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15.5.10

जात ही पूछो साधू की.....
लोकतंत्र,गणतंत्र और जनतंत्र के बेशर्म चीरहरण की अप-परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हमारे देश का विकल्पहीन नेतृत्व एक और ऐतिहासिक गलती करने उद्धत है.वह अब देश की जनगणना को जाति गणना की आग में झोंककर उस पर राजनीतिक तवा चढ़ाना चाहता है जिससे वोट की रोटियां सेंकी जा सकें.मिसाइलों,राकेटों,चंद्रयानों और अन्तरिक्ष यात्राओं के युग में जाति आधारित जनगणना उस देश के लिए तो बदनसीबी से बढ़कर कुछ नहीं है जो ज्हूझ रहा है अशिक्षा,गरीबी,बेरोजगारी,दहेज़ हत्या.कन्या भ्रूण हननऔर खाप पंचायतों के क्रूर फरमानों से,धर्मांध फतवों से.देश को ४-५ सौ साल पहले की मध्य-युगीन जातीय द्वेष तथा घ्रणा से लबालब मानसिकता में झोंक देने का यह षड़यंत्र सिर्फ और सिर्फ वोट के लिए किया जा रहा है.विडम्बना यह है कि यह मांग वे स्वार्थी नेता उठा रहे हैं जो खुद को राम मनोहर लोहिया पोषित समाजवाद का अनुगामी,अनुयायी और खेवैया कहते हैं.लालू ,शरद और मुलायम तीनों ही लोहियाई समाजवाद कि नैया पर सवार हैं.पर वे शायद यह भूल गए हैं कि उनके गुरु ने जातिविहीन समाज का नारा एक दूरदर्शी सोच के साथ बुलंद किया था.दूसरी ओर स्वयं को बौद्धिक राजनीति का सिरमौर बताने वाली भारतीय जनता पार्टी भी इस पूरे मामले में यादव तिकड़ी के साथ इसलिए खड़ी हुयी है क्यूंकि पुरस्कार के रूप में वोट और सत्ता का लालच है.भूल गई है यह पार्टी भी कि उसके संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने जाति नहीं एकात्म मानववाद का पंथ सुझाया था.इस रास्ते पर न तो संघर्ष था ,न स्वार्थ और न ही सत्ता कि अंधी दौड़.दुर्भाग्य यह भी है कि सत्ता का स्वर्ण मृग हासिल करने की इस बेहया नग्न दौड़ में कांग्रेस भी पूरी चालाकी के साथ खड़ी नज़र आ रही है.......खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं,साफ़ छिपते भी नहीं सामने आते भी नहीं.कमोबेश इसी तर्ज़ पर कांग्रेस ने पहले आह और फिर हामी भर दी.यानी हमाम में सभी एक साथ नंगे खड़े हो गए हैं.गाफिल हैं ये सारे सियासतदां देश कि जरूरतों से,देश को आजादी दिलाने वाली कुर्बानियों से और इनको{नेताओं को}अपने खून-पसीने से पाल -पोस रहे आम आदमी के सपनों से.यदि हम इक्कीसवीं सदी में भी इंसान को उसकी जात से पहचानेंगे तो क्या होगा संविधान कीभावनाओं का .संविधान निर्माता तो चाहते थे कि देश का हर नागरिक साधू कि तरह हो जाये....गृहस्थ संत सा हो जाए.कहा भी गया है कि "जात न पूछो साधू की"...वहीँ हम बहुत जल्द faisla लेने वाले हैं कि इस देश में वही रह पायेगा जिसकी अपनी कोई जाति होगी.क्या यह इस देश के लिए दुर्भाग्य की बात नहीं है ?ये नेता गन्दी राजनीती के गटर में कब तक फेंकते रहेंगे गाँधी और लोहिया के सपनों को......... ......................................आपका ......डा पंकज शुक्ल ....................................................................

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