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17.6.09

एक पत्र प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम

डा. मनमोहन सिंह जी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार,

साहब जी,
आपके गठबंधन की जीत हुई है और आप दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए हैं, यह खुशी की बात है. लेकिन मन मे एक सवाल बार - बार उठ रहा है कि इससे पहले भी तो आप ही प्रधानमंत्री थे और उन पाँच साल मे हमारे यहाँ तो कुछ नही बदला. सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा जैसा आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले था।

आपके गठबंधन की जीत हुई है और आप दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए हैं, यह खुशी की बात है. लेकिन मन मे एक सवाल बार - बार उठ रहा है कि इससे पहले भी तो आप ही प्रधानमंत्री थे और उन पाँच साल मे हमारे यहाँ तो कुछ नही बदला. सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा जैसा आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले था. पहले भी एक पक्का घर नही था, आज भी नही है. तब भी कुछ दिन कमाता था और कुछ दिन बैठ के खाता था, आज भी वही हाल हैं
पहले भी एक पक्का घर नही था, आज भी नही है. तब भी कुछ दिन कमाता था और कुछ दिन बैठ के खाता था, आज भी वही हाल हैं . मुझे याद है, पिछले दिनों गाँव में हल्ला हुआ कि इस सरकार ने तो कमाल कर दिया अब तो हर किसी को काम मिलेगा और काम का पूरा दाम मिलेगा लेकिन यहाँ भी वही हुआ जो हर जगह होता है।

कुछ दिनों के बाद काम बंद हो गया. हमसे कहा गया कि काम ही नही है, वो तो बाद मे पता चला कि हमारे नाम पर पैसे उठ रहे हैं और हमे ही नही मिल रहा. अब, आप ही बताइए....... क्या फायदा हुआ हमे आपके इस योजना से?

आप यह भ्रम मत रखियेगा कि यह किसी एक की परेशानी है.... ना, ना, हमारी संख्या तो बहुत है लेकिन सब थक हार गए हैं , किसी को कुछ करके कोई फायदा नहीं दिख रहा. मुझे भी कोई बहुत उम्मीद नही है लेकिन कभी-कभी लगता है कि अगर आप तक मेरी आवज पहुँच गई और आपने सुना तो हमारे दिन बहुरेगें।

ऐसा ही कुछ हाल इंदिरा आवास योजना का है. इस योजना से अभी तक घर तो मिला नही लेकिन एक जोडी चप्पल जरुर घिस गया है. मैने सुना था कि आप बहुत ईमानदार हैं और पैसे की भी आपको बहुत अच्छी समझ है. लेकिन आपकी ईमानदारी और पैसे की समझ से हमारा तो कुछ भी फायदा नही हुआ.
अब आप दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए हैं तो कोशिश करियेगा कि हमारी हालत मे भी कुछ सुधार आए।

इससे ज्यादा क्या कहूँ पहले रहने के लिए घर और खाने के लिए खाना मिल जाए तभी तो सड़क और बिजली की जरुरत होगी. अभी तो बिजली की जगह लालटेन से काम चल जाता है और पैद्ल चलने के लिए तो गाँव की पगडंडी ही बहुत है. अंत मे एक बात और, अभी भी आपका साफ -सुथरा हाथ आम आदमी तक नही पहुँचा है ।

एक आम आदमी,
विकास कुमार
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2 comments:

Unknown said...

bahut achhi baat !
is baat ko aage tak le jana chahiye.............

रानी पात्रिक said...

अरे विकास जी, प्रधानमंत्री बनने से आपका भला थोड़े ही होता है। वो तो प्रधानमंत्री का भला होता है। बहुत कुछ बदला होगा उनके जीवन में। साफ सुथरी छवि से कमाल हुआ ना... प्रधानमंत्री बन गए।

इसे केवल व्यंग के रूप में लें। आपका कथन बहुतों की कथा है और मन को कचोटने वाला है।