8.2.10
'राजस्थानी लोकाचार गीत' पुस्तक का प्रकाशन
मूल रूप से चित्तौड़गढ़ राजस्थान की निवासी चन्द्रकान्ता व्यास द्वारा साल भर के बाद ही अपनी ओर से संकलित राजस्थानी लोकगीतों पर आधारित दूसरा प्रकाशन राजस्थानी लोकाचार गीत, साहित्य प्रेमियों के लिए हाल ही में छपा है। साहित्य के माहौल में बड़े होने के साथ-साथ लोक-संस्कृति की हिमायती चन्द्रकान्ता जुलाई 1956 में माण्डलगढ़, भीलवाड़ा जन्मी और हिन्दी के समालोचक और कोलेज प्रोफेसर डाॅ. सत्यनारायण व्यास की अद्र्धांगिनी बनने के साथ-साथ खुद की मेहनती प्रवृति और अपने ससुराल पक्ष के वातावरण के बूते ये दो प्रकाशन आप आये। लोकाचार गीत नामक पुस्तक श्री अंकित प्रकाशन, उदयपुर (राज.) से पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर द्वारा प्रकाशित की गई है। 192 पृष्ठों वाली इस लोकोपयोगी संकलन का मूल्य 250 रूपये रखा गया है। पुस्तक उनकी माँ स्व. लक्ष्मणा देवी को समर्पित की गई है। संपादन मण्डल में गीत वाचिका श्रीमती कमला देवी व्यास और श्रीमती दूर्गा देवी शर्मा का सहयोग भी लिया गया। पूरी पुस्तिका में जन्म से लेकर जीवनभर चलने वाले अलग-अलग तरह के तीज त्यौहारों पर गाये जाने वाले 151 लोकगीतों को समाहित किया गया है। गीतों के इस संकलन से खास तौर पर इस पीढ़ी की वे महिलाएं ज्यादा अच्छे से लाभान्वित हो पायेगी जिन्हें ऐसे गीतों को याद करने और गाने की रूचि है साथ ही गहराई से अध्ययन करने और शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए भी बहूपयोगी साबित होगी। पुस्तक में संकलित गीतों की लोकभाषा मेवाड़ी क्षेत्र बोलियों से पूरी तरह प्रभावित है। कभी 22 साल तक राजकीय सेवा में रही चन्द्रकान्ता अभी अपनी अभिरूचिवश लेखनकार्य कर रही है। फिलहाल 29-नीलकण्ठ, भगतसिंह नगर, सैंथी, चित्तौड़गढ़ (राज.) में रह रही है। पुस्तक में हमारी अपनी मिट्टी की असल जानकारी देने वाले इन गीतों को पढ़ने और उसके साथ ही सीखने का सफर कई बार संगीतमय अनुभव होता है। गीतों को कुछ वर्गों में बांटते हुए, जन्म, चूड़ा, जनेऊ, विवाह, नांगल, रातीजगा, सीतलामाता, पथवारी, तुलसी-विवाह, गणगौर पूजन, होली के साथ ही अलग-अलग ऋतुओं में गाये जाने वाले गीतों को भी शामिल किया गया है। ये अपनेआप में हमारी लोक विरासत का एक प्रमुख दस्तावेज प्रतीत होता है। आज के वैश्विकरण के युग में इस तरह का प्रकाशन हमारी अपनी संस्कृति की हाजरी मजबूती से दर्ज कराता हुआ नजर आता है। अपनी जड़ों से जुड़ने और खुद को पहचानने के लिए प्रेरित करने वाली यह पुस्तक रूचिकर है।
माणिक
स्पिक मैके, आकाशवाणी और अध्यापन से सीधा जुड़ाव
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