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19.5.10

राजनीति में भौं...भौं..., म्याऊं...म्याऊं...

                 (उपदेश सक्सेना) मेरी गली के कुत्ते जिनकी दुम कभी सीधी नहीं होती थी, अब सरेआम पूंछ को लहराकर मुझे जीभ चिढा रहे हैं, बिल्लियाँ जो कभी रसोईघर में मेरी आहट सुनकर ही दूध से भरा पतीला छोड़कर भाग खड़ी होतीं थी, वे अब मेरे सामने चटखारे लेकर इस तन्मयता से दूध साफ़ करती रहती हैं, जैसे वे घर की मालकिन (पत्नी से क्षमा याचना के साथ) हों. आखिरकार तंग आकर मैनें हिम्मत करके एक कुत्ते को पकड़ ही लिया. उससे उसकी ‘उद्दण्डता’ के बारे में पूछा तो वह गुर्राकर बोला, अब आगे से मुझसे तमीज़ से ही पेश आना. कारण पूछने पर वह बोला-अब तक “ही-मैन” मेरा खून पीने की धमकियां देता था तब तुम तालियाँ पीटते थे, तुम्हारी झूठी हड्डियों को चूस-चूसकर मैंने कैसे अपने दिन गुज़ारे हैं, यह मैं ही जानता हूँ. मुझे घर की रखवाली के ऐवज में क्या मिलता था सूखी रोटी के दो टुकड़े. अब यह सब नहीं चलेगा. अब हमारी भी पूछ बढ़ गई है, नेताओं में हमारे गुण मिलने लगे हैं. मैंने आश्चर्य से पूछा कैसे तो वह बोला- अखबार नहीं पढ़ते क्या, हमारे नाम पर नेताओं को उपाधियां मिलने लगीं हैं. जल्द ही मैं एक बड़ा राजनीतिक दल ज्वाइन कर रहा हूँ, वहाँ से बुलावा आया है. मैंने उसे समझाने का प्रयास किया लेकिन उस पर राजनीति का नशा चढ़ चुका था, दुम की बजाये उसने कान नीचे किये और भौं...भौं...करता हुआ वहाँ से चलता बना. मैं अपना सर पकड़कर बैठ गया, देश की ताज़ा राजनीति को मैं समझता-जानता हूँ. अब बारी बिल्ली की थी. मैंने बचपन में नानी से सुना था की बिल्ली को कभी अँधेरे में नहीं घेरना, वर्ना वह छाती पर चढ़कर आँखें निकाल लेती है. यह सलाह याद आते ही एकबारगी बिल्ली का आइडिया ड्राप करने का जी हुआ, मगर फिर दिल कड़ा करके उसका भी रुख जानने का फैसला कर ही लिया. बिल्ली से पूछा की तुम्हारी निडरता के पीछे किसका हाथ है, तो वह बोली- पहले यह मान्यता थी कि यदि किसी के हाथों बिल्ली मर जाए तो उसे सोने की बिल्ली दान करना पड़ती थी, अब आधुनिक काल में मेरे परिवार के सदस्यों के नाम पर सरकारें चल रहीं हैं तो भला मैं किसी से क्यों डरूं? मेरे फिर आश्चर्यचकित होने की बारी थी, बिल्ली ने अपनी बात आगे बढ़ाई - उत्तरप्रदेश के एक बड़े नेता ने कहा है कि वहाँ की मुख्यमंत्री हमारी तरह व्यवहार करती हैं, अब हुईं ना वो हमारे परिवार की सदस्य. कुत्ते की तरह बिल्ली भी मुझे अनसुना कर चलती बनी. एक-दो दिन ऐसे ही बीते कि अचानक बाज़ार में काफी हो-हल्ला सुनाई दिया, बरामदे से झांककर देखा तो रंगबिरंगे झंडों से सजी एक गाडी में कुत्ता दोनों हाथ जोड़े अभिवादन की मुद्रा में खडा दिखा उसके आगे गली और शहर के तमाम कुत्ते, उनके पिल्ले नृत्य कर रहे थे, माइक पर देशभक्ति के गाने बज रहे थे, आसपास कई होर्डिंग्स लगे थे जिन पर राष्ट्रीय कुत्ता पार्टी के नारे लिखे थे उस कुत्ते टामी की बड़ी तस्वीरें भी चस्पा थीं, पूछताछ करने पर पता चला टामी ने नई राजनीतिक पार्टी बना ली है, और बिल्ली दल ने उसे बाहर से समर्थन देकर उस प्रांत में सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया, यह जुलूस उसी उपलक्ष्य में निकाला जा रहा है. मैंने नज़रें घुमाई तो देखा, अपने घर की देहरी पर सजी-संवरी बिल्ली पूजा का थाल लिए कुत्ते की अगवानी को आतुर खड़ी है. देश की इस राजनीति को लेकर चिंता में’ मैंने जैसे ही बरामदे का खम्भा पकड़ा, मुझे मेरे पैरों में कुछ गीलापन महसूस हुआ, जैसे ही मैं झुका, अचानक धड़ाम से गिर गया, आँखें खोली तो देखा मैं पलंग से नीचे पड़ा हूँ, मेरे पैताने टामी दुम हिला रहा है, पलंग के नीचे बिल्ली भयभीत बैठी है, उनकी आँखों को पढ़कर लगा जैसे वे कह रहे हों- क्या हम राजनीति नहीं जानते, और क्यों हमें दलदल में धकेलने की सोचते हो, क्या हमारी शान्ति और आज़ादी तुम्हें अच्छी नहीं लगती. हम जानते हैं कि राजनीति हमें कभी रास नहीं आएगी, मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुका था.

1 comment:

EKTA said...

achha kataksh....