Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

21.11.09

किसानी दांव पेंच


छत्तीसगढ़ राज्य देश के नक़्शे पर उस वक़्त उभरा जब समूचा राष्ट्र नेताओं से सवाल कर रहा था कि आखिर देश में कभी गठबंधन की सरकार स्थायित्व दे पाएगी या य़ूं ही कभी किसी वजह से तो कभी किसी वजह से लड़खड़ाती और गिरती रहेगी...इसी के साथ 2 राज्यों ने भी अपना जीवन शुरू किया लेकिन इनमें से सिर्फ़ छत्तीसगढ़ है जो स्वस्थ है झारखण्ड तो जैसे बुरी तरह से बीमार है...अस्थिरता तो अस्थिरता देश का तबसे बड़ा घोटाला भी यहां सामने आया...लेकिन राज्य छत्तीसगढ़ अपनी ज़िंदगी की नई इबारत लिख रहा है...राज्य में रमन की सरकार बड़ी लोकप्रिय और कर्मठ है इसमें कोई शक नहीं।
लेकिन इस राज्य में भी वोट की राजनीति की जाती है..विधायकों की खरीद-फरोख्त तो अब पुरानी बात हो गई लेकिन बेमतलव का औबिलीगेशन जारी है...देश का सबसे बड़ा विद्युत उत्पादक होने के नाते राज्य को एक अल्हदा पहचान भी मिली हुई है...लेकिन क्या रमन सरकार को येन वक्त पर किसानों के आंदोलन के सामने हथियार डाल देने थे...धमतरी की हिंसा से घवराए सीएम ने ये फैसला इतने जल्द लिया कि कोई सोच भी नहीं सका...माना कि देश में किसानों से किसी को भी द्वेष नहीं होगा इन्हें कइयों रियायतें भी दी जानी चाहिए ताकि किसान अपनी तंग ज़िंदगी से परेशान ना हो औऱ खेती घाटे का सौदा क़तई ना रहे...लेकिन इन सबके बीच क्या सरकार को इन बातों पर ग़ौर नहीं करना चाहिए...
पहला राज्य़ के किसानों को मुफ्त बिजली देने से खज़ाने पर पड़ने वाले भार की पूर्ती कहां से की जाएगी।
दूसरा 200 करोड़ के अधिभार से राज्य के शेष विकास कार्यों पर क्या फर्क पड़ेगा
तीसरी क्या महज़ बिजली देने से किसान खुश हो जाएंगे या फिर उनकी वाकई यही समस्या है
चौथा इसकी क्या व्यवस्था की गई है कि खेतों में सिंचाई के नाम पर कनेक्शन लेकर इसका दुरूपयोग नहीं होगा जिसमें विभागीय कर्मी भी शामिल होते हैं
पांचवा क्या इस फैसले से राज्य के कर्मठ किसानों की कर्मठता पर असर नहीं होगा. या फिर वे हर मौकों पर सरकार के सामने हाथ फैलाए खड़े नहीं हो जाए जिससे किसानों की कर्मठता तो ख़त्म हो ही जाएगी साथ ही प्रदेश भविष्य में आंदोलनों और सरकारों पर पूरी तरह से निर्भर हो जाएगा, हालाकि ये देश की समस्या है लेकिन इसके पीछे नेता वोटिंग कॉज देकर बच निकलते हैं...
छठा क्या इस तरह मुफ्त बिजली बांट कर सरकार दोबारा पॉवर एक्सीलेंसी एवार्ड जीत सकेगी
सातवां क्या सरकार ये भूल गई कि इसी साल गर्मियों में बढ़ते पावर लोड के कारण राज्य सरकार को केंद्र के सामने अपने एनटीपीसी वाले कोटे के लिए ज़द्दोजहद करनी पड़ी थी
आठवां क्या सरकार भूल जाती है कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल का ख़ुदका कुल उत्पादन दोनों स्रोतों , पनबिजली और थर्मल बिजली से 2200 मेगावॉट तक ही पहुंचता है..जबकि सरप्लस का मतलव आईपीयू औऱ सीपीयू की बिजली होता है..
नौवां क्या सरकार इस बात को नहीं जानती कि यही बिजली बेंच कर राज्य को करोड़ों का लाभ होता है..
दसवां क्या यही किसान प्रेम है...जिसमें खजाना लुटाया जाए...अगर ऐंसा है तो फिर सभी किसानों को कह देना चाहिए कि वे खेतों पर ना जाए बल्कि किसी शेड के नीचे बैठ कर आंदोलन करें।
