोग स्किल्ड लेबर और अनस्किल्ड लेबर (माफ कीजियेगा, पत्रकार को लेबर बोल रहा हूं लेकिन दरअसल सच्चाई यही है, हर जगह निर्णायक भूमिका में एमबीए वाला या मैनेजर बैठा है, और वो जो अंट शंट बोल रहा है कह रहा है उसे भाई लोग सुन रहे हैं और लागू कर रहे हैं, हां जी हां जी करते हुए। आप मुझसे असहमत हो सकते हैं, और उसे यहां जाहिर भी कर सकते हैं लेकिन मुझे तो यही लगता है कि पत्रकार अब प्रिविलेज्ड नहीं रहा, और अगर है भी तो बजाय उसका सदुपयोग देश व समाज के हित में करने को, वो दुरुपयोग ही ज्यादा करता है, निजी व अपने मालिक के हित में ) में फर्क करेगा और ढेर सारे लोगों पर खराब काम करने का आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखायेगा। चूंकि यह परिघटना हर ग्रपु में हो रहा होगा इसलिए एक बार बाहर होने के बाद दुबारा अंदर जाना मुश्किल होगा। इसलिए, अपने बेहतर कल के लिए आज से ही खुद को अपडेट और अपग्रेट करने में जुट जाइए।
जय भड़ास
यशवंत
17.1.08
माफ कीजियेगा, पत्रकार को लेबर बोल रहा हूं !
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