उम् ने गूँथीँ थीं यादों की लडियां
मखमली सपने भी उम्र ने ही उधेढ़ दिये
उम्र ने सँजोयी थी भुरभुरी यादेँ,
मुरझाये फूल भी उम्र ने ही बिखेर दिए
उम्र ने बाँधी थी रिश्तों की मेंड़,
संबधों के तट भी उम्र ने ही तोड़ दिए
उम्र ने जलायी थी आशा की ज्योति,
सपनोँ के दीपक भी उम्र ने ही फोड़ दिए
उम्र ने बसाये थे, गुड़ियों के घर,
मिट्टी के घरौंदे भी,
उम्र ने ही उजाड़ दिये।
उम्र ने बोये थे भावनाओं के बीज
और नन्हें पौधे भी,
उम्र ने ही उखाड दिये।
17.2.10
उम्र
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