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8.2.10

आग्रह

अक्सर
तुमने कही गई बातों
को एक श्रृंखला के साथ याद रखा
जो अक्सर सन्दर्भ के साथ
तुम प्रस्तुत भी करती हो
लेकिन क्या कभी तुमने यह
नही जानना चाहा कि
इतने कहे गये के बीच
कुछ अनकहा भी हो सकता है
जिसके लिए उपयुक्त अवसर न मिला हो
ऐसा बहुत बार हुआ है कि
मैने जो सोचा वो कहा नही
और जो कहा वो सोच कर नही कहा
जिसे क्षणिक उत्तेजना मानकर
मैने छोड दिया था यू ही
आज मैने देखा उस हर बात एक अर्थ था
एक ऐसा अर्थ जो समर्थ न हो सका
ऐसी अनकही बातो पर मै एक लम्बा चौडा पत्र
लिख सकता हू
पत्र ही नही
और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है
कविता,कहानी या गज़ल
ऐसी तमाम अनकही बातो पर
मै बेवक्त बात करना चाहता हू तुमसे
बिना तुम्हारे मूड की परवाह किए हुए
शायद तुम बहुत सी बातो पर चौंक जाओ
और कहो पहले क्यों नही बताया
हो सकता तुमको ये सब बोझिल लगे
एक चिड-चिडी शाम की तरह
या मै भी बेतुका लग सकता हूँ
मै कहूंगा और रस के साथ कहूंगा
वे सब अनकही बातें
जो मुझे कभी बैचेन करती है
कभी एक राहत भी देती है
और फिर मेरी सब से बडी
जिज्ञासा तो इन बातो के साथ
तुम्हारा मन टटोलने की है
चलो एक शाम अपनी अपनी
अनकही बातो से रोशन करके देखें
शायद फिर यह अधेंरा छट जाए
जिसमे हम
एक दूसरे को ठीक
से देख नही पा रहे हैं
इस बात पर विचार करना
आग्रह है मेरा...।
डॉ अजीत

http://www.shesh-fir.blogspot.com/

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