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24.11.09

मंदिर या मस्जिद

लिब्राहन रिपोर्ट... मुझे नहीं पता क्या है ये लिब्राहन रिपोर्ट. और मैं जानना भी नहीं चाहता. कल से सुन रहा हूँ. हर न्यूज़ चैनल पर बस यही एक खबर है. खैर कुछ बातें है जो मैं आप सबसे पूछना चाहता हूँ. हर भाजपाई से, हर कॉंग्रेसी से, हर धर्म के ठेकेदारों से, हर उद्योगपतियों से, हर लोगों से जो इस देश में रहते है. मैं सबसे बस एक सवाल करना चाहता हूँ.
सन १९९२ में कुछ आपराधिक तत्त्व के बहकावे में आकर अनपढ़ और नासमझ लोगों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. बुरा हुआ था उस दिन, बहुत बुरा. हर धर्म के लोगों के लिए ये शर्म की बात है कि किसी धर्म-स्थल को हजारों लोग तोड़ देते है. मुस्लिमों की नाराजगी बिलकुल जायज भी है. मैं बहुत ज्यादा इतिहास में नहीं जाना चाहता. वरना लोग मुझे पढ़ने लग जायेंगे कि पहले वहां राम मंदिर हुआ करता था, अयोध्या राम की नगरी थी, वहां मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाया गया था, वगैरह वगैरह.... मैं इन सबको मान भी लेता हूँ कि ऐसा हुआ होगा... तो इसका क्या मतलब कि जो उन्होंने किया वहीँ गलती हम भी करें???? आज हम वहां राम-मंदिर बना देते है, कल फिर कोई वहां मस्जिद बना देगा, फिर हम मंदिर बना लेंगे... आखिर कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा?
कल माननीय आडवानी जी ने कहा, राममंदिर को बनते हुए देखना उनके जीवन की सबसे बड़ी साध है... मैं उनसे पूछना चाहूँगा क्या उनकी सबसे बड़ी साध ये नहीं होनी चाहिए कि हमारा देश में लोग भूखे न सोयें. हम लड़ रहे है वहां मंदिर बने या मस्जिद... हम इस बात पे क्यों नहीं लड़ते कि वहां बच्चों के लिए स्कूल या फिर बीमारों के लिए अस्पताल बनवा दिया जाये... अगर अयोध्या में मंदिर बन गया तो मुसलमान भाइयों को क्या फायदा होगा? और अगर वहां दुबारा मस्जिद बन गया तो उससे हिन्दू समुदाय को क्या फायदा होगा? क्या हम कोई ऐसा उपाय ढूंढने में अक्षम है जिनसे दोनों को फायदा हो? क्यों नहीं हम उस विवादित भूमि पर स्कूल, कॉलेजे या फिर अस्पताल बनवा दें? इससे सबको फायदा होगा....
हम दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर बनवाने में करोड़ों खर्च कर सकते है, हम करोड़ों रुपये का सिंघासन बनवा सकते है, हम लाखों-करोड़ों रूपये एक मुकुट बनवाने में खर्च कर सकते है, हम हर-साल अरबों रुपये दुर्गापूजा, दसहरा, गणपति आदि पर खर्च कर सकते है... पर हम लोगों के उत्थान के लिए, गरीबों की भूख के लिए, बेसहरा बच्चों के घर के लिए कुछ नहीं कर सकते. हम बस लड़ सकते है मंदिर बने या मस्जिद के नाम पर. दंगे होते है इस बात के लिए, कत्ले-आम होता है धर्म के नाम पर... पर आज तक मैंने बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ते हुए किसी को नहीं देखा.
मैं जीवित हर इंसान से आज पूछना चाहता हूँ... उन्हें अयोध्या में मंदिर चाहिए या मस्जिद....?
मैं कुल ७ ब्लोगों पर लिखता हूँ. और ये पोस्ट मैं सब पर तो नहीं पर चार ब्लोगों पर पोस्ट कर रहा हूँ. मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुचाना चाहता हूँ. उम्मीद करूँगा आप लोग भी मेरी मदद करेंगे. मैं किसी भी धर्म के लोगों के आस्था और विश्वास को ठेष नहीं पहुचाना चाहता हूँ. अगर ऐसा होता है तो मैं आप सबसे माफ़ी की उम्मीद करूँगा.

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