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15.2.10

अर्थी कि कहानी

एक डोली चली, एकर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले प्यारी सखी,
चार तेरे खड़े, चार मेरे खड़े,
फूल तुझ पे पड़े, फूल मुझ पे पड़े,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू विदा हो रही, मैं जुदा हो रही,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
मांग तेरी भरी, मांग मेरी भरी,
चूड़ी तेरी हरी, चूड़ी मेरी हरी,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू हँसा के चली, मैं रुला के चली,

एक डोली चली, एक अर्थी चली,
तुझे पाके पति, tera khush ho gaya ,
mujhe ko ke pati mera ro raha ,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
tu basa ke chali mai ujad ke chali,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
tu basa ke chali mai ujad ke chali,

सूरज सिंह

4 comments:

Sachin Agarwal said...

Suraj Ji, aapki kavita jabardast hai. ek dham first class. per itna sad topic kyon uthaya.

khbro ka khulasa said...

kavita he ya dil ka dard

Prabhat Tiwari said...

संवेदना के मर्मस्पर्शी चित्रण के लिए आपको ढ़ेरों बधाईयां। आपकी रचना दिल को छू गई। वाह..बहुत ही बेहतरीन रचना रही।

tension point said...

बहुत ही मार्मिक कविता है, उम्मीद भरी भी- उदासी भरी भी.
धन्यवाद
मेरा ब्लॉग-- tensionpoint .blogspot .com