ये महज़ वोट की राजनीति होती है..जिसे राजनीति के चतुर सुजान रमन सिंह ने क्यों किया इस पर नज़र डालते हैं..
पहला इस मुद्दे पर कांग्रेस की सियासी बढ़त को ख़त्म करना जो वैशालीनगर परिणामों के बाद सामने आई है...
दूसरा अगर मुद्दा आगे बढ़ा जाता तो रियायतें देने के बाद भी श्रेय कांग्रेस को जाता और अगर रियायतें नहीं दी जातीं तो रमन की चांउर वाले बाबा की वोटिंग इमेज पर बुरा असर पड़ता
तीसरा कांग्रेस को बे-मुद्दा करके साबित करना कि सरकार चहुंओर विकास की लहर चला रही है इससे देश की सियासत में सीएम का रुतबा तो बढ़ता है साथ ही डॉ.रमन सिंह की पार्टी के भीतर बेहतर छवि भी बनती...यानें वे एक अच्छे प्रबंधक भी बन जाते...जो कि उन्हे शिवराज से आगे निकलने में मदद करता..गौरतलब है कि शिवराज के डंपर घोटाले ने उनकी पार्टी के भीतर छवि को कम किया है जो एक खराब प्रबंधन का नतीज़ा माना गया है, ऐंसी ही सूझ-बूझ धान घोटाले के वक्त दिखा कर साबित किया था..इन सबसे सीएम का क़द लगातार बढ़ा है..
लेकिन क़द के चक्कर में प्रदेश के साथ बड़ा अन्याय हो सकता है..
किसी भी नेता से पर्सनली पूछा जाए तो वो यही कहता है कि ये सब हमारी सियासी मज़बूरी है वरना हम भी ऐंसा नहीं चाहते...लेकिन इसका समाधान किसी के पास नहीं किसानों की राजनीति अब जोरों पर है हालाकि देश के बड़े नेता मुलायम हों या लालू सभी ने किसानों की नौका का इस्तमाल किया है यहां तक कि अजीत सिंह तो हरित प्रदेश को लेकर किसान पुत्र के नाम से ही जाने जाते हैं...ऐंसे बहुत से नेता हैं जो किसानों के हितैषी कहे जाते हैं..नवीनतम् घटनाक्रम में गन्ना किसानों की बात की जाए तो कांग्रेस के यू-टर्न और शरद पवार पर ठीकरे ने फिर साबित किया कि किसान बड़ा वोट बैंक है...लेकिन सालों से किसानों के हित की बात की जा रही है और ऐंसा नहीं है कि किसी किसान नेता को किसानों के लिए कुछ करने का मौका ना मिला हो कम या ज्यादा सभी को मौका मिल चुका है लेकिन इस सबके बाद ही से किसानी में इज़ाफ़ा किसी नेताई करिश्में से नहीं बल्कि उद्योगपतियों के नये प्रयोगों से हुआ है...जिसमें देश के इंडस्ट्रीयालिस्ट्स ने खेती के उपकरण आमलोगों तक सस्ते दामों पर पहुंचाए...जिससे खेती मौसम के चंगुल से किसी हद तक बाहर आ सकी...सरकारी स्तर पर भी कोशिशें क़ाबिले तारीफ़ हैं...लेकिन पर्टीकुलर नेता इसका श्रेय नहीं ले सकता भले वो इस नाम पर वोट लेले।
अब बात करते हैं सरकारी मदद और किसानों के उत्थान की तो ये कहना ग़लत ना होगा कि इसके बाद से ही किसानों की मेहनत पर उल्टा असर पड़ा है...गांवों में अपराध बढ़ा है, और हद तो तब हो जाती है कि देश के भंडारण में अनाज इतना कम पड़ जाता है कि बाहर से आयात करना पड़ जाता है...राज्य छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो देश के कुल चावल उत्पादन का बड़ा हिस्सा राज्य का है लेकिन शायद मौसम की बैरूखी से ज़्यादा सरकारी योजनाओं के कारण 20 सालों बाद देश को चावल का आयात करने पर मज़बूर होना पड़ा....
वरुण के सखाजी
पत्रकार ज़ी24घंटे छत्तीसगढ़ रायपुर
Read me at sakhajee.blogspot.com
contact:-09009986179
sakhajee@yahoo.co.in
Sakhajee@gmail.com

No comments: