बाबारी का जिन्न फिर बाहर आगया है। कहने को ये घटना आज से सत्रह साल पुरानी है, जिसे कोई शर्म,कोई शौर्य और धैर्य का अवसान मानता है। लेकिन सच में ये घटना थी क्या..क्या वास्तव में किसी विदेशी अक्रांता की बनाई गई जागीर को तोड़ देना अपने धर्म और जाति के लिए कर्तव्य परायणता होगी या फिर राष्ट्रवाद होगा क्या हमने इस विवादित ढांचे को गिरा कर बाबर की बर्बरता और उसकी पौध याने औरंगज़ेब की ज़्यादितियों को भुला दिया या इतिहास में दर्ज़ इस सच को पौछ पाये..शायद जवाब आसान नहीं होगा।
एक बार फिर आंतक के लिए एक जुट होते देश के सामने वही दो सवाल आएंगे एक आंख मेरी धर्म कहलाती है दूसरी राष्ट्र..मैं किसे क़ुर्बान करूं...मुस्लिम कठमुल्लों को पटरी पर दौड़ती ज़िंदगी को फिर एक बार पाक में बैठे आक़ाओं की उस बात को साबित करने का मौक़ा मिल गया है जिसमें वो अक्सर भारतीय मुस्लिमों को हिंदुओं से दूर रहने की सलाह देते हैं..कहा करते है उनके हित भारत में नहीं बल्कि भारत के भीतर एक और पाकस्तान बनाने में हैं....सीमापार के ये तथाकथित इस्लाम के प्रचारक सक्रिय हो गये हैं..और सबसे बड़ी बात इस रिपोर्ट की ये है कि इससे निकलने वाले राज़ दरअसल राज़ हैं ही नहीं...सब खुली ख़िताब की तरह पढ़ा, समझा जा सकता है। रिपोर्ट लीक हुई अफसोस ये नहीं जिस वक्त लीक हुई वो समय राष्ट्रीय एकता और गौरव को नये आयाम देने वाला है...इसी महीने के आखिरी सप्ताह में मुम्बई हमले की सालग़िरह होगी और देश के दूसरी बड़ी आबादी इस बात से आशंकित और आतंकित होगी कि कहीं फिर भगवा सेना सक्रिय होकर कुछ ऐंसा ना करने लग जाए जो 1992 का दोहराव हो....उनके हाथों में ज़रूर शोक के प्रतीक कैंडल,काली पट्टी या कुछ और हो सकता है हो मगर दिल में एक भय खौफ और ख़तरनाक यादें होंगी वो जो बात उस पीढ़ी को नहीं बताना चाहते थे जो उस वक्त पैदा नहीं हुई थी...वो पीढ़ी ख़ुद ही सब जान जाएगी...
अब सवाल ये उठता है कि आखिर रिपोर्ट इसी वक्त क्यों लीक हुई या कराई गई...ये कोई परीक्षा का पर्चा नहीं जो बदमाशों ने लीक किया हो या गैस पेपर नहीं है..बल्कि देश की अस्मिता औऱ मान गौरव सम्मान के साथ राष्ट्रीय शांति का मसला है...इसके पीछे सरकार का हाथ है या जो भी है, कोई माइने नहीं रखता ये बात अल्हदा है।
इस रिपोर्ट के नजदीकी बुरे असर और दूरगामी बुरे असर दोनो पर हम इन बिंदुओं पर सोचते हुए विचार कर सकते हैं..
पहला देश के मुखिया का बाहर होना और रिपोर्ट का लीक होना-मनमोहन सिंह एक मंझे हुए खिलाड़ी है वे इसका ठीकरा अपने सिर नहीं लेना चाहते अब तक उनकी छवि सीधे सरल औऱ काम के प्रति निष्ठावान की बनी हुई है..औऱ फिर वे अपने वाक् चातुर्य के आभाव में गरम मुद्दे पर बहस में बुरे फंस भी सकते थे..
दूसरा इसी बीच उनका पाकस्तान के लोकतांत्रिक अस्तित्व पर सवाल खड़ा करना कि कौन है वहां जिससे बात की जा सके याने पाकस्तान की ज़म्हूरियत भारत की नज़र में बोगस है असल ताकत वहा के सेना नायकों और तालिबानियों में है...जो कि सच भी है..इस बयान ने वैश्विक पटल पर एक नई सोच और बहस दोनों ही समान रूप से रखी हैं..जिसमें शर्म-अल-शेख के साझां बयान का पश्चाताप भी शामिल है..
तीसरा गन्ना के गड़ने से कांग्रेस नीति संप्रग में ठीकराबाज़ी से लोगों औऱ विपक्ष का ध्यना पूरी तरह से हटाना....
तीसरा स्पेकट्रम घोटाले को सेफसाइड करना....चौथा कोड़ा पर पड़ रहे कोड़ों को भले ही केंद्र ने ही परोक्ष समर्थन दिया हो लेकिन पार्टी इसे तह तक नहीं ले जाना चाहती कांग्रेस के पुराने सहयोगी कोड़ा ने घोटाला नहीं किया बल्कि झारखण्ड के सीएम की करतूत है..याने कोड़ा और कांग्रेस का मेल कमतर दिखाना...पांचवा औऱ आखिरी भाजपा ने राव को घेरा तो कांग्रेस कैसे चुप रहे वो ऐंसा काला चिठ्ठा लेकर आई जिसने उसे फिर बूस्ट कर दिया।
वास्तव में सियासी दांव बड़े गहरे होते हैं...बाबरी के जिन्न को निकालना...वंदेमातरम् पर फतवे वाली सभा में परोक्ष रूप से रहना सबके बड़े गहरे माइने हैं...जिन्हे आम आदमी नहीं समझना नहीं चाहता..
इससे जो देश का माहौल बनेगा वो भाजपा या किसी औऱ भगवा का नुकसान नहीं होगा..बल्कि डूबती बिखरती पार्टी को फिर एक बार स्थापित होने का मौका मिलेगा वहीं सपा जो मुस्लिम परस्ती से कुछ दिन बाहर आई थी वो फिर उसी कूप में डूब जाएगी..वहीं ये सत्र तो गया जिसमें देश के बड़े मुद्दों पर चर्चा होनी थी..कुल मिला कर ऐंसा लगा कांग्रेस को मुद्दों से बचने का फायदा..भाजपा को रिस्टेंड होने का फायदा सपा को फिरका ताकतों का प्यार दोबारा मिलने की संभावनाओ का फायदा होता दिखाई दे रहा है जो साबित करता है कि शायद ये सर्वदलिय रमनीति थी जो सर्वदिलीए भारत को सियासी सौहवत के बुरे असरों के रूप में मिल रहीं है..
लिब्रहान रिपोर्ट लीक हुई कराई गई जो भी हुआ मतलव नहीं बहरहाल इससे ये ज़रूर लगता है कि जनता को अब नेता खुले आम मूर्ख बनाने लगे हैं..जिसमें कोई हिंदू नहीं कोई मुस्लिम नहीं हौ बल्कि सिर्फ एक आदमी है जिसे नेता वोटर कहते हैं। कल्याण कब भगवा भगवान छोड़ सपाई हो जाते हैं..मौहभंग होने या उपेक्षा से फिर भगवा छत्ते के आस-पास मंडराने लगते है कब उमा को पार्टी की उपेक्षा बुरी लगती है औऱ कब वो अटल आजवाणी को बाप समान कहने लगती है पवार कांग्रसे से अलग होते हैं लेकिन फिर वही लोगो के बीच साझा हो जाते है.शिबु कल तक साथ आज नहीं लालू संप्रग के घटक रहे तो लगने लगा वे इससे बड़े हो गये हैं तो बिहार में कैसे कांग्रेस को आने दे झगड़ा कुर्सी टेबल सब कुछ नाचक ..ना जाने कब किस नेता को क्या अच्छा बुरा लग जाता है पता नहीं चलता इतना खुल कर किसी राज या युग में जनता को नहीं छला गया। इसलिए किसी रिपोर्ट, सर्वे, और साराशों पर ना जाए बल्कि सीधे सियासत की अंधी चाल को समझें...
वरुण के सखाजी
पत्रकार ज़ी24घंटे,छत्तीसगढ़
रायपुर
09009986179
sakhajee@yahoo.co.in
24.11.09
देख तमाशा नेतों का......
Posted by Barun Sakhajee Shrivastav
Labels: सियासत
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